Home गेस्ट ब्लॉग दुनिया का विकास नास्तिकों ने किया है, धर्मांधों ने नहीं

दुनिया का विकास नास्तिकों ने किया है, धर्मांधों ने नहीं

18 second read
0
0
639

दुनिया का विकास नास्तिकों ने किया है, धर्मांधों ने नहीं

1930 से रूस वालों ने अपने बच्चों को ये सिखाया कि ना ही आत्मा होती है और ना ही परमात्मा होता है. पूरे 25 वर्ष लगे ये बात समझाने में, तब जाकर उनकी पीढ़ी इस बात को समझी और आज रूस नास्तिक देश है और साथ में विकसित देश भी है. आज यदि भारत के लोगों को कोई आत्मा, परमात्मा, चमत्कार, भूत, प्रेत के अस्तित्व के बारे में कोई कह रहा हो, तो जल्दी से उनके दिमाग में उतरने लगता है लेकिन इसके विपरीत कोई कुछ कह रहा है, तो उल्टा उसे पागल करार कर दिया जाता है.

इस मुल्क ने ध्यान, समाधि, आत्मा और मोक्ष पर सबसे ज्यादा साहित्य रचा है. सबसे ज्यादा गुरु, शिष्य, बाबा, योगी, सन्यासी, भक्त और भगवान पैदा किये. अगर ये सारे लोग पांच प्रतिशत भी सफल रहते तो भारत सबसे अमीर वैज्ञानिक लोकतांत्रिक और समतामूलक समाज का धनी होता क्योंकि ध्यान के जो फायदे गिनाये जाते हैं, उसके अनुसार आदमी सृजनात्मक, करुणावान, तटस्थ और सदाचारी बन जाता है.

अब भारतीय समाज और इसके निराशाजनक इतिहास व वर्तमान को गौर से देखिये. इसकी गरीबी, आपसी भेदभाव, छुआछुत, अन्धविश्वास, पाखण्ड, भाग्यवाद और गन्दगी देखकर आपको लगता है पिछले तीन हज़ार सालों में इसके अध्यात्म ने इसे कुछ भी क्रियेटिव करने दिया है ?

पिछले बाइस सौ साल से ये मुल्क किसी न किसी अर्थ में किसी न किसी बाहरी कौम का गुलाम रहा है. मुट्ठी भर आक्रमणकारियों ने करोड़ों के इस देश को कैसे गुलाम बनाया, ये एक चमत्कार है. ऐसे हज़ारों अध्याय इस देश में छुपे हैं इसीलिये इस मुल्क ने अपना वास्तविक इतिहास कभी नहीं लिखा. बल्कि वह लिखा जिससे मूर्खताओं के सबूत मिटते रहे. गौरवशाली इतिहास की कल्पनाओं को गढ़कर गर्व करते हैं, पर वह लुटा क्यों उसकी जिम्मेदारी कभी नहीं लेते.

ये सब देखकर दुबारा सोचिये कि भारत के परलोकवादि अध्यात्म, आत्मा, परमात्मा और ध्यान ने इस देश के लोगों को क्या दिया है ? इन्होंने अलग किस्म के आविष्कार किये, ऊपरवाला ख़ुश कैसे होता है ? ऊपरवाला नाराज़ क्यों होता है ? स्वर्ग में कैसे जायें ? नरक से कैसे बचें ? स्वर्ग में क्या-क्या मिलेगा ? नरक में क्या-क्या सज़ा है ? हलाल क्या है ? हराम क्या है ? बुरे ग्रहों को कैसे टालें ? मुरादें कैसे पूरी होती है ? पाप कैसे धुलते हैं ? पित्तरों की तृप्त कैसे करें ?

ऊपरवाला किस्मत लिखता है, वो सब देखता है, वो हमारे पाप-पुण्य का हिसाब लिखता है, जीवन-मरण उसके हाथ में है, उसकी मर्ज़ी बगैर पत्ता नहीं हिलता, ऊपरवाला खाने को देता है, वो तारीफ़ का भूखा है, वो पैसे लेकर काम करता है, मंत्रों द्वारा संकट निवारण, हज़ारों किस्म के शुभ-अशुभ, हज़ारों किस्म के शगुन-अपशगुन, धागे-ताबीज़, भूत-प्रेत, पुनर्जन्म, टोने-टोटके, राहु-केतु, शनि ग्रह, ज्योतिष, वास्तु-शास्त्र, पंचक, मोक्ष, हस्तरेखा, मस्तक रेखा, वशीकरण, जन्मकुंडली, काला जादू, तंत्र-मन्त्र-यंत्र, झाड़फूंक वगैरह वगैरह, इस किस्म के इनके हज़ारों अविष्कार हैं.

अब यूरोप को देखिये वहां धर्म की, परमात्मा की और अध्यात्म की बकवास को नकारते हुए चार सौ साल पहले व्यवस्थित ढंग से विज्ञान और तर्क पैदा हुआ. आज जो तकनीक और सुविधाएं हैं वो उसी की उपज है. और मजे की बात ये है कि धर्म और सदाचार की बकवास किये बिना औसत आबादी में आपस में कहीं ज्यादा मित्रता, समानता और खुलापन आया है. ट्रेन, होटल, थियेटर में सब बराबर होते हैं. साथ में खाते पीते हैं.

पहली बार सबको शिक्षा, स्वास्थ्य और मनचाहा रोजगार नसीब हुआ है. भारतीय माडल पर न तो कोई स्कूल खड़ा है, न कालेज, न कोई फैक्ट्री. न कोई तकनीक, न कोई राजनितिक व्यवस्था. विज्ञान, समाजशास्त्र, तकनीक, मेडिसिन, लोकतन्त्र इत्यादि सब कुछ विश्व के उन नास्तिकों ने विकसित किया है, जिन्हें हमारे बाबा लोग रात दिन गाली देते रहते हैं.

हमने विज्ञान को इतनी तवज्जो क्यों नहीं दी ? इसका जवाब ये है कि बचपन से होने वाले हमारे मन पर आस्तिक संस्कार. स्कूल हो या घर हो, हर तरफ दैवीय शक्ति को बचपन से हमारे कच्चे मन में बिठा दी जाती है. ऐसे संस्कारों में हम पलते हैं, बडे होते हैं और हमारे अंतर्मन में यह बैठ जाता है कि भगवान का अस्तित्व है, शैतान भी है. उसे नकारने के लिए मन तैयार नहीं हो पाता. इसलिए अपने उन लोगों के सामने कितना भी माथा पीटे, तो भी वे यही कहेंगे कि ‘कुछ तो है.’

आज भी टी.वी सिरियल मे अंधविश्वास, काल्पनिक बातों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाया जाता. हमें बचपन से कैसे तैयार किया जाता है, यह जानना बेहद जरूरी है. बचपन में मां कहती है उधर मत जाना भो आ जाएगा. बचपन में मां बताती है भगवान के सामने हाथ जोडकर बोल ‘भगवान मुझे पास कर दो.’

टीवी पर कार्टून में चमत्कार, जादू जैसी अवैज्ञानिक बातें दिखाकर बच्चों का मनोरंजन किया जाता है, लेकिन चमत्कार और जादू का बच्चों के अंतर्मन में गहराई तक असर होता है और बड़े होने के बाद भी इंसान के मन में चमत्कार और जादू के लिए आकर्षण कायम रहता है. स्कूल में जो विज्ञान सिखाया जाता है, उसका संबंध रोजमर्रा की जिंदगी से न जोडना. Law Of Monopoly मतलब 99% समाज के लोग इसी राह पर चल रहे हैं तो जरूर वे सही ही होंगे, हमें उनका अनुकरण करना चाहिये, ये समझ.

इंसानी जीवन भाव भावनाओं की ओर उलझा होने के कारण उसमें असीम सुख और दुख की विस्मयकारक शाॅकिंग मिलावट है, जो बातें उसे हिलाकर रख देती है और उसका चमत्कारों पर यकीन पक्का होता जाता है. हमने ये किया इसीलिये ऐसा हुआ और हमने ऐसा नहीं किया इसलिए हमारे साथ वैसा कुछ हुआ है. ऐसी कुछ योगायोग की घटनाओं को इंसान नियम समझकर जीवन भर उसका बोझ उठाता रहता है. Law Of Repeated Audio Visual Effect- इस तत्व के अनुसार समाज मे मीडिया, माउथ पब्लिसिटी, सामाजिक उत्सव इत्यादि माध्यम से जो इंसान को बार-बार दिखाया जाता है, सुनाया जाता है उस पर इंसान आसानी से यकीन कर लेता है.

‘डर’ और ‘लोभ’ ये दो नैसर्गिक भावनाएं हर इंसान के भीतर बड़े तौर पर होती है, लेकिन जिस दिन ये भावनाएं इंसान के जीवन पर प्रभुत्व प्रस्थापित करती है, तब वह मानसिक गुलामगिरी मे फंसता जाता है और अंत में सभी मे महत्वपूर्ण बात ‘चमत्कार’ होता है, ऐसा सौ बार आग्रह से बताने वाले सभी धर्म के ग्रंथ इस बात की वजह है. इसलिए धर्म ग्रंथ में बतायी गयी अतिरंजित बातें कैसे गलत है, ये वक्त रहते ही बच्चों को समझाने की कोशिश करे.

जो इंसान भूत प्रेत के कारण रात के अंधेरे में अकेले सोने, चलने से डरता है, समझ लेना वह सबसे ज्यादा अंधविश्वासी है. उसका मन मानता है कि भूत है और यह धारणा यह साबित करती है कि भूत पहले है. भूत है तो ईश्वर है. उसका अंधविश्वासी होना एक प्रकार के डर से है.

इसमें धार्मिक प्राणियों की कमी नहीं है, जो साइंस की हर चीज़ इस्तेमाल करते हैं और साइंस के विरुद्ध भी बोलते हैं. साइंस की भावनाएं आहत नहीं होती क्योंकि उसका प्रचार-प्रसार नहीं करना पड़ता. सत्य का कैसा प्रचार ! वह तो स्वतः ही स्वीकार हो जायेगा लेकिन झूठ को प्रचार की आवश्यकता होती है. जिन अविष्कारों ने हमारे जीवन और दुनिया को बेहतर बनाया है, वे सब अविष्कार उन्होंने किये, जिन्होंने धार्मिक कर्मकांडों में समय बर्बाद नहीं किया.

आज कोई भी धार्मिक प्राणी साइंस से संबंधित चीज़ों के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन ये साइंसदानों का एहसान नहीं मानते. ये उस काल्पनिक शक्ति का एहसान मानते हैं, जिसने मानव के विकास में बाधा डाली है. जिसने मानवता को टुकड़ों में बांटा है. साइंसदान, अक्सर नास्तिक होते हैं लेकिन धार्मिक प्राणी कहेंगें, ‘साइंसदानों को अक्ल तो हमारे God ने ही दी है.’ लेकिन ऐसे मूर्ख इतना नहीं सोचते कि उनके God ने सारी अक्ल नास्तिकों को क्यों दे दी ? धार्मिक प्राणियों को इतना मन्दबुद्धि क्यों बनाया ?

पिछले 150 साल में, जिन अविष्कारों ने दुनिया बदल दी, वे ज़्यादातर नास्तिकों ने किये या उन आस्तिकों ने किये जो पूजा-पाठ, इबादत नहीं करते थे. अंधविश्वास और कट्टरता से भरे किसी भी धर्म वालों ने ऐसा कोई अविष्कार नहीं किया, जिससे दुनिया का कुछ भला होता है. हां यह जरूर है कि ये अपनी किताबों में विज्ञान जरूर खोजते रहते हैं लेकिन अगली खोज क्या होगी, यह नहीं बताएंगे जब तक अगली खोज सफल न हो जाये. उसके बाद कहेंगे यह तो हमारी किताब में पहले से ही मौजूद थी.

इन्सान को उसके विकसित दिमाग़ ने ही इन्सान बनाया है, नहीं तो वह चिंपैंजी की नस्ल का एक जीव ही है. जो इन्सान अपना दिमाग़ प्रयोग नहीं करते, वे इन्सान जैसे दिखने वाले जीव होते हैं पर पूर्ण इन्सान नहीं होते. अपने दिमाग़ का बेहतर इस्तेमाल कीजिये, अंदर जो अंधविश्वासों का कचरा भरा है, मान्यताओं को साइड कीजिए, पूर्वाग्रहों को जला दीजिये, अंधेरा मिट जायेगा. आपके अंदर रौशनी हो जायेगी.

आस्था से नहीं विज्ञान से देश आगे बढ़ेगा. अध्यात्म, आस्था को अलग करके यदि किसी भी देश में केवल शिक्षक वर्ग धर्मनिरपेक्ष हो जायें, खासकर विज्ञान के शिक्षक तो यकीन कीजिए उस देश का मुकाबला पूरी दुनिया में कोई नहीं कर सकेगा. क्योंकि बाकी पीढियां शिक्षकों से सीखती है और एक शिक्षक का तथ्यात्मक होने की बजाय भावनात्मक होना या विचारधाओं के एवज में झूठ परोसना कई पीढ़ियों को अज्ञानी ही नहीं मानसिक अपंग भी बना सकता है.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…