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लखानी के मज़दूरों के संघर्ष से औद्योगिक नगरी में मज़दूर आन्दोलन की फ़िज़ा बदलने लगी है

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लखानी के मज़दूरों के संघर्ष से औद्योगिक नगरी में मज़दूर आन्दोलन की फ़िज़ा बदलने लगी है
लखानी के मज़दूरों के संघर्ष से औद्योगिक नगरी में मज़दूर आन्दोलन की फ़िज़ा बदलने लगी है
सत्यवीर सिंह

देश के श्रम क़ानूनों को अपने पैरों तले कुचलने वाले रसूखदार कारखानेदारों के अन्याय के विरुद्ध, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ द्वारा घोषित पखवाड़े भर के आन्दोलन की दूसरी कड़ी में, लखानी के मज़दूरों ने, मोदी सरकार में औद्योगिक नगरी फ़रीदाबाद का प्रतिनिधित्व करने वाले, केन्द्रीय भारी उद्योग राज्य मंत्री श्री कृष्णपाल गुर्जर और उनके माध्यम से देश के प्रधानमंत्री तक अपनी आवाज़ पहुँचाने का निश्चय किया हुआ था. इसीलिए वे, रविवार, 23 अप्रैल को सुबह 10 बजे, मथुरा रोड पर सेक्टर-28/ बड़खल मोड़ लाल बत्ती के कोने पर इकट्ठे होने शुरू हो गए थे. लखानी में काम करने वाले अनेक मज़दूर, फ़रीदाबाद के देहात से आते हैं. वे रोज़, असावटी स्टेशन से रेलगाड़ी पकड़ते हैं. उस दिन बिजली की लाइन में ख़राबी की वज़ह से गाड़ी घंटाभर से भी ज्यादा देर से आई. फलस्वरूप मोर्चा देर से शुरू हो पाया और मंत्री जी का काफ़िला उसी सड़क से गुज़र गया.

लखानी के मज़दूरों का आन्दोलन फैक्ट्री की चारदीवारी से बाहर सड़क पर आकर अपनी लय में आता जा रहा है. मज़दूर, अब किसी और की हिदायत का इंतज़ार नहीं करते, बल्कि एक दूसरे का हौसला खुद बढ़ाते हैं. आन्दोलन के दिन, ‘कोई ज़रूरी काम’ बताने वालों को टोकते हैं. नारे लयबद्ध होने लगे हैं, लाल झंडों की रवानगी खूबसूरत होने लगी है. आगे बैनर, फिर महिलाएं, फिर पुरुष और सबसे पीछे साइकिल, बाइक लिए मज़दूरों का जत्था, धीरे-धीरे सेक्टर 28 स्थित ‘सांसद सेवा केंद्र’ पहुंच गया. साइकिल और बाइक पर, तरतीब से बंधे लाल झंडे और गले में लटकाए छोटे-छोटे बैनर, ‘पूंजीपतियों की गुलाम, भाजपा सरकार मुर्दाबाद’, ‘सेठों की ताबेदारी मज़दूरों पर बुलडोज़र, ये है भाजपा सरकार का राष्ट्रवाद, देशभक्ति’, ‘जात-धर्म में नहीं बाटेंगे, मिलजुल कर संघर्ष करेंगे’, ‘हरियाणा सरकार शर्म करो, लखानी मज़दूरों का वेतन दिलाओ’, ‘लखानी की फैक्ट्रियों में कोई श्रम क़ानून लागू नहीं, हरियाणा सरकार जवाब दो’, मोर्चे में विशेष आकर्षण का केंद्र थे.

मंत्री जी के ‘सेवा केंद्र’ पर पहुंचकर वही हुआ जो हमेशा होता है. ‘बस पांच बंदे आ जाओ भई’, ये कहकर, पुलिस अधिकारीयों ने मोर्चे को बाहर सड़क पर रोक दिया. मंत्री जी के प्रथम, पीए डॉ बाटला जी को लखानी के मज़दूरों की व्यथा बताई गई, प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन उन्हें सौंपा गया. सरकारी प्रशासनिक अधिकारीयों के साथ ही, मज़दूर, मंत्रियों के पास क्यों जा रहे हैं; इसका एक विशेष कारण है. श्रम कानून लागू कराने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी, नाम उजागर ना करने की शर्त पर, बता रहे हैं कि हरियाणा सरकार ने उनके हाथ बांधे हुए हैं. खट्टर सरकार और मोदी सरकार ने, कौन से आदेश ज़ारी किए हैं? सरकारें इस हुक्म का खुलासा क्यों नहीं कर रहीं? जब ऐसे आदेश नहीं थे, अफ़सरों के हाथ खुले हुए थे, तब भी काइयां मालिक श्रम क़ानूनों की पालना ना करने की चोर गली तलाश लेते थे. क्या ये बात मूलचंद शर्मा जी और कृष्णपाल गुर्जर जी को मालूम नहीं ? डॉ. बाटला जी ने बहुत गंभीर मुद्रा धारण करते हुए कहा कि ‘ऐसा तो कुछ नहीं है. सरकार इन अधिकारीयों के हाथ क्यों बांधेगी भला ? कौन सा अधिकारी, ये कह रहा है, मुझे बताओ ?’ जैसा की उन्होंने कहा है, श्रम विभाग और पी एफ विभाग में ज्ञापन देकर मज़दूरों को जो तजुर्बा मज़दूरों को हुआ है, वह उन्हें बताया जाएगा.

एक बात हर मज़दूर, अच्छी तरह जान चुका है. मौजूदा सरकार की कथनी और करनी में कोई सम्बन्ध नहीं है. सारा ज़ोर मनभावन और रसीली घोषणाएँ करने पर रहता है. एक जगह, एक घोषणा करने के बाद, घोषणावीर, उसे लागू करने की मशक्क़त करने की बजाए, दूसरी जगह, दूसरी घोषणा करने के लिए बढ़ जाते हैं. सभा में गुडगाँव में संघर्षरत बेल्सोनिका, मारुती और उत्तराखंड में राजा बिस्कुट फैक्ट्री के मज़दूरों से सॉलिडेरिटी के प्रस्ताव भी पारित हुए.

सोमवार, 24 अप्रैल / डी सी कार्यालय

‘आप लोग मोर्चा लेकर आने से पहले, एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में साब से रु-ब-रु मिलने आया करों’, प्रशासन की इस सलाह का सम्मान करते हुए, सोमवार, 24 अप्रैल को 4 सरकारी अधिकारीयों से मिलने और ज्ञापन देने के लिए, 15 लोगों की टीम बनाई गई थी. निर्धारित 11 बजे, डी सी ऑफिस के गेट पर पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग ने अनावश्यक ‘झड़प’ का माहौल बनाया. पुलिस वालों को ऐसा क्यों लगता है कि समाज का हर व्यक्ति गैर-ज़िम्मेदार, अराजक, अनुशासनहीन है ? कारण वे ही बता सकते हैं, लेकिन उनका ऐसा सलूक टकराव जैसे हालात ज़रूर पैदा करता है.

‘चंडीगढ़ से आए, बड़े अधिकारीयों के साथ डी सी की मीटिंग’ संपन्न होने का इंतज़ार दो घंटे करना पड़ा. किसी दूसरी मीटिंग में जाने की जल्दी में, डी सी श्री विक्रम राठौर ने, बातचीत के लिए जो कुछ मिनट दिए, उनका कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए, उन्हें बताया गया कि फरीदाबाद में लखानी मज़दूर, जो अन्याय और उत्पीडन झेल रहे हैं, वह शायद ही देश में कहीं और हो. ज्ञापन स्वीकार करते हुए, उन्होंने उसी पर उप-श्रमायुक्त को ज़रूरी कार्यवाही के आदेश ज़ारी किए. मूल प्रश्न, हर मज़दूर के ज़हन में ये है कि मज़दूरों के जीवन-मरण के मुद्दों पर ‘चंडीगढ़ से आए बड़े अधिकारीयों’ की ऐसी मीटिंगें क्यों नहीं होतीं ?

श्रम उप-आयुक्त कार्यालय

डीसी कार्यालय पर, दो घंटे से भी ज्यादा चली ‘बड़ी मीटिंग’ के दौरान, मज़दूरों का प्रतिनिधिमंडल, श्रम कार्यालय चला गया था, जहाँ, श्रम उप-आयुक्त श्री अजयपाल डूडी ने, 5 लोगों की टीम से उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुना. हालाकि उन्हें लाखानियों द्वारा श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाए जाने का इल्म पहले से ही है. सहायक श्रम-आयुक्त, श्री सुशील कुमार मान भी मीटिंग में उपस्थित रहे. मज़दूरों को कहा गया कि वे, बकाया वेतन, ओवरटाइम, बोनस के लिए उन्हें अलग-अलग दावे दाख़िल करने की बजाए, सारी डिटेल एक कागज़ पर लिखकर दें और श्रम विभाग को दावे दाखिल करने की अनुमति दे देंगे, तो भी काफी होगा.

दूसरा; चूंकि इन लोगों से धमकाकर और बहकाकर स्तीफे ले लिए गए हैं, इसलिए सभी मज़दूर, जल्दी से जल्दी ग्रेचुटी के दावे दाखिल करें, जो सुशील कुमार मान जी के सम्मुख प्रस्तुत होंगे. वे उन्हें सबसे प्राथमिकता पर, एक-डेढ़ महीने में निबटाएंगे. श्रम उप-आयुक्त ने ये भी कहा कि यदि मालिक अपील में जाता है, तब भी उन्हें जल्दी से जल्दी निबटा दिया जाएगा, क्योंकि वे ही अपिलेट अधिकारी हैं. उस वार्तालाप से एक बात ये स्पष्ट हुई कि यदि ये प्रक्रिया जल्दी पूरी नहीं की गई, तो मज़दूरों के लिए कुछ बचेगा ही नहीं. ये एक गंभीर मामला है.

ज़िला प्रशासन ने, लखानियों की संपत्तियों की कुर्की में से, मज़दूरों का हिस्सा बचाकर ही दूसरे ऋण दाताओं को ले जाने की अनुमति देनी चाहिए थी. यदि, प्रशासन की लापरवाही-संलिप्तता के चलते, मज़दूरों के जायज़ बक़ाया की वसूली हो ही ना पाई, तो क्या होगा? ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ ने श्रम अधिकारीयों के सामने फिर वही मांग रखी, जो कई बार रखी जा चुकी है, “कागज़ों-दावों-मुक़दमों’ से पेट की भूख शांत नहीं होती. फ्रॉड, बे-ईमानी, चोरी, लम्पटता करने वालों को प्रशासन का खौफ़ क्यों नहीं रहा? ग़रीबों की झोपड़ियों की ओर तेज़ी से चलने वाले दैत्याकार बुलडोज़र अमीरों, सरमाएदारों की कोठियों की ओर क्यों नहीं खिसकते? मज़दूरों के कुल बक़ाया की कम से कम आधी रक़म, उन्हें एक महीने में मिल जानी चाहिए.

भविष्य-निधि उप-आयुक्त कार्यालय

भविष्य निधि विभाग में, उप-आयुक्त हैं ही नहीं. ज़रूरत भी क्या है !! एक सहायक आयुक्त से, दूसरे के दफ्तर भटकते हुए, लखानी मज़दूर प्रतिनिधिमंडल, सम्बंधित सहायक आयुक्त श्री कृषण कुमार जी के दफ्तर पहुंचा. मज़दूरों का सबसे बिस्फोटक और आक्रोशपूर्ण मुद्दा, लखानियों द्वारा मज़दूरों की पीएफ कटौती के डकार जाने के अपराध का है. देश में इस वक़्त मज़दूरों के मसले कितने गंभीर हो चुके हैं और आगे कितने गंभीर होने वाले हैं, इसका अहसास लगभग 1 घंटा चली इस मीटिंग में हुआ. हमारे 26 अक्तूबर को दी गए ज्ञापन का क्या हुआ, उस पर क्या कार्यवाही हुई ?

इस सवाल के जवाब में कई गंभीर खुलासे हुए, ‘मुझे तो ये फाइल इसी महीने सौंपी गई है. मैंने, लखानियों को घेरने के लिए कई ओर से कार्यवाही करने करनी शुरू की है. मालिकों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 406, ‘अमानत में ख़यानत’ के तहत मामला दर्ज करने की शिकायत पुलिस में की जा चुकी है, लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज करने में अनावश्यक देर कर रही है. अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है.’ ये शिकायत किस पुलिस थाने में की गई है, बताया जाए, हम वहां जाएंगे ?

इस सवाल का जवाब मिला, ‘मेरे लिए ये बताना ठीक नहीं होगा, आप इत्मिनान रखिए, मैं इसके पीछे लगा हुआ हूँ, एफआईआर जल्दी ही दर्ज होगी. मैं मज़दूरों का दर्द समझता हूँ. मेरे पिताजी, दिल्ली क्लॉथ मिल में काम करते थे, मैंने हड़तालें खूब देखी हैं, फ़ाके भी देखे हैं.’ आप जानते हैं कि अगर किसी कंपनी का दिवाला निकल जाता है, और सरकारी वसूली अधिकारी नियुक्त हो जाता है. उसके बाद हुई किसी भी वसूली में सबसे पहला अधिकार मज़दूरों का होता है. एक के बाद दूसरे बैंक संपत्तियां बेचकर अपनी वसूली करते जा रहे हैं.

बाज़ार की रिपोर्टों के मुताबिक़, सेक्टर 14 स्थित, इन लखानियों के एक-एक हज़ार गज के 4 प्लाट थे, जो 52 करोड़ में बिके, लेकिन पीएफ विभाग सोया रहा, इसे लापरवाही, निकम्मापन कहा जाए या सम्बंधित अधिकारीयों की आपराधिक संलिप्तता? इस सवाल के जबाब में मौजूदा परिस्थिति की भयावह तस्वीर सामने आई. ‘आपकी बात सही है लेकिन वह उस वक़्त की है जब लखानियों की फाइल मेरे पास नहीं आई थी. मैंने इस मामले को अपने हाथ में लेते ही, सरकारी वसूली अधिकारी (liquidator) के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ करने की अनुशंसा की है क्योंकि उसने मज़दूरों की पीड़ा और नियम-क़ायदे को नज़रंदाज़ करते हुए, बैंकों और दूसरे लेनदारों की वसूली के हक में फैसला सुनाया.’

वह वसूली अधिकारी कौन है, उसका नाम पता क्या है, हम वहां जाएंगे ? पहले इस सवाल का जवाब हां में मिला, ‘बताएंगे सब बताएंगे, मैं कुछ नहीं छुपाऊंगा’ लेकिन बाद में कहा; ‘मैं ये बता दूंगा, तो मेरी नौकरी ख़तरे में आ जाएगी. वैसे भी मेरा तो तबादला हुआ पड़ा है. कभी भी रिलीव किया जा सकता हूं.’ ये हालात हैं, देश में इस वक़्त. उन्होंने ये भी बताया कि इस वक़्त, हमारे दफ़्तर में एक भी इंस्पेक्टर नहीं है. ‘हम कहीं भी छानबीन करने या मुआयना करने नहीं जा सकते.’

अंत में, ज्ञापन देते हुए, दोहराया गया कि मज़दूरों के पीएफ की सारी वसूली होने तक, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ हर सप्ताह, भविष्य निधि विभाग से संपर्क करेगी और जिस बिन्दू पर वसूली प्रक्रिया में रूकावट आ रही होगी, उस बिन्दू को आन्दोलन के निशाने पर लिया जाएगा. सेक्टर 16 स्थित, भविष्य निधि क्षेत्रीय अधिकारी को भी आन्दोलन के दायरे में लिया जाएगा.

कर्मचारी राज्य बीमा निगम, सहायक निदेशक कार्यालय

भविष्य-निधि विभाग को आक्रोशपूर्ण ज्ञापन देने के बाद, ‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ का प्रतिनिधि मंडल सेक्टर 16 स्थित ‘क्षेत्रीय उप-निदेशक, कर्मचारी राज्य बीमा निगम कार्यालय पहुंचा. उप-आयुक्त, श्री संजय कुमार राणा से भी इस गंभीर मुद्दे पर, बहुत गंभीर वार्तालाप हुआ. मज़दूरों के वेतन से ईएसआईसी की कटौती, हर महीने हो रही है. मज़दूर नहीं जानते कि मालिक उसे जमा कर रहे हैं, या डकार रहे हैं. उन्हें और उनके परिवारों को तो ईलाज और ईएसआईसी की सारी सुविधाएं मिलनी चाहिएं, जिनके वे हक़दार हैं, और ये सुनिश्चित करना आपकी ज़िम्मेदारी है.

इस सवाल पर उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘स्थिति उससे ज्यादा गंभीर है, जितनी आप लोग समझ रहे हैं. ये मत सोचिए कि मज़दूरों की ईएसआईसी कटौती को हड़पने वाले लखानी अकेले हैं. फ़रीदाबाद में आज, 80% कारखानों में ये ही हो रहा है. जब कोई दुर्घटना हो जाती है, उसके बाद ईएसआईसी की रक़म जमा कर, कार्ड सृजित किया जाता है और मज़दूर को मेडिकल कॉलेज में ईलाज के लिए भेज दिया जाता है. ये गैर-क़ानूनी है. हम उन मेडिकल बिलों और दूसरे दावों को ना-मंज़ूर करने वाले हैं. हम जानते हैं कि उसके क्या परिणाम होंगे लेकिन क्या करें, मंज़ूर करेंगे तो हमारी नौकरी जाएगी.

‘1 अगस्त 2014 से लागू, नई इंस्पेक्शन पालिसी के अनुसार हमारे दफ़्तर में इंस्पेक्टर की भर्ती बंद हो गई है, हमें निर्देश हैं कि कहीं इंस्पेक्शन करने जाने की ज़रूरत नहीं है. जाना है तो चंडीगढ़ स्थित केन्द्रीय कार्यालय से अनुमति लो. केन्द्रीय कार्यालय सम्बंधित मंत्रालय से अनुमति लेकर ही, नीचे अनुमति देगा, जो कभी नहीं आती. हमारे दफ़्तर के इंस्पेक्टर, हर महीने कम से कम 60 कारखानों-औद्योगिक प्रतिष्ठानों में मुआयना किया करते थे, जुर्माने लगाते थे. तब कारखानेदार पैसा जमा करते थे. पिछले 5 सालों में हरियाणा भर में कुल 6 कारखानों में दबिश पड़ी है, उनमें भी कोई कार्यवाही नहीं हुई.’

हम लोग हरियाणा के कैबिनेट मंत्री श्री मूलचंद शर्मा और मोदी सरकार में राज्य मंत्री श्री कृष्णपाल गुर्जर के पास जा चुके हैं. उनका कहना है कि अधिकारी गैर-ज़िम्मेदार हैं, उन्हें सरकार की ओर से बिलकुल नहीं रोका जा रहा. रहस्यपूर्ण और खिसियाहट भरी मुस्कराहट के साथ जवाब आया, ‘हम क्या कह सकते हैं. आप भी जानते होंगे कि इंस्पेक्टर्स की भर्ती नहीं हो रही. इसका क्या कारण है ?’ ये है, ‘इंस्पेक्टर राज’ ख़त्म करने और ‘व्यवसाय की सुगमता’ की हक़ीक़त !!

अंत में मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को परिस्थितियों की भयावहता से परिचय कराने गए, लेकिन मंत्री जी तथा सम्बंधित पीए दफ़्तर में उपस्थित नहीं थे.

‘लखानी मज़दूर संघर्ष समिति’ के आन्दोलन के आगामी कार्यक्रम

1 मई, मज़दूर दिवस, शिकागो के अमर शहीदों की शहादत को सम्मान देते हुए, शानदार तरीके से मनाया जाएगा. मज़दूरों के लिए यह दिन अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करने और अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी पूरी करने के अहद को दोहराने का होता है. शाम 5.30 बजे, सभी साथी सोहना मोड़ टी पॉइंट पर इकट्ठे होंगे. वहां से बैनर, झंडे, तख्तियां लिए, नारे लगाते हुए, मज़दूर रैली, रास्ते में पड़ने वाले प्रमुख चौकों, पंजाब रोलिंग मिल चौक, लखानी चौक, बिजलीघर चौक, व्हर्लपूल चौक पर संक्षिप्त सभाएं करते हुए, आगे बढ़ेगी जिसका समापन रात 8 बजे, हार्डवेयर चौक पर होगा.

उसके पश्चात, ऊपर वर्णित सभी सरकारी कार्यालयों पर जाकर, आश्वासनों की समीक्षा की जाएगी. मज़दूरों के बक़ाया का भुगतान अगर नहीं हुआ तो आन्दोलन का स्थान दिल्ली रहेगा. मई के अंत में, जंतर मंतर पर सभी ट्रेड यूनियनों को सम्मिलित करते हुए, विशाल मज़दूर सभा होगी. उसके पश्चात श्रम, भविष्य-निधि तथा कर्मचारी राज्य बीमा निगम के केन्द्रीय कार्यालयों, केन्द्रीय श्रम मंत्रालय पर धरने-प्रदर्शन का कार्यक्रम चलाते हुए, लखानी के मज़दूरों को न्याय मिलने तक संघर्ष ज़ारी रहेगा.

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