हिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक
पहले देश में एक तरह के नक्सली होते थे, अब कई प्रकार के नक्सली यहां-वहां पाये जाते हैं. पहले सिर्फ बन्दूक लेकर सरकार के खिलाफ लड़ने वालों को नक्सली कहा जाता था, अब पाये जाने वाले नक्सलियों की किस्में यह है :
- सरकार के खिलाफ लिखने वाले पत्रकार,
- पूरी मज़दूरी मांगने वाले मज़दूर,
- उद्योगपतियों को ज़मीन देने से इंकार करने वाले किसान,
- भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता,
- समान अधिकारों की मांग करने वाली महिलायें,
- सरकार के खिलाफ केस लड़ने वाले वकील,
- पुलिस के जुल्मों के खिलाफ फेसबुक और व्हाट्सएप पर लिखने वाले लोग,
- आरटीआई कार्यकर्ता,
- सवर्णों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले दलित,
- हड़ताल करने वाले सरकारी कर्मचारी,
- प्राइवेट कम्पनियों की मज़दूर यूनियनों के कार्यकर्ता,
- छात्र नेता,
- सरकार के खिलाफ फैसला देने वाले जज,
- पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार ,
- किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी का कार्यकर्ता,
- कोई भी आदिवासी लड़की जिसके साथ पुलिस वाले बलात्कार करना चाहें,
- आदिवासी,
- और कोई भी अन्य नागरिक जिसे पुलिस नक्सली घोषित करना चाहे,
लिस्ट अभी पूरी नहीं हुई है, भक्त श्रद्धा अनुसार नाम जोड़ लें.
क्या आपको अभी भी सारकेगुड़ा का नाम याद है ? छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का सारकेगुड़ा गांव. अट्ठाईस जून 2012 की रात को पुलिस और सीआरपीएफ ने बीज पूजा करते 17 आदिवासियों को गोली से उड़ा दिया था, जिसमे छह बच्चे थे.
आपको याद है उसी रात भारत के गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने इसे माओवादियों के विरुद्ध अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी बताया था. रमन सिंह ने भी इसे नक्सलियों के साथ मुठभेड़ बताया था. आपको याद होगा कि चिदम्बरम ने मारे गए तीन बड़े नक्सलवादियों के नाम भी बताये थे. वो नाम थे – महेश , नागेश और सोमलू.
मेरे सामने पुलिस की चार्जशीट पडी है. पुलिस की चार्जशीट में महेश और सोमलु का नाम ही नहीं है यानी चिदम्बरम ने झूठ बोला था. नागेश नाम का एक बच्चा ज़रूर मारा गया था, पर वो तो बस पन्द्रह साल का था. जिस नागेश को चिदम्बरम ने नक्सली कहा वह दसवीं कक्षा में पढता था. वह सरकारी हास्टल में रहता था. नागेश का हास्टल सीआरपीएफ कैम्प के बराबर में बना हुआ था.
नागेश पढ़ाई में बहुत तेज़ था. उसे पढ़ाई में स्कूल में प्रथम आने के कारण सरकार ने विशाखापत्तनम की सैर पर सरकारी खर्चे पर भेजा था. पुलिस ने इसी बच्चे को नक्सलाईट बताया है और उस पर पुलिस पर हमला करने का सन नौ में मामला दिखाया है जबकि वह मात्र ग्यारह साल का था और सरकारी हास्टल में रहता था.
सरकार ने दावा किया था कि वहां नक्सली भी मौजूद थे और पुलिस ने एक थ्री-नाट-थ्री की रायफल भी बरामद की है लेकिन कोर्ट में दाखिल की गयी चार्ज शीट में किसी रायफल का कोई ज़िक्र नहीं है. असल में कोई राइफल मिली ही नहीं यानी पुलिस ने झूठ बोला था.
सरकार ने कहा था कि तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट जनता के सामने आ जायेगी लेकिन जांच रिपोर्ट 2019 में आई. जांच रिपोर्ट में पाया गया कि मारे गए सभी लोग निर्दोष निहत्थे आदिवासी थे और उनके पास कोई हथियार नहीं था और वहां कोई माओवादी नहीं था.
इस जांच रिपोर्ट के आने के बाद मैं तथा सोनी सोरी और गांव के हजारों आदिवासी बासागुड़ा थाने गए. हमने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह, सीआरपीएफ के अधिकारियों और हमले में शामिल सिपाहियों के खिलाफ एफआईआर के लिए उपवास और धरना किया. सरकार के प्रतिनिधियों ने मुझे फोन करके 3 महीने में कार्रवाई करने का आश्वासन दिया लेकिन आज डेढ़ साल के बाद भी किसी के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं लिखी गई.
आदिवासियों को मारने वाले सिपाही और अधिकारी हर जाति और हर धर्म को मानने वाले होते हैं. आर्थिक लूट पर टिकी हुई पूंजीवादी व्यवस्था जाति धर्म और पार्टी से बड़ी होती है. यह हर जाति, हर धर्म और हर पार्टी के व्यक्ति को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना जानती है. जब तक इस लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था को नहीं बदला जाएगा, तब तक विभिन्न जातियों और विभिन्न संप्रदायों के बीच झगड़े और हिंसा को नहीं मिटाया जा सकता. मानव अधिकारों का दमन लोकतंत्र को कुचला जाना और संविधान की अवहेलना भी इसी पूंजीवादी लूट से निकलती है.
पुलिस अधिकारियों को पता होता है कि जिसे वह फंसा कर जेल में डाल रहे हैं वह निर्दोष है. संजीव भट्ट के साथी पुलिस अधिकारियों को मालूम है कि संजीव भट्ट निर्दोष है. जस्टिस लोया की हत्या के समय उनके साथ जो जज मौजूद था, वह आज सुप्रीम कोर्ट का जज है. एक जज की मौत पर बाकी जजों ने हत्यारों को बचाने वाले फैसले दिए.
हम गरीबों को गाली देते हैं कि यह लोग 500 रुपए और पव्वे में अपना वोट बेच देते हैं
लेकिन इन बड़े पुलिस अधिकारियों और जजों के सामने दारू के पव्वे और 500 रुपए का लालच नहीं होता, फिर यह किस लालच में बेईमानी करते हैं. क्या यह अधिकारी नहीं जानते कि मोदी और अमित शाह का राज हमेशा नहीं रहेगा ?
आज सुप्रीम कोर्ट के जज हो, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग हो, चुनाव आयोग हो, पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी हो सब अपना जमीर बेच चुके हैं. संविधान को कुचल रहे हैं और मोदी और अमित शाह का हुकुम बजाने के लिए अपने फर्ज से गद्दारी कर रहे हैं. क्या यह लोग एकदम से कट्टर हिंदू बन गए हैं और हिंदुत्व की रक्षा के लिए संविधान को भूल कर काम करने लगे हैं ?
क्या यह लोग अचानक अंबानी और अडानी के वफादार बनकर कानून और संविधान को कुचलने में लग गए हैं ? या यह सिस्टम हमेशा से ही ऐसा भ्रष्ट और जनता का विरोधी था और अब सारी बातें हमको दिखाई देने लगी हैं ?
जंगल के जानवरों में शेर दूसरे शेर को नहीं खाता. हमारी बस्ती का एक कुत्ता दूसरे कुत्ते को नहीं खाता लेकिन नेता की कहने से एक जज दूसरे जज की हत्या के षड्यंत्र में साथ देता है. नेता के कहने से एक पुलिस अधिकारी, दूसरे पुलिस अधिकारी को फर्जी मामले में जेल में डलवा देता है. यह लोग जानवरों से भी गए बीते साबित हो रहे हैं.
देश के जमीनों, खदानों, हवाई अड्डा, रेलवे को अमीर धनपशुओं को सौंपने के लिए अदालत पुलिस सरकारी अधिकारी चुने हुए नेता मिलकर काम कर रहे हैं. देश को बचाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, मानव अधिकार कार्यकर्ता फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में डाले जा रहे हैं. इसी तरह से अंग्रेजों के समय में भारतीय लोग अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही देशवासियों के ऊपर जुल्म करते थे. जलियांवाला बाग में गोली चलाने वाले भारत के सिपाही थे.
आज खतरे में वह है जो संविधान की बात कर रहे हैं कानून की बात कर रहे हैं. इंसानियत की बात कर रहे हैं. आज ताकतवर वह है जो जालिम है, बलात्कारियों को बचाने वाला है, अपराधियों को बचाने वाला है, देश को बर्बाद करने वाला है. जब धर्म में फंसकर अपना दिमाग भ्रष्ट करके जनता अपना ही सर्वनाश करने पर आती है तो वह ऐसे ही गुंडे बदमाशों को अपने सिर पर बिठा लेती है. उसका वर्तमान तो नष्ट होता ही है भविष्य भी नष्ट हो जाता है.
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