Home लघुकथा ढपोरशंख – ‘मितरों…तुम्हें पहले वाला शंख खोना नहीं चाहिए था !’

ढपोरशंख – ‘मितरों…तुम्हें पहले वाला शंख खोना नहीं चाहिए था !’

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तो एक था पण्डित, जो कहानियों में नियमतः गरीब होता है. तो अपना पंडित भी युजुअल गरीब था, और बीवी युजुअल कर्कशा, जो दिन रात ताने देती. पण्डित खीजकर हिमालय भाग गया, तपस्या की.

एज-युजुअल भगवान प्रसन्न होकर प्रकट हुए, पंडित ने दुखड़ा रोया. भगवान ने हाथ ऊपर उठाया, एक शंख उत्पन्न हुआ. पण्डित को देकर कहा – ‘नित्य श्रद्धा से पूजन करना और कमाल देखना.’

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पण्डित घर की ओर चला. यात्रा लम्बी थी, कहीं नदी नाले में स्नान करता, प्रभु का पूजन करता, शंख फूंकता. फूंकते ही एक अशर्फी गिरती- टन्न .. ! चार दिनों में चार अशर्फी हो गयी. घर करीब था, मगर दोस्त का घर रस्ते में था. एक रात वहां बिताने की सोची.

मित्र ने आवभगत की, कुशल क्षेम के बाद यात्रा का कारण पूछा. पण्डित ने खुशी खुशी किस्सा सुनाया. स्वर्ण मुद्राएं भी दिखाई और दैविक शंख भी. दोस्त की आंखें फटी रह गयी. दिल में लालच आया. रात को पण्डित सोया, तो उसके झोले से दिव्य शंख निकाल कर मामूली शंख रख दिया.

पंडित को क्या पता. सुबह यात्रा शुरू करने के पहले उसने पूजन कर शंख फूंका. शंख से धूं तुं पूं की आवाज आती रही.

कान टन्न को तरसते रहे. आखिरकार हारकर फूंकना बन्द किया, और मित्र से विदा लेकर चल पड़ा. घर नहीं, वापस हिमालय.

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पुनः तपस्या की, प्रभु प्रकट हुए तो सौ ताने दिये. कहा- ऐसा डिस्चार्ज शंख दिया कि चार अशर्फी में पावर ऑफ हो गयी. भगवन चकित हुए, कहा डिटेल में समझाओ…कहां गए, क्या क्या किया ? डिटेल जानते ही प्रभु ने आंखें बंद की. सीसीटीवी फुटेज में चोर को देखा.

‘ह्म्म्म…तो ये मामला है !!!’

प्रभु ने पण्डित को नया शंख दिया. कुछ समझाया भी पण्डित को, और पण्डित वापस उसी दोस्त के घर पहुंचा. रात में ठहरा, किस्सा बताया – ‘प्रभु ने इस बार डबल दिव्य शंख दिया है. जितना मांगो, वह देता है. डेमो देखोगे…?

मित्र ने कहा- ‘अवश्य…’

पण्डित ने विधि विधान से पूजन कर शंख फूंका. दिव्य चिंघाड़ती हुई आवाज आई –

‘क्या चाहिए…?’

पण्डित- ‘एक अशर्फी दे दो !’

शंख – ‘मूर्ख मुझे बुलाया है बस एक अशरफी के लिए ! अरे हजार मांगता…!’

पंडित- ‘वाह प्रभु, हजार दे दीजिए.’

शंख हंसा – ‘मूर्ख, मैं दैवी शंख हूं. तू मुझसे एक लाख मुहरें क्यों नहीं मांगता !’

पंडित- ‘नहीं शंख देव, अभी रहने दें. आज मित्र के घर हूं, इतनी मुहरें ढोकर अपने घर ले जाना कठिन होगा. आप मुझे एक लाख मुद्रायें घर जाकर ही देवें.’

शंख- ‘ठीक है, जैसा तू कहे.’

शंख शान्त पड़ गया. पंडित ने उसे झोले में रख लिया. इसके बाद पण्डित खा पीकर सो गया. रात को वही हुआ, जो होना था. दोस्त पुराने शंख को वापस रख, नया वाला चुरा लिया.

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पंडित सुबह अपने घर को चला, पत्नी से मिला. बोला देख चमत्कार…और पूजन कर शंख फूंका. मुद्रा गिरी…टन्न !

पत्नी ने पति को इठलाकर देखा.
दोनों खुशी से रहने लगे.

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उधर, पण्डित के जाते ही मित्र ने झटपट शंख निकाला. विधि विधान से पूजन कर शंख फूंका. दिव्य चिंघाड़ती हुई आवाज आई –

‘क्या चाहिए…?’

मित्र- ‘एक अशर्फी दे दो !’

शंख – ‘मूर्ख मुझे बुलाया है बस एक अशरफी के लिए ! अरे हजार मांगता…’

मित्र- ‘वाह प्रभु, हजार दे दीजिए.’

शंख – ‘मूर्ख, मैं दैवी शंख हूं. तू मुझसे एक लाख मुहरें क्यों नहीं मांगता ?’

मित्र – ‘हां हां, मुझे एक लाख मुहरें दीजिये.’

शंख- ‘अरे पापी ! मैं दैवी शंख ! मुझसे दस लाख मुहरें क्यों नहीं मांगता !’

मित्र – ‘वाह शंख देव, मुझे दस लाख मुहरें चाहिए !’

शंख – ‘रे मूर्ख ! मैं स्वर्ग का दैवीय शंख ! मुझसे एक करोड़ मुहरें क्यों नहीं मांगता !’

मित्र- ‘जी हां, जी हां, मुझे एक करोड़ मुहरें दीजिए.’

शंख- ‘अरे अधम, छोटी सोच के कीड़े. मुझसे 20 लाख करोड़ मांग…!’

मित्र को गश आ रहा था, थूक निगल कर बोला- ‘जी बीस लाख करोड़ ठीक है !’

शंख अपनी रौ में था- ‘दुष्ट, अधम, घटिया जीव ! चालीस लाख करोड़ मांग.’

अब मित्र का धैर्य जवाब दे गया. वो चीखा- ‘अबे, जो देना है तो दे. एक दे, दस दे, हजार दे, करोड़ दे…जो तेरी मर्जी, मगर दे…अब दे…!’

शंख कुछ देर अवाक था !

फिर धीमे से पूछा- ‘तुझे तो सच्ची मुच्ची, याने सिरियसली वाला पैकेज चाहिए ???’

मित्र, शंख को आग्नेय नेत्रों से घूर रहा था. शंख सिरियसनेस भांप गया.

कहा – ‘देखो, मेरा नाम ढपोरशंख है. देता-वेता कुछ नहीं, सिर्फ बातें करता हूं. हजार, लाख, करोड़, अरब, खरब…आंकड़े जपना ही मेरा गुण है. अगर तुम्हें सच में स्वर्ण मुद्रा चाहिए थी, तो तुम्हें पहले वाला शंख खोना नहीं चाहिए था.’

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शंख शांत हो गया, मगर उसकी आवाज मित्र के कान में गूंज रही थी.

‘मितरों…! तुम्हें पहले वाला शंख खोना नहीं चाहिए था.’

  • राजीव रावत

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