Home गेस्ट ब्लॉग चुनाव का दिन और मुख्यमंत्री

चुनाव का दिन और मुख्यमंत्री

21 second read
0
0
583

चुनाव का दिन और मुख्यमंत्री

विष्णु नागर

चुनाव के दिन. लखनऊ से दिल्ली तक का सिंहासन डोलने के दिन। जिन्हें पांच साल तक लात मारी, उनके आगे सिर झुकाने के दिन. जिनकी तरफ देखा तक नहीं कभी, उनसे नमस्कार करने के दिन. भाषण दर भाषण पिलाने के दिन. आश्वासन पर आश्वासन भकोसवाने के दिन. राम राज लाने के दिन. मुस्कुरा-मुस्कुरा कर जबड़े दुखाने के दिन. मंदिर-गुरुद्वारे के आगे मत्था टेकने के दिन. झांझ-मंजीरा बजाने के दिन.

विभिन्न जातियों के संत -महात्मा़ओं की जयंतियां मनाने के दिन. जाल बिछाने के दिन. कांटे में मछली फंसाने के दिन.80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत करने के दिन. अपने प्रदेश को केरल न बनाने का अज्ञान बघारने के दिन. वोट तो वोट विपक्षी उम्मीदवार तक को खरीदकर रख लेने के दिन. मुरझाए कमल को खिलता हुआ दिखाने के दिन. चुनाव के दिन.

मुख्यमंत्री जी सुबह पांच बजे जागे. देखा कि उनका सुरक्षाकर्मी मजे से खर्राटे भर रहा है. उसे कस कर एक लात जमाई. वह हड़बड़ाया. ‘कौन है बे ?’ कहा. देखा कि साक्षात मालिक हैं. उनकी लात है. खाने योग्य है. चोट खाकर भी वह मुस्कुराया. कहा – ‘मालिक ! आपकी लात खाकर धन्य हुआ. मेरी कमर टेढ़ी थी, एकदम सीधी हो गई.’ मुख्यमंत्री ने कहा- ‘दो और जमाऊं तो तू पूरा का पूरा सीधा हो जाएगा.’ उसने विनयपूर्वक कहा – ‘एक ही काफी है मालिक. आपकी तो लात में भी बड़ा दम है.’

फिर मालिक ने कहा – ‘मुंह मेरी तरफ कर हरामखोर.’ उसने उनकी ओर मुंह किया. मालिक ने रातभर से जमा समस्त गैस का निष्कासन उसके मुंह पर किया, फिर पूछा- ‘सुगंधित है ?’ सुरक्षाकर्मी चुप रहा. मन ही मन मुख्यमंत्री को ऐसी गाली दी कि मुख्यमंत्री सुनते तो उनके होश फाख्ता हो जाते. मुख्यमंत्री ने फिर पूछा- ‘खुशबू आई न ?’ वह फिर कुछ नहीं बोला. उन्होंने अपने सचिव को आदेश दिया – ‘इसे फौरन सस्पेंड करो. इन्क्वायरी बैठाओ.’

इसके बाद उन्होंने डट कर नाश्ता किया. जो सामने था, सब खाया. चाय, काफी, कोला, जूस सब पीया. कार में बैठे. उन्हें लगा कि ड्राइवर गाड़ी धीरे चला रहा है. ‘क्यों बे, गाड़ी चलाना नहीं आता क्या ? शरीर में जान नहीं है ? लगता है, विपक्ष से मिला हुआ है. किसी मुगालते में मत रहना. साले को एक सेकंड में चलता कर दूंगा. दाने-दाने को तरस जाएगा. ठीक से चला. पीए साहब, हवाई दौरे से वापसी में इसकी शकल मुझे दीखनी नहीं चाहिए. यह मेरी सेवा के काबिल नहीं. जरूर सिफारिशी टट्टू है. इसका कहीं और इंतजाम करो.’

मुख्यमंत्री दिन की पहली सभा में पहुंचे – ‘इतने कम लोग क्यों ?पड़ोसी राज्य से किराए पर लाए गये लोग कहां है ? उम्मीदवार जी, इस तरह चुनाव जीतोगे तुम ? डीएम से कहा नहीं था क्या तुमने कि मुख्यमंत्री आ रहे हैं ? भीड़ का इंतजाम करना है ? कहा था उससे ?’ क्या जवाब था उसका ? उसने कोई जवाब नहीं दिया ? बोला कि देखते हैं. ये मजाल है उसकी ? उसे भी देखना है मगर तुम क्या सो रहे थे अब तक ? सोते-सोते चुनाव जीतने की कोई नई स्टाइल ईजाद की है क्या तुमने ? हमें भी बता देते तो हम चैन से बैठे रहते, यहां आने का कष्ट नहीं करते.’

अब भाषण –

भाइयों-बहनों ! जनता की सेवा लक्ष्य. समर्पण. प्रगति. विकास. सड़क. पुल. शिलान्यास. हिंदू एकता. पाकिस्तान. कश्मीर. देशद्रोह. 370. सुरक्षा. गुंडाराज-माफियाराज-तमंचावाद-परिवारवाद. बहन-बेटियां. लव जिहाद. धर्म परिवर्तन. ठोंक दो. निबटा दो. समान नागरिक संहिता. बुरका. फां-फूं. फां-फूं. राष्ट्रवाद. राममंदिर. अयोध्या. जयश्रीराम. गाय माता. विपक्ष. 350 सीट. डबल इंजन. वोट हमारा. धर्म हमारा. 80 फीसदी, 20 प्रतिशत. नेता हमारा. डबल इंजन हमारा. नमस्कार. वोट-वोट. वोट-वोट. लोकतंत्र-लोकतंत्र-लोकतंत्र. जिन्दाबाद-जिन्दाबाद-जिन्दाबाद. वंदेमातरम. सुंईईं-सुंईईं-फुर्र-फुर्र.

फिर से भाइयों-बहनों. एक बार और भाइयों-बहनों. फिर एक बार और. फिर और. फिर लंच. फिर काफी. फिर जूस. फिर टूं-ठूं-डूं. अंत में ढूं. फिर भाइयों-बहनों.

प्रश्न – माननीय जी, इस बार क्या लग रहा है ?

उत्तर – देख नहीं रहे, जनसमर्थन हर जगह मिल रहा है. पहले से भी भारी मतों से जीतेंगे. … और सुनिए जो जनता हमारा गल्ला खा गई, नमक खा गई, रुपया खा गई, वह हमारे उम्मीदवारों के नमस्ते का जवाब तक नहीं दे रही है. यह कहां का न्याय है ? यह तो ईमानदारी नहीं हुई ! हम आज इतने बुरे लग रहे हैं तो तभी मना कर देते कि तुम्हारा गल्ला नहीं खाएंगे ! तब तो लपर-लपर खा गये. इन लाभार्थियों ने हमें वोट नहीं दिया तो भी हम सत्ता में आकर रहेंगे. वोट की हमें परवाह नहीं है. तुम दो या न दो. यह तो बस औपचारिकता है।

हम तो विनम्रतावश जनता के सामने जा रहे हैं. जनता ने हमारी विनम्रता की इज्ज़त की तो ठीक वरना मैं डंके की चोट कह रहा हूं कि जीतेंगे हमीं. सुन ले जनता, वोट नहीं दिया तो चार सौ सीटों पर जीतकर दिखाएंगे. और दिया तो हम कुछ कम पर भी समझौता कर सकते हैं। बता देना सारी जनता को. हमें वो अल्लू-टल्लू न समझ ले कि उसने वोट नहीं दिया तो हम चुपचाप जाकर विपक्ष में बैठ जाएंगे. यह लोकतंत्र है. इसमें परिवारवाद को चलने नहीं दिया जाएगा. चला के देखे जनता. हम जनता को भी देख लेंगे.

बोलो जनता मुर्दाबाद करूं ? करूं की नहीं ?

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…