बिहार के पटना से उभरा स्वतःस्फूर्त छात्र आन्दोलन ने जितनी तेजी से केन्द्र की सत्ता की चूलें हिला दी, वह भारत की मोदी सरकार के लिए उतना ही स्तब्धकारी है. अमुमन ऐसी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी. किसान आन्दोलन के बाद पहली बार इस नेतृत्वविहीन छात्र आन्दोलन ने मोदी सरकार को पीछे हटने पर बाध्य किया है.
देशद्रोही मोदी सरकार और गैंग, जो लगातार देश के तमाम संसाधनों को अंबादानी के चरणों में माटी के मोल डाल रही है, वह बिहार के छात्र आन्दोलन से निपटने के लिए छात्रों के नेताओं की तलाश में जुट गई. उसे जब कोई नेता नहीं मिला तब उसने पटना में रहे कोचिंग माफिया, जो छात्रों से कोचिंग क्लास के नाम पर तगड़ी फीस वसूलता है, को ही यह भ्रष्ट और बेहाई सरकार ने नेता घोषित कर दिया.
छात्रों को भड़काने के आरोप में खान सर के खिलाफ बुधवार को एफआईआर दर्ज किया गया. पटना के पत्रकार नगर थाना की पुलिस ने हिरासत में लिए गए छात्रों के बयान के आधार पर खान सर समेत एसके झा सर, नवीन सर, अमरनाथ सर, गगन प्रताप सर, गोपाल वर्मा सर पर हिंसा भड़काने और साजिश करने के आरोप के तहत मुकदमा दर्ज किया है. पुलिस की मानें तो प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिए गए किशन कुमार, रोहित कुमार, राजन कुमार और विक्रम कुमार ने इस बात को कबूल किया है कि खान सर समेत अन्य ने छात्रों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था…..!
इन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज
इसी बयान के आधार पर पटना के विभिन्न कोचिंग संचालकों और अज्ञात तीन-चार सौ लोगों को षड्यंत्र के तहत नाजायज मजमा बनाकर सड़क मार्ग को बाधित करने, दण्डाधिकारियों और पुलिसकर्मियों को अपमानित करने, तोड़फोड़ करने और यातायात व लोकमार्ग को बाधित करने आदि के आरोप में भारतीय दंड विधान की धारा- 147/ 148/ 149/ 151/ 152/ 186/ 187/ 188/ 323/ 332/ 353/ 504/ 506/ 120 (B) के अंतर्गत आरोपित किया गया है.
पंकज मिश्रा कहते हैं वो आंदोलन करने कमरा लेकर नही रह रहे थे | वो तैयारी करने गए थे , अपने अच्छे दिनों के लिये जो आप नही दे सके | जो बरसों बरस तैयारी करते बच्चो का दुःख नही समझ सकता उससे ज्यादा क्रूर कोई नही हो सकता | इन्हें कभी इस बात के लिए मत कोसिये कि यह किसे वोट देते थे या कैसे व्हट्सएप फॉरवर्ड करते थे | इस महाझूठ की सुनामी से बिरले ही बच पाएं है | यह भी उंस हवा में उड़ गए तो क्या हुआ …. बचे तो आपके बाप चचा और ताऊ भी नही , आपकी मम्मी और मामी भी नही ….
लेकिन एक सच तो है कि बाप से पैसा मंगवाने से पहले ये सौ बार सोचते है | किसी परीक्षा का pre या mains नही निकलता तो यह उसी तरह दुखी होते है कि जैसे कोई घर मे मर गया हो .. ये हीटर पर जब दाल में दो आलू उबाल कर दाल भात चोखा बना कर खाते है तो इन्हें भी मां के हाथ में खाने की खूब याद आती होगी |
एक सिनेमा देख लेते है तो भीतर साथ ही एक गिल्ट में भी जीने लगते है कि अब आगे कहाँ कटौती करनी है |एक प्रिंट आउट का पैसा छाती पर बोझ की तरह लगता है | यह जेब से जब रुपया मीस कर निकालने के बाद बन मक्खन खाते है तो कमरे पर जाकर फिर से गिनते है कि कितना बचा | मकान मालिक से आंखें चुराते , मां बाप , गांव जंवार के लोगो से आंखें चुरास्ते ये बडी मजबूरी में सर उठाते है …..
और जब सर उठा के नौकरी के लिए आवाज़ उठाते है तो उस आवाज़ के साथ इस कथित लोकतंत्र में कैसा सुलूक होता है ये पटना से प्रयागराज तक की सड़कों हॉस्टल की दीवारों पर छपा हुआ है | दीवार पर लिखी इबारतों को पढिये , ये झूठ नही बोलती , ये सच दिखाती है | इस मुल्क को सच का सामना करना आज नही तो कल सीखना ही होगा | यह जितनी जल्दी हो जाये उतना अच्छा है |
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