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डोनाल्ड ट्रंप : ऐसे शख्स जो स्थापित व्यवस्थाओं को झकझोरने की क्षमता रखते हैं

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डोनाल्ड ट्रंप : ऐसे शख्स जो स्थापित व्यवस्थाओं को झकझोरने की क्षमता रखते हैं
डोनाल्ड ट्रंप : ऐसे शख्स जो स्थापित व्यवस्थाओं को झकझोरने की क्षमता रखते हैं

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में जिस अंदाज में दुनिया के देशों को ललकारा, वह किसी कूटनीतिक बयानबाजी से कहीं आगे है—यह आर्थिक युद्ध का सीधा ऐलान है. ट्रंप ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस मामले में अमेरिका अब और नहीं झुकेगा, अब प्रतिशोध का युग शुरू हो चुका है. उन्होंने यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील और खासतौर पर भारत को निशाने पर लेते हुए कहा कि ये देश दशकों से अमेरिका पर भारी टैरिफ लादते रहे, और अब वक्त आ गया है कि अमेरिका भी इन पर वैसा ही जवाबी प्रहार करे.

भारत के लिए यह चेतावनी किसी आर्थिक भूकंप से कम नहीं है. ट्रंप ने सीधे-सीधे कहा कि ‘भारत हम पर 100% टैरिफ लगाता है, यह अन्यायपूर्ण है !’ यह शब्द साधारण शिकायत नहीं, बल्कि सुपरपावर अमेरिका की खुली चुनौती है. उन्होंने ऐलान कर दिया कि 2 अप्रैल से रिसिप्रोकल टैरिफ लागू होगा—अगर भारत अमेरिकी वस्तुओं पर 100% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी भारतीय वस्तुओं पर उतना ही कर लगाएगा. इतना ही नहीं, अगर कोई देश अमेरिकी बाजार में घुसने के लिए गैर-आर्थिक बाधाएं (Non-monetary barriers) खड़ी करेगा, तो अमेरिका भी उसी तरीके से उनके उत्पादों को बाहर करेगा.

भारत के लिए यह स्थिति बेहद गंभीर है. ट्रंप केवल शब्दों के नेता नहीं, बल्कि डिस्रप्टिव एक्शन लेने वाले शख्स हैं. उनके इस ऐलान के बाद भारत के व्यापारिक गलियारों में हड़कंप मचना तय है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है—आईटी, फार्मा, ऑटोमोटिव, टेक्सटाइल्स समेत कई उद्योगों पर इस फैसले का सीधा असर पड़ेगा. सवाल यह है कि क्या भारत इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है ? क्या हम अमेरिका के आर्थिक प्रतिशोध को झेल पाएंगे, या फिर हमें अपनी अवास्तविक टैरिफ नीतियों पर दोबारा विचार करना होगा ?

ट्रंप की यह घोषणा सिर्फ अमेरिका की आर्थिक नीतियों का बदलाव नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन के नए युग की शुरुआत है. अब या तो देश अमेरिका के साथ संतुलित व्यापार नीति अपनाएं, या फिर ट्रंप की व्यावसायिक राष्ट्रवाद की आंधी में बह जाएं.

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में जो ऐतिहासिक संबोधन दिया, वह सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि आमूलचूल बदलाव का उद्घोष साबित हो सकता है. उन्होंने अमेरिकी जनता के सामने स्पष्ट कर दिया कि सत्ता अब उन लोगों के हाथ में नहीं रहेगी, जिन्हें जनता ने चुना ही नहीं. यह कोई साधारण वक्तव्य नहीं है. यह उन ताकतों के खिलाफ युद्ध का ऐलान है, जो दशकों से पर्दे के पीछे से अमेरिका को चला रही थीं. ट्रंप ने अपने शब्दों में आग भर दी जब उन्होंने कहा— ‘निर्वाचित नहीं होने वाले नौकरशाहों द्वारा शासित होने के दिन अब समाप्त हो गए हैं.’

ट्रंप का यह बयान अमेरिकी राजनीति में क्रांतिकारी मोड़ है. उन्होंने संकेत दे दिया कि उनका प्रशासन नौकरशाही के कुहासे को छांटकर रख देगा. दशकों से जो गुप्त ताकतें सरकारों को अपने नियंत्रण में रखती आई हैं, वे अब कांप रही हैं. वाशिंगटन डी.सी. की दीवारों के भीतर जो फुसफुसाहटें चलती थीं, वे अब जनता के शोर में दब जाएंगी.

यह केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए संदेश है. उन देशों के लिए, जो लोकतंत्र की आड़ में नौकरशाही तंत्र के गुलाम बन चुके हैं. उन राष्ट्रों के लिए, जहां जनता तो वोट डालती है, लेकिन फैसले उन ताकतों के हाथ में रहते हैं, जिन्हें जनता ने कभी चुना ही नहीं. ट्रंप का यह ऐलान उन सभी व्यवस्थाओं के लिए चेतावनी है, जो जनता के अधिकारों को हड़पकर सत्ता का खेल खेलते हैं.

भारत को इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत है. यहां नौकरशाही अघोषित राजशाही बन चुकी है. आम आदमी अपना भाग्य विधाता चुनता है, लेकिन फैसले वे लेते हैं जिन्हें जनता ने कभी चुना ही नहीं. आईएएस और अन्य प्रशासनिक अधिकारी अपनी कुर्सियों को राजसिंहासन मान बैठे हैं, जहां वे निर्वाचित प्रतिनिधियों तक को हल्के में लेते हैं. राजनीतिक इच्छाशक्ति से बने कानूनों को ये नौकरशाह कागजों में दबा देते हैं. जनता से संपर्क रखना तो दूर, वे अपनी अय्याशियों में मस्त रहते हैं और जब चाहें, किसी भी योजना को अपने हितों के हिसाब से रोक या चालू कर देते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा भारत के लिए सबक है. जब अमेरिका जैसा लोकतंत्र नौकरशाही की बेड़ियों को तोड़ सकता है, तो भारत क्यों नहीं ? यहां भी समय आ गया है कि नौकरशाही पर कड़े प्रहार किए जाएं. निर्वाचित सरकार को सर्वोच्च अधिकार दिए जाएं और नौकरशाही को जनता का सेवक बनाया जाए, न कि हुक्मरान. लोकतंत्र का असली मतलब यही है कि फैसले वे लें, जिन्हें जनता ने चुना है, न कि वे जो अपने विशेषाधिकारों की आड़ में लोकतंत्र का मजाक बना रहे हैं.

भारत की अर्थव्यवस्था का यह कैसा विकास है, जहां लाखों लोग विकास की दौड़ में पीछे छूट गए हैं ? वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, ‘भारत में हाशिए पर खड़े परिवारों के लिए अवसर सिकुड़ते जा रहे हैं.’ किसी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया हाउस का यह कथन कोई साधारण आलोचना नहीं, बल्कि मोदी सरकार की खोखली आर्थिक नीतियों का जीता-जागता प्रमाण है.

आज़ादी के समय यह सपना देखा गया था कि इंडस्ट्रियल सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएगा. लेकिन सच्चाई क्या है ?1950 में जहां कृषि का योगदान 55.4% था, वहीं आज यह घटकर महज़ 16.5% रह गया है. दूसरी ओर, देश की 48.7% आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है. सरकार ने विकास के नाम पर जिस इंडस्ट्रियल सेक्टर को ‘प्राइम मूविंग फ़ोर्स’ बनाया, वही आज रोजगार पैदा करने में सबसे बड़ा फेलियर साबित हुआ है.

हमें ऐसी नीति की जरूरत है जिससे लोग कृषि से बाहर निकलकर अच्छे रोजगार पा सकें, लेकिन हम फंस गए हैं. मोदी सरकार की ‘सबका विकास’ नीति आखिर किसका विकास कर रही है ? अगर इंडस्ट्रियल सेक्टर वास्तव में अर्थव्यवस्था को लीड कर रहा होता, तो आज मजदूरों को पेट भरने के लिए 1000 मील दूर पलायन नहीं करना पड़ता. पति मज़दूरी करने दूर चले गए और महिलाएं खेतों में पसीना बहाने को मजबूर हैं.

सरकार को यह तक समझ नहीं आया कि इंडस्ट्रियल ग्रोथ पूरी तरह एग्रीकल्चरल ग्रोथ पर निर्भर है. अगर कृषि में 1% वृद्धि होती है, तो इंडस्ट्रियल ग्रोथ 0.5% और नेशनल इनकम 0.7% बढ़ जाती है. लेकिन यहां तो स्थिति उलटी हो गई. 2017 आते आते देश में मैन्युफैक्चरिंग भी बार सिकुड़ गई, और आज तक उबर नहीं पाई.

मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे तमाम खोखले नारे गढ़े, लेकिन ग्रामीण भारत में बकौल वाशिंगटन पोस्ट, ‘हम बस इंतजार कर रहे हैं, अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं.’ यह निराशाजनक स्थिति दर्शाती है कि कैसे गलत आर्थिक नीतियों ने गांवों को रोजगारविहीन बना दिया है.

21वीं सदी की शुरुआत में सरकार को अपनी गलती माननी पड़ी कि भारत की अर्थव्यवस्था का असली ‘प्राइम मूविंग फ़ोर्स’ इंडस्ट्रियल सेक्टर नहीं, बल्कि कृषि है. लेकिन आज एक चौथाई 21वीं सदी बीत जाने के बाद भी एग्रीकल्चर सेक्टर की उपेक्षा करके यही गलती दोहराई जा रही है. क्या मोदी सरकार बताएगी कि देश के आधे से अधिक लोगों को गरीबी में धकेलकर कौन सा विकास किया जा रहा है ?

वाशिंगटन पोस्ट कहता है, ‘भारतीय अब प्रति व्यक्ति आय में होंडुरास से भी गरीब हो गए हैं.’ यह आंकड़ा केवल चेतावनी नहीं, बल्कि तमाचा है उन नेताओं पर, जो सिर्फ न्यूज चैनलों पर भारत को महाशक्ति बनाने के झूठे दावे करते हैं. आज भी हजारों बस्तियों में लोग घुप्प अंधेरे में बैठकर भविष्य की बाट जोह रहे हैं, जबकि मोदी सरकार डिजिटल इंडिया के आंकड़ों का जाल बुनने में व्यस्त है.

भाजपा में मोदी जी के अलावा प्रधानमंत्री पद का कोई दावेदार नहीं है इसलिए नंबर दो कि रेस में कौन है, इस पर कयास लगाने की जरूरत ही नहीं है. मोदी जी अपने कार्यकाल में देश को ऐसे मोड़ पर ले जा चुके होंगे कि भाजपा को अगला प्रधानमंत्री चुनने की जरूरत ही नहीं रहेगी. यही कारण है कि फिलहाल भाजपा में मोदी जी के अलावा कोई और प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं है. पार्टी के बाकी नेता सिर्फ राजनीतिक साज-सज्जा का हिस्सा हैं.

जो भी हो, डोनाल्ड ट्रंप एक बेहद डिस्रप्टिव नेता हैं—ऐसे शख्स जो स्थापित व्यवस्थाओं को झकझोरने की क्षमता रखते हैं. वे सिर्फ सत्ता चलाने नहीं, बल्कि आमूलचूल बदलाव लाने के इरादे से राजनीति में आए हैं. पारंपरिक नेताओं की तरह राजनीति करना उनकी फितरत नहीं, बल्कि वे स्थापित व्यवस्था पर सीधा प्रहार करते हैं. ट्रंप जहां भी होते हैं, वहां स्थिरता की जगह उथल-पुथल जरूर होती है, लेकिन इसी उथल-पुथल से नए दौर की नींव पड़ती है. कभी कभी ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत विध्वंस से भी होती है.

  • मनोज अभिज्ञान

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ROHIT SHARMA

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