आधी रात का समय था. रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था. रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी. उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आंसू पोछते हुए खड़ी थी. जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी, वह रूक सा गया.
लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी. वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा – तेरा नाम क्या है, तू कौन है और इतनी रात को यहां क्या कर रही है…?
लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी. उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहां लड़की देख रही थी तो वहां चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे। उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था. लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेंप गया और अपने साथियों के साथ वहां से चला गया.
लड़की उस शराब के नशे में धुत्त उस बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया – मेरा नाम रूपा है. मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूं. वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे. दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई.
बुजुर्ग – क्या बात करती है…तू अब कहां जाएगी… ?
लड़की – नहीं मालूम…!
बुजुर्ग – मेरे घर चलेगी…?
लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है, ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है, और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे !
बुजुर्ग – अब आखिरी बार पूछता हूं मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए…?
बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अंधेरे से घबराई हुई सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा – जी हां
उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला. वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था. किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुंचा और कुंडी खटखटाई.
थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको – बेटी लेकर आया हूं हमारे लिए. अब हम बांझ नहीं कहलाएंगे. आज से हम भी औलाद वाले हो गए.
पत्नी की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया.
- आशुतोष कुमार सिंह
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