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भारतीय लोकतंत्र में निजीकरण की ओर भागती शिक्षा व्यवस्था

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भारतीय लोकतंत्र में निजीकरण की ओर भागती शिक्षा व्यवस्था
भारतीय लोकतंत्र में निजीकरण की ओर भागती शिक्षा व्यवस्था

भारत में शिक्षा व्यवस्था का हालत यह है कि आजादी के 7 दशक बाद भी 75 फ़ीसदी लोग ही सिर्फ साक्षर हो पाए हैं – मैट्रिक, इंटर, स्नातक की तो बात ही छोड़िये. नामांकन की प्रक्रिया भी इतनी जटिल है कि खेतों में मजदूरी करने वाले माता-पिता इस कागजी प्रक्रिया को नहीं समझ पाते और स्कूल की व्यवस्था में जाने से हिचकते हैं.

सरकारी स्कूलों में योग्य शिक्षकों का घोर अभाव है. शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया को इतना जटिल बनाया गया है कि योग्य शिक्षक सड़क पर और घूस देकर अयोग्य शिक्षक स्कूल में बहाल है. अभी छात्र शिक्षक अनुपात 70:1 है, जबकि होना चाहिए 35 : 1. अभी जो भी शिक्षक है अभी उन्हें मीड-डे-मील और गैर-शैक्षणिक कार्य में लगा दिया जाता है.

शिक्षा को सेवा की जगह बाजार के हवाले किया जा रहा है. पूरे देश में सरकारी स्कूलों का निजीकरण किए जाने की नीति पर सरकार काम कर रही है. अब निजी स्कूलों में गरीब के बच्चे पढ़ नहीं पाएंगे. इसमें आरक्षण का प्रावधान भी नहीं होगा. पैसे वालों के बच्चे ही निजी स्कूल में पढ़ पाएंगे. गरीब वर्ग के बच्चे सिर्फ फैक्ट्री मजदूर, दिहारी मजदूर के रुप में बहुत बड़ी फौज तैयार होंगे, जिससे पूंजीपति को सस्ते मजदूर उपलब्ध होंगे और उसका मुनाफा और बचत अधिक होगी.

सरकारी स्कूलों में आधारभूत संरचना एवं सुविधाओं का घोर अभाव है. टॉयलेट, कमरे, ब्लैकबोर्ड, पानी, बिजली, पंखे आदि सुविधाओं का घोर अभाव है. बच्चे व बच्चियों को बाथरूम नहीं रहने से काफी परेशानी होती है. हर साल सरकार द्वारा शिक्षा के बजट में कटौती की जाती है ताकि गरीब के बच्चे पढ़ने से वंचित रहे. ऐसा इसलिए किया जाता है कि अमीर सरकारी बाबू के बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढते हैं. सरकारी बाबू सरकारी पैसे लेते हैं गरीबों के बच्चों को पढ़ाने के लिए लेकिन अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं.

वे सरकारी स्कूलों को लूट का जरिया बनाते हैं. इस लूट में चपरासी से लेकर मंत्री तक सब शामिल रहते हैं, अगर नहीं तो चपरासी, मास्टर, अधिकारी, मंत्री के बेटे निजी स्कूल में पढ़ने क्यों जाते हैं, सरकारी में क्यों नहीं ? उनको मालूम है कि सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं एवं योग्य शिक्षक नहीं है. शिक्षा व्यवस्था के नाम पर खिचड़ी बांटा जाता है.

परीक्षा में भी बड़े पैमाने पर धांधली होती है. मैट्रिक, इंटर के बोर्ड परीक्षा में शिक्षा माफियाओं का मकड़जाल बना हुआ है. जिनके पास पैसा पैरवी है, उन्हें अच्छे नंबरों से पास किया जाता है. बड़े पैमाने पर स्कूल से वोट तक पैसों का खेल चलता रहता है. यह सब न केवल मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा अधिकारियों के नाक के नीचे होता है बल्कि इस खेल में उन लोगों का भी हिस्सा होता है.

बिहार बोर्ड, एसएससी, बीपीएससी, एनटीपीसी आदि परीक्षा परिणामों को हम लोग देख चुके हैं. कितने स्कूलों कॉलेजों एवं शिक्षा के प्रमुख पकड़े जा चुके हैं. उच्च शिक्षा में गरीब, मजदूर, खैरआ, आदिवासी के बच्चे काफी पिछड़े हैं. बिहार के बांका-जमुई जिले के खैरा, आदिवासियों में विरले ही कोई इंटर या ग्रेजुएट मिलेगा. पिछड़े, गरीब के जो बच्चे उच्च शिक्षा में हैं भी तो वे आर्ट्स में मिलेंगे. विज्ञान व इंजीनियरिंग, डॉक्टरी एवं तकनीकी शिक्षा इन लोगों के लिए कल्पना भी नहीं कीजिए.

निजी संस्थानों के तर्ज पर ही सरकारी संस्थानों में भी फीस बढ़ा दिया गया है या जो कुछ कॉलेज बचे हैं, वह भी निजीकरण की प्रक्रिया में हैं. गरीब के बच्चे अब डॉक्टर, इंजीनियर, मैकेनिक, वैज्ञानिक बनने की सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं क्योंकि 50 लाख से एक करोड़ तक की फीस इन लोगों के बूते से बाहर है.

एनटीपीसी, एसएससी, बीपीएससी आदि बोर्डों में परीक्षा लेने के नाम पर करोड़ों-अरबों की वसूली की जाती है. इसका फायदा कैसे उठाते हैं, समझ सकते हैं. 2000 पदों की बहाली के लिए 50 लाख फार्म भरते हैं. प्रत्येक अभ्यर्थी से एक-एक हजार रुपए वसूलते हैं तो कुल 5 अरब रुपए कमा लेता है. बाद में परीक्षा रद्द कर दिया जाता है और बेरोजगारी का दंश झेल रहे अभ्यर्थी हाथ मलते रह जाते हैं.

इस गम को भुलाने के लिए नौजवानों को हिंदू-मुस्लिम, राम मंदिर, झटका, जय श्री राम जैसे शिगूफा छोड़ देती है, जिसमें लोग उलझ जाते हैं. इस खेल में दलाल मीडिया की अहम भूमिका होती है. अभी अग्निपथ योजना सरकार ने लांच किया है. बेरोजगारी का दंश झेल रहे देश के नौजवानों के ऊपर जले पर नमक छिड़कने का काम किया है. एक सेना ही आशा थी जो नौकरियों के साथ-साथ देश सेवा के भावना के साथ जाते थे, वह भी सरकार ने 4 साल के लिए कर दिया. पेंशन, अन्य सुविधाएं समाप्त कर दी. 4 चार ट्रेनिंग सरकारी पैसों से करने के बाद नौकरी कारपोरेट घरानों का करेगा.

महिलाओं की शिक्षा का स्तर और खराब है. महिला शिक्षा के नाम पर सरकार वाह वाही लूटने के लिए बहुत घोषणा करती है. कॉलेज तक फ्री शिक्षा, छात्रवृति, पोशाक आदि आदि लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी कॉलेज में लड़कियों को बिना पैसे का दाखिला नहीं होता है, फीस नहीं भरने पर नाम काटने का धमकी मिलता है. आज भी महिला शिक्षा का स्तर पुरुष से काफी कम है. सवाल है कि महिला के लिए इतना सुविधाएं व विकास के लिए स्कीम लागू है फिर भी शिक्षा में पुरुषों से काफी पीछे क्यों है ?

कहाने के लिए तो हम लोग लोकतंत्र, लोक कल्याणकारी समाजवादी व धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं लेकिन क्या हमारे देश में यह सब बचा है ? लोकतंत्र के जगह धन तंत्र, लूट तंत्र, भ्रष्ट तंत्र, पूंजीवाद, राष्ट्रभक्ति, शोषण दमन पर आधारित व्यवस्था कायम है. जब अन्याय व शोषण का प्रतिरोध करते हैं तो प्रतिरोध को कुचलने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना कर जेल में मारने, प्रताड़ित करने का काम चल रहा है.

इस झूठ तंत्र, फर्जी लोकतंत्र, ब्राह्मणवादी, अर्द्ध-औपनिवेशिक, अर्द्ध सामंती व्यवस्था जो शोषण, दमन, लूट पर आधारित है, इसे समाप्त कर एक नया लोकतंत्र जिसमें समान शिक्षा, जाति विहीन, शोषण विहीन एवं सबको वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा व रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने की जरूरत है. शिक्षा के लिए लड़ने की जरूरत है, संघर्ष करने की लिए जरूरत है.

  • पुकार, सामाजिक कार्यकर्ता

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ROHIT SHARMA

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