आज ही मरना था साले को
रविवार है
कितना कुछ सोचा था
अब मुए को ढो कर ले चलो मसान
कल शनिवार था
घर में कोई नहीं था
मौका पाकर साला पी गया बोतल भर
और लुढ़क गया कुर्सी पर बैठे बैठे
ऐसा क्यों बोलते हो भाई
किसी की मौत पर ऐसा नहीं कहते
थोड़ा संजीदा दिखो
सफेद कपड़े पहनो
वही जो पिछली बार तुमने पहना था
कयी सालों पहले अपने पिता की मौत पर
ढूंढना पड़ेगा
सालों से इस घर में कोई मरा नहीं ना
और देखो पास ही बाज़ार में मिल जायेगा
सफेद फूलों का गुच्छा
हां अब ठीक है
लग रहा है कि तुम किसी की मैयत में जा रहे हो
ये क्या ईत्र क्यों लगा लिया
अरे छोड़ो भी
मुर्दे कहां सूंघ पाते हैं
वैसे तो वो देख भी नहीं पाते
लेकिन और भी लोग होंगे
छोड़ो यार
देखो मृत कवि की आंखें थोड़ी सी खुली है अब भी
बंद कर दो इन्हें
मुर्दे की नज़र से क्या देखना
वैसे भी ज़िंदा रहते बहुत देखता था साला
उस दिन शादी में
जब सभी रंगीन शामियाने के नीचे
खा पी रहे थे और ज़रुरत से ज़्यादा
अपने अपने प्लेट पर लेकर छोड़ रहे थे
ये साला शामियाने के पीछे अंधेरों में
उन भूखे नंगे बच्चों के साथ था
क्या ख़ाक कविता लिखेगा
इसको वर्तमान में जीना ही नहीं आया कभी
जीना ही नहीं आया सलीके से
कभी कभी कुछ कुछ पढ़ा है इसका लिखा
कैसा कवि है
खूबसूरत लड़कियों की आंखों को
छाती को, जांघों को, कमर को
लहराते बालों को
कभी देख ही नहीं पाया लिखना तो दूर
और वो जो एक चीज़ है, प्रेम
मरमरी बदन पर नीम बेहोशी में उभरे जज्बात
उस पर एक भी कविता नहीं
फिर इतना पीता क्यों था साला
कुछ भी ऐसा नहीं लिखा
जो हमारे दिल को तीर सा बेध सके
हुं: ऐसे होते हैं कवि
कभी बैलों के साथ जुते हुए लोग
पैरों पर नज़र गड़ाए वो चमार
फटी एड़ियों को लेकर ईंट ढोती औरतें
नंगे बच्चों का तालाब में छपाक
हाथों में बंदूक लेकर उस नक्सली का
गुम होना जंगल में
यही सब उल जलूल लिखता था
जल्दी करो
लिटाओ इसको बांस पर देखो ठीक से
शरीर पर कुछ रह न जाए
खाली हाथ आया था
खाली हाथ जाना चाहिए
देखो उसकी दाहिनी मुठ्ठी भींची हुई है
खोलो उसको
क्या लेकर जा रहा है बेवकूफ
अरे ये तो काग़ज़ का एक टुकड़ा है
देखो तो क्या लिखा है इस पर
वसीयत
साले के पास था ही क्या जो किसीको देकर जायेगा
अरे ये तो बस एक तस्वीर है
किसी बच्चे के हाथों बनी
नीले आकाश के नीचे
एक हिस्से पर ट्यूलिप के खेत
दूसरी तरफ केसर के फूल।
- सुब्रतो चटर्जी
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