Home ब्लॉग धर्म, भोजन और हिन्दुत्ववादी ताकतें

धर्म, भोजन और हिन्दुत्ववादी ताकतें

18 second read
0
0
570

 

मुर्गे, बकरे का मांस या मछली खाने के बजाय बीफ ज्यादा खाओ : मेघालय सरकार में मंत्री शूलई. भाजपा नेता शुलई ने कहा – ‘एक लोकतांत्रिक देश में हर कोई अपनी पसंद का खाना खाने के लिए स्वतंत्र है.’

इसका जवाब देते हुए एक नागरिक लिखते हैं, ‘हिन्दुत्व तो दिखावा हैं असली तो देश को लूटना है.’ और यही मुख्य बात है.

दरअसल भाजपा और उसके मातृसंस्था आरएसएस का दंगाई और गद्दारी का दागदार अतीत रहा है. यह मनुस्मृति आधारित ब्राह्मणवादी देश का निर्माण करने के लिए समाज में मौजूद हर लोकप्रिय नारों का इस्तेमाल अपने एजेंडा के लिए करता है. गाय वह नारा हो, या तिरंगा अथवा भगवा रंग का अथवा हिन्दुत्व का.

यह अनायास नहीं है कि अपने दोहरे चरित्र के लिए कुख्यात भाजपा-आरएसएस एक क्षेत्र में गाय को पूजने, उसको माता कहने और गोमांस के खिलाफ अभियान चलाकर लोगों को अपमानित करता है, उनकी हत्या कर लोगों में आतंक फैलाता है, वहीं दूसरे क्षेत्र में गोमांस खाने के लिए प्रोत्साहित करता है. वर्तमान भाजपा नेता का उपरोक्त बयान को इसी का एक उदाहरण है. अजय असुर अपने एक आलेख में इसकी अच्छी व्याख्या किये हैं, जो इस प्रकार है.

धर्म और भोजन हमारा व्यक्तिगत मामला है. हम किस धर्म में जाएं, किसकी पूजा करें और क्या खाएं, ये किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है. धर्म और भोजन को राजनीत में लाना एकदम गलत है. धर्म और भोजन जनता पर छोड़ देना चहिए. पर देश की विडंबना धर्म और भोजन को राजनीति में शामिल कर प्राथमिक मुद्दों को गौण बना दिया है और हम इसी को सब कुछ समझते हैं.

आज हम जिंदा हैं तो इसी जीवन को सरकार का तोहफा मानकर सरकार का धन्यवाद देते हैं. कुछ लोग दो वक्त की रोटी को ही विकास समझते हैं. कुछ लोग खड़ंजा लग जाने, नाली बन जाने, पक्की सड़क बन जाने, सड़कों पर बिजली के खम्बे लग जाने, सीवर बन जाने… को ही विकास मानकर सरकार को धन्यवाद देते हैं और अब तो कुछ लोग शौचालय को ही विकास समझकर सरकार को धन्यवाद दे रहे हैं. व्यक्ति पहले खाएगा तभी तो शौचालय जाएगा. पहले भोजन की व्यवस्था फिर शौच की व्यवस्था होनी चहिए.

पिछले साल 31 जुलाई 2020 शुक्रवार को सुबह 9:00 बजे गुरुग्राम में पुलिस के सामने ही, कुछ तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों ने राजधानी दिल्‍ली से लगे हरियाणा के गुरुग्राम में एक ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जिसने कानून व्‍यवस्‍था पर सवालिया निशान उठा दिया है. यहां गाय का मांस ले जाने के शक में एक पिकअप ड्राइवर को हथौड़े और लाठियों से बुरी तरह पीटा गया. गो-रक्षकों ने ड्राइवर को उसी पिकअप में बांधकर घसीटा भी.

लुकमान नाम के पिकप ड्राईवर को पकड़ा और उसकी हथौड़े से पिटाई की. जब वह अधमरा हो गया तो उसको उठाकर बादशाहपुर ले गए और वहां उसे फिर मारा. वह बार-बार बोलता रहा कि उसकी गाड़ी में भैंस का मांस है और वह जिसके लिए काम करता है, उन लोगों का बीते 50 साल से भैंस के मांस का ही कारोबार है, लेकिन गौ भक्त रक्षकों / गुंडों ने उसकी एक न सुनी और लुकमान को बुरी तरीके से पीटा. रक्षकों / गुंडों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने पुलिस वालों के सामने ही पीटा और पुलिस वाले खड़े, बाकी खड़ी जनता की तरह तमाशा देख रहे थे.

कुछ ऐसा ही वाकया साल 2015 में दादरी में भी हुआ था. वहां भी तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों ने मॉब लिंचिंग कर 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दिया था. चाहे अखलाक हों या पहलू खान या मुम्बई में वो साधू जिनकी महाराष्ट्र् के पालघर जिले में मॉब लिंचिंग कर पुलिस की मौजदूगी में हत्या कर दी गयी थी. ऐसा ही राजस्थान के अलवर में अगस्त 2019 में पहलू खान को भी तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों ने मॉब लिंचिंग कर मार दिया था. ये घटनाएं घोर अमानवीय, पाशविक, क्रूरतम् और निंदनीय हैं.

आखिर इन तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों को इतनी हिम्मत आती कहां से है ? और पुलिस खड़ी तमाशा क्यों देखती है ? दोनों का जवाब एक ही है कि ऐसी घटना जिससे शासक वर्ग की सत्ता पक्ष को फायदा हो, वो भला ऐसी घटनायें क्यों नहीं चाहेगा. सत्ता पक्ष तो चाहता ही है कि समय-समय पर ऐसी घटनायें हो ताकि वो ऐसी घटनाओं का मीडिया के माध्यम से सांप्रदायीकरण करे, जिससे जनता इन्हीं में उलझी रहे और बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य पर शासक वर्ग से सवाल ना कर सके. हम और आप शासक वर्ग द्वारा फैलाए गए षडयंत्र में फंसकर मंदिर-मस्जिद और सामने वालों को क्या खाना है और नहीं खाना है, इसी में उलझ जाते हैं. क्या मनुष्य की जान जानवर से ज्यादा कीमती है ?

यदि गाय की जान मनुष्य से ज्यादा कीमती लगती है इन तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों को, तो देश की गौशालाओं के अंदर बिन पानी, बिन भोजन के मर रही गायें नहीं दिखाई दे रही हैं ? इन गौशालाओं में गायों के लिए जो चारे का पैसा आता है, वो शासन और गौशाला समिति खा कर भ्रष्टाचार कर रही है, दिखाई नहीं दे रहा है ? इन गौशालाओं के अन्दर ही भूख से अधमरी जिंदा गायों को कौवे, कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे होते हैं, तब इनकी गौ माता के प्रति इनकी मोहब्बत कहां गायब हो जाती है ?

कमोबेस यही हालात पूरे देश में है. खासकर उत्तर प्रदेश में जहां रामराज्य आ चुका है, गौशालाओं के हालत सबसे खराब हैं. यदि आपको मांस से इतनी नफरत है तो लाइसेंस ही क्यों देते हो ? लाइसेंस देने वाली सरकार से सवाल क्यों नहीं करते हो ? और ऐसी सरकार के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं करते हो ? क्योंकि इन तथाकथित गौ भक्त रक्षकों / गुंडों को इसी सरकार ने अपने हित के लिए पाला है, इसीलिये सरकार के खिलाफ चूं की आवाज तक नहीं आती इन गौ माता के लिए !

एक तरफ यही सरकार अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, केरल, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल, राज्यों में गाय काटकर बेचने का लाइसेंस देती है और दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात समेत 20 राज्यों में तथाकथिक गौ रक्षा टीम बनवाकर मॉब लिंचिंग करवाती है. क्या 20 राज्यों में ही गाय माता है ? बाकी राज्यों में ? है कोई जवाब ?

वहीं किशन गोलछा जैन लिखते हैं कि ये बीजेपी के नेता भी पता नहीं कौनसी भांग पीते हैं, एक कहता है महंगाई नेहरू जी के 15 अगस्त के भाषण की वजह से बढ़ी है, दूसरा कहता है बीफ (गाय का मांस) खाओ, तीसरा कहता है लड़कियां घर से अकेले बाहर न जाये तो चौथा कहता है दस बच्चे पैदा करो, एक नेता तो जेएनयू में कंडोम बीनकर गिनती भी कर आया था.

अब समझ में आ रहा है कि रंगा-बिल्ला को कांग्रेस के नेता मुहंमांगे दाम देकर इसलिये खरीदने पड़ते हैं ताकि उन्हें मंत्री बनाकर सरकार चला सके क्योंकि सरकार चलाना इन भंगेड़ियो के बस का नहीं. ये सिर्फ भांग के नशे में उलजुलूल बयानबाजी ही कर सकते है और कुछ नहीं.

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…