हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना
न्यूज में देख रहा था, शिक्षा विभाग के बड़े हाकिम एस. सिद्धार्थ रोड पर किसी ई रिक्शा पर स्कूल जा रही लड़कियों से पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछ रहे थे. अच्छा लगा देख कर. एकाध दिन पहले वे किसी लोकल ट्रेन से किसी देहाती स्कूल के निरीक्षण को भी गए थे. यह भी अच्छा लगा.
हाकिमों की ऐसी सक्रियता पॉजिटिव बात है. पिछले हाकिम के. के. पाठक ने तो ख़ैर इतनी सक्रियता दिखाई कि हंगामा ही खड़ा कर दिया था. विस्तृत विश्लेषण होना चाहिए कि उनके उस हंगामेदार दौर ने शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थियों का कितना भला किया, कितना बेवजह का उबाल पैदा किया. इन हाकिमों को कभी प्राइवेट स्कूलों का भी रुख करना चाहिए. क्यों नहीं करना चाहिए ? आखिर उनमें भी हमारे ही राज्य, समाज और परिवार के लाखों बच्चे पढ़ते हैं.
देखना चाहिए कि दस एकड़ जमीन पर विशालकाय बिल्डिंग में चलने वाले अति महंगे डिजाइनर स्कूलों से लेकर चार बित्ता जमीन पर दो या तीन छोटे कमरों में चलने वाले स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई कैसी हो रही है, स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार की शिक्षा नीति के अनुसार है या नहीं, शिक्षक कैसे हैं, उनकी योग्यता क्या है, उन्हें वेतन कितना मिलता है आदि आदि.
सरकार की नीति कहती है कि स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षक ट्रेंड होने चाहिए. ट्रेंड मतलब बी एड, डी एल एड आदि. सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पष्ट कर दिया है कि जो ट्रेंड नहीं है वह किसी भी स्कूल में पढ़ा नहीं सकता.
इन हाकिमों को देखना चाहिए कि सरकार के इस दिशा निर्देश का पालन प्राइवेट स्कूलों में हो रहा है या नहीं. अगर नहीं हो रहा है तो यह समाज और बच्चों के साथ धोखा है, साथ ही सरकार के प्रति अपराध है. हाकिमों को इन पर कार्रवाई करनी चाहिए, अखबार वालों को, टीवी और यू ट्यूब वालों को ऐसी कार्रवाइयों के बारे में खबरें और वीडियो चलानी चाहिए.
डिजाइनर स्कूलों से लेकर मुहल्ले के किराए के छोटे मकान में चलने वाले प्राइवेट स्कूलों की फीस स्ट्रक्चर और उनमें दी जा रही सुविधाओं का समीकरण इन हाकिमों को देखना चाहिए. यह भी देखना चाहिए कि यूनिफॉर्म, किताबें आदि के बहाने कोई स्कूल लूट तो नहीं मचा रहा.
हाकिमों का दायित्व है कि वे ऐसी लूट से बच्चों के अभिभावकों को बचाएं. लोग बड़ा नाम लेंगे. अभी सरकारी स्कूलों के मास्टरों की मुश्कें कसने से जितनी वाहवाही वे बटोर रहे है, उससे अधिक वाहवाही भी मिलेगी. सरकारी मास्टरों की मुश्कें कसना आसान है, प्राइवेट स्कूलों की लूट पर अंकुश लगाना कठिन. तो, अखबार वालों के शब्दों में इन ‘कड़क अफसरों’ को अपना कड़कपन उन लुटेरे तत्वों पर भी दिखाना चाहिए.
आज के दौर में शहरों में रिक्शावाले, खोमचे वाले, घरेलू दाई नौकर का काम करने वाले तक अपने बच्चों को किसी प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाने की चाहत रखते हैं. ऐसे न जाने कितने पढ़ाते भी हैं.
तमाम आर्थिक जद्दोजहद को झेलता लोअर मिडिल तो बड़ी संख्या में अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही भेजता है. यह वर्ग महंगी ही होती जाती फीस और अन्य तमाम शुल्कों से बुरी तरह हलकान है. उनकी मासिक आमदनी का बड़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर ही खर्च हो जा रहा है. हाकिमों को देखना चाहिए कि सरकार के दिशा निर्देश, बच्चों को उपलब्ध सुविधाओं, शिक्षकों के वेतन स्तर आदि का मेल कैसा है इन प्राइवेट स्कूलों में.
प्रिंसिपल से लेकर पियून तक, किसी को अंग्रेजी नहीं आती और तब भी अंग्रेजी स्कूल खोल कर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का दम भरने वाले स्कूल भी हजारों में हैं. ऐसे भी बहुतेरे प्राइवेट स्कूल हैं जिनके शिक्षकों और शिक्षण का स्तर बेहद निम्न है. वे बड़ी मात्रा में अधकचरी जमात पैदा कर रहे हैं. छात्रों की और इनका सबसे बड़ा शिकार बिहार का लोअर मिडिल क्लास है. हाकिमों को यह सब देखना चाहिए.
सिर्फ सरकारी मास्टरों को खूब खूब टेंशन दे देने से शिक्षा नहीं सुधरने वाली. इन शिक्षकों के मानस और उनके हितों से भी सामंजस्य बिठाना होगा. अगर शिक्षकों के मानस और उनके अधिकारों के साथ बिना कोई तालमेल बिठाए सिर्फ हौआ खड़ा करना ही है तो हौआ तो खड़ा हो जाएगा, लेकिन शिक्षा और बच्चों का भला नहीं होगा. दुनिया का प्रत्येक शिक्षा शास्त्री इस बात को दोहराएगा कि हौआ खड़ा करना और शिक्षा में सुधार, दोनों दो बातें हैं.
प्राइवेट स्कूलों में बड़ी संख्या ऐसे शिक्षकों की है जो भयानक रूप से शोषित हैं. हाकिमों की कुछ न कुछ जिम्मेदारी तो जरूर बनती होगी ऐसे शिक्षकों के प्रति. उन्हें इन जिम्मेदारियों के प्रति भी कभी सचेष्ट होना चाहिए. ये शिक्षक बहुत दुआ देंगे उन्हें और बच्चों के अभिभावक भी दुआ देंगे, अगर उनके शोषण पर भी अपना ‘कड़क’ मिजाज दिखाएं.
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