Home गेस्ट ब्लॉग ऐसे शासक को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए जो राजा बनना चाहता हो

ऐसे शासक को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए जो राजा बनना चाहता हो

7 second read
0
0
215

ऐसे शासक को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए जो राजा बनना चाहता हो

पी. चिदंबरम

अमीर बड़ा बन जाता है और बड़ा अमीर हो जाता है. एक बार ये बड़े और अमीर हो गए तो स्पष्ट और मौजूदा खतरा यह है कि ये गैरजवाबदेह होंगे. अमेरिकी सीनेटर जान शरमन (पहला एंटीट्रस्ट एक्ट, 1890 जिसे शरमन एक्ट कहा जाता है) ने कहा है कि ‘अगर हम एक राजा को राजनीतिक शक्ति के रूप में सहन नहीं करेंगे, तो उत्पादन, परिवहन और जीवन के लिए आवश्यक किसी भी वस्तु की बिक्री पर राजा का अधिकार भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए.’ अमेरिका में स्टैंडर्ड आयल और एटीएंडटी पर कार्रवाई हुई थी. अलीबाबा, टैनेसेंट और दीदी पर चीन ने कार्रवाई की.

कई देशों में माइक्रोसाफ्ट, गूगल और फेसबुक भी ऐसी ही कार्रवाइयों का सामना कर रही हैं, क्यों ? क्योंकि वे अति बड़ी, अति अमीर और गैर-जवाबदेह बन गई हैं. उचित ही हम एक राजा को शासक के रूप में सहन नहीं करेंगे. हमें एक ऐसे शासक को बर्दाश्त भी नहीं करना चाहिए जो राजा बनना चाहता हो. कई देशों ने अपने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के कार्यकाल की अवधि इसीलिए सीमित कर दी है, ताकि कहीं वे पूर्णरूप से सत्ता हासिल न कर लें.

लोकतांत्रिक और अमीर

व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के रूप में हमेशा वास्तविक रूप से सत्ता में बने रहने का रास्ता निकाल लिया है. शी जिनपिंग ने सारी शक्तियां अपनी मुट्ठी में कर ली हैं, पद पर रहने की अवधियों को खत्म कर डाला है और अगले साल तीसरा कार्यकाल शुरू करने की तैयारी है. किसी भी परिभाषा से देख लें, दोनों ही देश लोकतांत्रिक नहीं हैं. न ही वे अमीर देशों की सूची में ऊपर आ पाए हैं.

प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से दुनिया के सबसे दस अमीर देशों में पहला लक्जमबर्ग, दूसरा आयरलैंड, तीसरा स्विटजरलैंड, चौथा नार्वे, पांचवां अमेरिका, छठा आइसलैंड, सातवां डेनमार्क, आठवां सिंगापुर, नौवां आस्ट्रेलिया और दसवां कतर है. कतर जहां राजशाही है और सिंगापुर जो सफल लोकतंत्र है, के अलावा बाकी आठ देश संपूर्ण रूप से लोकतांत्रिक देश हैं.

अमेरिका और कुछ कोशिश करूं तो आस्ट्रेलिया के अलावा इन बाकी देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के नाम भी मैं नहीं बता सकता. सार यह है कि शांत, आडंबरहीन, संकोची और लोकप्रिय नेताओं के नेतृत्व में कोई देश और उसके लोग अमीर और लोकतांत्रिक बन सकते हैं. जहां तक मेरी जानकारी है, इनमें से किसी पर अक्खड़पन या अहंकार का आरोप नहीं लगा है.

गैर-जिम्मेदारी की ओर बढ़ते

लोकतंत्र की बुराई परमसत्ता के साथ रहने के अलावा संसद तथा मीडिया की उपेक्षा है. ‘मैं यह सब जानता हूं’ या ‘मैं ही रक्षक हूं’, का राग अलापने की कोई जगह नहीं है. ये खूबियां तब हासिल हुई हैं जब एक राजनीतिक दल बहुत ज्यादा बड़ा, बहुत ज्यादा अमीर और गैर-जवाबदेह हो गया है. भाजपा दावा करती है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और हम जानते हैं कि वह भारत की सबसे अमीर पार्टी है. लोकसभा में पांच सौ तैंतालीस में से उसकी तीन सौ सीटें हैं और सभी राज्य विधानसभाओं की कुल चार हजार छत्तीस सीटों में एक हजार चार सौ पैंतीस सीटें उसके पास हैं.

अट्ठाईस में से सत्रह राज्यों में यह सत्तारूढ़ पार्टी है. इससे भी यह काफी बड़ी बन गई है. भाजपा बेहद अमीर भी है. एसोसिएशन फार डेमोके्रटिक राइट्स के अनुसार 2019-20 में अज्ञात स्रोतों और कुख्यात चुनावी बांडों के जरिए भाजपा ने दो हजार छह सौ बयालीस करोड़ रुपए जुटाए थे, जबकि सभी दलों ने मिला कर तीन हजार तीन सौ सतहत्तर करोड़ रुपए इकट्ठे किए थे. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के आखिरी चरण में भाजपा ने दो सौ बावन करोड़ रुपए खर्च किए, जिसमें से एक सौ इक्यावन करोड़ रुपए तो अकेले पश्चिम बंगाल में खर्च किए थे !

पिछले सात साल में भाजपा और गैर-जवाबदेह हो गई है. यह संसद में बहस नहीं होने देती, संसदीय समितियों की जांच के बिना और अक्सर दोनों सदनों में बिना चर्चा के विधेयक पास करवा लेती है, प्रधानमंत्री संसद और मीडिया का सामना करने से बचते हैं, और सरकार राजनीतिक विरोधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और छात्रों के खिलाफ सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग, एनआइए और अब एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) का इस्तेमाल करने से जरा नहीं हिचकती.

बेहद बड़ी, बेहद अमीर और गैर-जवाबदेह होने के बावजूद भाजपा ने लगातार चुनाव जीते हैं. जहां यह हारी, वहां विधायकों की खरीद-फरोख्त कर और उपकृत राज्यपालों की मदद से सरकार बनाने में इसे कोई आत्मग्लानि नहीं हुई. और भाजपा ने इस तरह के अनैतिक कार्य को बड़े गर्व के साथ ‘आपरेशन लोटस’ नाम दिया.

सिर्फ हार का डर

तीन कृषि कानूनों को पास करते वक्त और पूरी जिद के साथ इनका बचाव करने के दौरान भाजपा ने अपने अक्खड़पन और अहंकार का खुल कर प्रदर्शन किया. ये कानून अध्यादेश के जरिए लाए गए थे और संसद में बिना चर्चा के इन्हें कानून बना दिया गया था. किसानों ने पंद्रह महीने विरोध किया, लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा. किसानों को बातचीत के लिए जो न्योता दिया गया, वह बेमन से दिया गया और वार्ताएं राजनीतिक नाटकबाजी थी.

किसानों और उनके समर्थकों को जिस तरह से ‘खालिस्तानी और राष्ट्रविरोधी’ की संज्ञा दी गई, उसने अशोभनीयता की सारी सीमाएं तोड़ डालीं. पुलिस कार्रवाई बहुत ही बर्बर थी. सुप्रीम कोर्ट को जो जवाब दिए गए, वे अवज्ञाकारी थे. कुल मिलाकर सरकार अपने में तब तक आत्म-संतुष्ट और दंभी बनी रही, जब तक कि खुफिया रिपोर्टें और सर्वे के नतीजे बड़े दफ्तरों तक नहीं पहुंचे.

यह एकदम साफ है कि मोदी सरकार सिर्फ एक बात से डरी हुई है और वह है चुनाव में हार. तीस विधानसभा सीटों के उपचुनावों के नतीजों, जिनमें भाजपा सिर्फ सात सीटों पर ही जीत पाई, के तत्काल बाद पेट्रोल और डीजल के दाम घटा दिए गए. बिना कैबिनेट की मंजूरी के तीनों कृषि कानून वापस ले लेने का मोदी का फैसला स्पष्ट रूप से इस बात का संकेत था कि उन्हें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा (जहां आज उनकी पार्टी सत्ता में है) में भारी पराजय और पंजाब में पूरी तरह से बाहर हो जाने का डर सता रहा है.

प्रधानमंत्री की ‘देशभक्ति’ के लिए उनके मंत्री जो झूठी प्रशंसा करते रहे हैं, उससे यह उजागर हो गया कि वे खुशी में झूमने वाले नासमझ लोग हैं. जब मोदी ने कृषि कानून पास करवा लिए तो वे राष्ट्रभक्त थे और जब कृषि कानूनों को रद्द कर दिया तो वे और बड़े राष्ट्रभक्त हो गए !

भाजपा को जब तक चुनाव में हार का डर है, तब तक भारत में लोकतंत्र बचा रह सकता है. बेहतर तो यह होगा कि फरवरी 2022 में वास्तविक हार हो, तो भाजपा की अकड़ और अहंकार कुछ कम पड़े.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं मोबाईल एप डाऊनलोड करें

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…