मर गया आदमी भी
तब तक नहीं मरता
जब तक सरकार उसकी मृत्यु का
प्रमाणपत्र न दे दे
आदमी जिंदा भी मर जाता है
जो सरकार मृत्यु का प्रमाणपत्र दे दे
अब सबकुछ सरकार है
बस सरकार, सरकार, सरकार
सबकुछ वही तय करेगी
और नागरिक या नागरिक चेतना की नहीं दरकार
मैं यह क्यों कह रहा हूं
क्योंकि नागरिक देखते रहे
अख़बार छापते रहे
आक्सीजन की कमी से मरते रहे लोग
एंबुलेंस नहीं मिली मरते रहे लोग
अस्पताल में बेड नहीं मिला मरते रहे लोग
दवा की कालाबाजारी होती रही मरते रहे लोग
और न जाने कैसे बेतरतीब मरते रहे लोग
श्मशान में चिंताएं भभकती रहीं
गंगा भी मुर्दों को पीठ पर लादे
बक्सर-प्रयागराज से बंगाल की खाड़ी तक
ढोती और रोती रही गंगा
लगातार मरते रहे लोग
लेकिन सरकार ने संसद में लिखकर दे दिया,
‘आक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा’
पीछे राज्य भी कहने लगे
आक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा
सब चुप हैं !
अब जो कोई पूछेगा कि
कैसे कोई नहीं मरा ?
तो फिर समझ लो वो मरा !
इसलिए आपस में कानाफूसी
हर नागरिक है डरा
जो बोला तो छापा परा
तो सुनो यदि कान के पर्दों में हैं
ज़रा भी सुनने की सामर्थ्य
अब भविष्य में कोई नहीं मरेगा
अब वही मरेगा जो सवाल खड़ा करेगा
फिर भी मुझे विश्वास है कि
एक दिन मुर्दे बोलेंगे
सरकारी झूठ की कलई
सबके सामने खोलेंगे
- अमरजीत सिंह तन्हा
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]