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सपने बेचने वाला

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स्क्रीन पर एक तस्वीर उभरती है
धीरे-धीरे समझ आता है
यह कोई एंकर नहीं;सौदागर है,
जब वह अपने खाली झोले से
ग्लोबल सपने निकालकर
बिछा देता है रंगीन चादर से

वह इन्हें उलट पलटकर दिखाता है
उनके रंगों के असली होने का
विश्वास बोता है हमारे हृदय में
वह जानता है कि बीजारोपण के
कितने समय बाद
लगाया जाना है खाद-पानी
और एक पौधा,
विश्वास का पौधा जन्मता है
हमारे भीतर

अब हम सपने देखना नहीं
खरीदना चाहते हैं
एक वोट की कीमत में भला
कौन बेचेगा हमें ग्लोबल सपने
इस सौदागर के अलावा

सौदा पटते ही
वह मुस्कराते हुए स्क्रीन से
ओझल हो जाता है
इसी तरह वह बार बार आता है
खाली झोले में ग्लोबल सपने लेकर

  • भानु प्रकाश रघुवंशी

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ROHIT SHARMA

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