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श्वान

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चिता की अग्नि से
सर्द मौसम में
गर्मी ले रहे श्वान को
पाप-पुण्य (भला-बुरा)
स्वच्छता-गंदगी का
कोई ख्याल नहीं रहता
उसे सिर्फ स्व जीवन हेतु
ठंड में कांपती हड्डियों को
सेकना था

सत्ता के श्वान भी
सिर्फ और सिर्फ
अपनी गर्मी बनाए रखने को
चिताओं की अग्नि सेक रहे हैं
उन्हें
पाप-पुण्य (भला-बुरा)
स्वच्छता-गंदगी का
भान होते हुए भी
गर्मी लेनी है

कवि खोज रहा है
उन पंक्तियों को
जिसमें
जानवर और आदमी में
फर्क किया जा सके

  • डॉ. नवीन जोशी

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ROHIT SHARMA

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