गिरीश मालवीय
सिंगापुर की संसद में लोकतंत्र पर चर्चा हो रही थी. इस चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए नेहरू की तारीफ़ की और भारत में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए हुए कहा कि ‘नेहरू का भारत अब ऐसा बन गया है, जहां मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लोकसभा के आधे से अधिक सांसदों के खिलाफ रेप, हत्या जैसे आरोपों सहित आपराधिक मामले लंबित हैं.’
इस बात का मोदी सरकार को इतना बुरा लगा कि भारत के विदेश मंत्रालय ने सिंगापुर के उच्चायुक्त तलब किया और कहा कि ली सीन लूंग की टिप्पणी अनावश्यक थी लेकिन ली सीन लूंग सच ही तो कह रहे हैं. भारत में पिछले तीन चार दशको में राजनीति के अपराधीकरण की प्रवृति तेजी से बढ़ रही है.
2004 में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या 128 थी, जो वर्ष 2009 में 162 और 2014 में 185 और वर्ष 2019 में बढ़कर 233 हो गई है. 2004 से 2019 तक आपराधिक छवि वाले सदस्यों की लोकसभा में मौजूदगी 44 फीसदी बढ़ गई थी. इसी तरह, गंभीर आपराधिक मामलों में मुकदमों का सामना करने वाले सांसदों विधायको की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.
देश में कुल सांसद विधायको पर दिसम्बर 2018 मे 4,122 आपराधिक मुकदमे चल रहे थे, वह बढकर सितंबर 2020 में 4,859 तक पहुँच गए हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनकर आए सांसदों में से 233 पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से सबसे अधिक सांसद भाजपा के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे हैं. भाजपा के चुनकर आए कुल 116 सांसदों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज है और कांग्रेस के 29 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं.
आपको याद दिला दूं कि प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ वर्ष पहले लालकिले से घोषणा की थी कि राजनीति से अपराधियों का वे धीरे-धीरे सफाया करेंगे. 2014 में उन्होने राजस्थान में चुनावी भाषण दिया था, उस वक्त वे वे कहते हैं, ‘आजकल यह चर्चा जोरों पर है कि अपराधियों को राजनीति में घुसने से कैसे रोका जाए. मेरे पास एक इलाज है और मैंने भारतीय राजनीति को साफ करने का फैसला कर लिया है.’ ‘मैं इस बात को लेकर आशांवित हूं कि हमारे शासन के पांच सालों बाद पूरी व्यवस्था साफ-सुधरी हो जाएगी और सभी अपराधी जेल में होंगे. मैं वादा करता हूं कि इसमें कोई भेदभाव नहीं होगा और मैं अपनी पार्टी के दोषियों को भी सजा दिलाने से नहीं हिचकूंगा.’ और आज क्या स्थिति है हम सब जानते हैं.
एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स के अनुसार 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में उतरे 25 प्रतिशत उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में भाजपा के सबसे ज़्यादा 40% दाग़ी प्रत्याशी मैदान में थे. वहीं दूसरे नंबर पर बसपा है, जिसके 38% प्रत्याशियों का क्रिमिनल रिकॉर्ड था. तीसरे चरण के उम्मीदवारों में भाजपा के 46 प्रतिशत उम्मीदवारों का बैकग्राउंड क्रिमिनल है. समाजवादी दल के तो 52 प्रतिशत उम्मीदवारो पर क्रिमिनल केस चल रहे हैं.
उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों की संख्या बढ़ गई है. जहां 2017 के चुनाव में 630 में से 92 प्रत्याशी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे, वहीं इस बार 632 में से 101 प्रत्याशी ऐसे हैं जो कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं. हेट स्पीच , मर्डर, अपहरण, लूट इन सबमें बीजेपी शीर्ष पर काबिज है.
अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने डिसीजन दिया था कि आगामी चुनावो मे राजनीतिक दलों को उम्मीदवार तय करने के 48 घंटे के भीतर उनके क्रिमिनल रिकार्ड को सार्वजनिक करना होगा. साथ ही यदि किसी दागी को उम्मीदवार बनाया है तो उसे यह भी बताना होगा कि क्यों उन्होंने इसे उम्मीदवार बनाने की फैसला लिया. राजनीतिक दलों को यह सारी जानकारी टीवी और समाचार पत्रों में प्रकाशित कराने के साथ ही पार्टी की अधिकृत वेबसाइट के मुख्य पृष्ट पर अपराधिक छवि वाले उम्मीदवार के रुप में प्रदर्शित करना होगा. आप एक बार बीजेपी कांग्रेस और अन्य दलों की वेबसाइट पर खोज कर देखिए कि इस संदर्भ क्या आपको कोई जानकारी मिल रही है ?
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