आज दुःखी हूं, कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे. दो बच्चों ने आज ही एड्मिशन लिया और उन्होंने फीस लगभग 16,000 और होस्टल फीस लगभग 1,20,000 सुनकर एड्मिशन कैंसिल करने को कहा.
पिता ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि ‘सर, मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते में, इसलिए आ गए थे. मैंने रोकने की कोशिश भी की लेकिन अंत में एडमिशन कैंसिल ही करा लिया.
बैठकर, ये सोच रहा था कि एक तरफ जहां लोग सस्ती शिक्षा चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार कह रही है कि ’30 प्रतिशत खुद जेनेरेट कीजिये.’ ऑटोनोमी के नाम पर निजिकरण हो रहा है. सोचिये, दिल्ली विश्विद्यालय के चारों तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटी का जाल बिछ रहा है.
जो लोग 15,000 की फीस नहीं दे पा रहे, वो लाखों की फीस प्राइवेट यूनिवर्सिटी को कहां से देंगे ? लगभग ऐसे कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एड्मिशन कैंसिल कराते होंगे. इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी. ये उस देश मे हो रहा है जहां के प्रधानमंत्री खुद को ओबीसी क्लेम कर रहे हैं, ये उस देश में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री स्वयं चाय बेचने की बात करते हैं. अरे भाई आप गरीब है तो इनके लिए ही कुछ कर देते !
कॉलेज में कई तरह की स्कालरशिप तो हैं लेकिन फीस भरने के लिए काफी नहीं, होस्टल फीस भरने लायक तो कतई नहीं. PG में रेंट पर रहना तो अच्छी आर्थिक व्यवस्था वाले लोगों के भी वश का नहीं. शिक्षक एक कार्पस फण्ड बनाने की बात कर रहे हैं ताकि ऐसे बच्चों की मदद किया जा सके. लेकिन इससे एक दो लोगों की मदद तो हो सकती है लेकिन सर्व कल्याण तो सरकार की नीतियों से ही होगा.
लेकिन सरकार को खुद बचा रहना है और बाकी मंत्रालयों को उनको बचाये रखना है, तो गरीब मजदूर क्या करें ?
लेकिन मैं दुःखी हूं कालेज का 95 प्रतिशत का कटऑफ और बच्चे के पास 95 प्रतिशत नम्बर हैं लेकिन इसके बावजूद भी गरीब बच्चे क्या करेंगे ? गांव गोद लिए जा रहे हैं और लोग गरीब हुए जा रहे हैं. ‘बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ’ का नारा कितना फेक लगता है ! गर्ल्स कॉलेज बेटियों को उच्च शिक्षा देने के लिए ही बना था लेकिन आज एक गरीब की बेटी उसी से महरूम हो गई.
विश्विद्यालय अपने यूनिवर्सिटी होने का चरित्र खो रही है. बाकी फर्स्ट कट ऑफ का एड्मिसन खत्म हो गया है. दूसरे और तमाम कटऑफ में भी शायद ऐसे कितने बच्चे आएंगे और वापस चले जायेंगे. ये सालों से हो रहा होगा लेकिन जब भारत बदल रहा था तो शायद ये भी बदल जाता.
बाकी अब कुछ नहीं. शिक्षा मंत्रालय रोज एक नया फरमान ला रहा है. उस पिता ने कहा कि सुना था कि JNU की फीस कम है उसी से सोच लिए थे कि यहां भी कम होगी. अब आप समझे JNU को खत्म क्यों किया जा रहा है ? सत्यमेव जयते !
- दीपक भास्कर
असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
Read Also –
संघियों का आत्मनिर्भर भारत यानी शिक्षामुक्त, रोजगारमुक्त, अस्पतालमुक्त भारत
हिंसक अर्थव्यवस्था, हिंसक राजनीति और हिंसक शिक्षा आपको एक जानवर में बदल रही है
घटिया शिक्षा व्यवस्था में रहने और उससे निकलने की कितनी कीमत चुकाते हैं आप ?
नई शिक्षा नीति : दांव पर 100 लाख करोड़ की राष्ट्रीय सम्पत्ति
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]