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उत्तराखंड के सांप्रदायिक सौहार्द को तोड़ने की विनाशकारी मुहिम

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मुनेश त्यागी

आजकल उत्तराखंड में लव जिहाद और जमीन जिहाद को लेकर सांप्रदायिक मुहिम जारी है. वहां की औरतों को लव जिहाद का शिकार होने की मुहिम चलाई चलाई जा रही है. यह सब उत्तराखंड की औरतों के खिलाफ और उनके द्वारा उत्तराखंड में उनकी अहम भूमिका को नकारने की और उन्हें बदनाम करने की एक जबरदस्त साजिश का हिस्सा है. यहां की औरतें उत्तराखंड में, वहां के समाज में, वहां के परिवार में, बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं और उनका एक गौरवशाली इतिहास रहा है.

‘गोरा देवी’ ने वहां चिपको आंदोलन की शुरुआत की और पेड़ों को कटने से बचाया. ‘टिचरी माई’ ने उत्तराखंड में शराब का जबरदस्त विरोध किया और वहां पर शराब के खिलाफ एक जन आंदोलन खड़ा किया. ‘बछेंद्री पाल’ भारत की महान विभूति हैं, जिन्होंने एवरेस्ट को फतह किया था. ‘मेजर जनरल स्मिता देवरानी और ब्रिगेडियर अमिता देवरानी’ दोनों बहनों को फौज में अपनी शानदार सेवा के लिए, राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. ‘अंकिता भंडारी’ ने दैहिक शोषण के खिलाफ अपने जीवन का बलिदान देना बेहतर समझा, मगर उसने दुराचारियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया.

इस प्रकार हम देख रहे हैं कि उत्तराखंड की औरतें, वहां की खेती से लेकर रोजगार और समाज की धुरी बनी हुई हैं. उन्होंने मर्दों की अनुपस्थिति में घर, परिवार और समाज को संभाला है क्योंकि जब उत्तराखंड के ज्यादातर नौजवान रोजगार की तलाश में देश के विभिन्न भागों में भटकने को मजबूर होते हैं, उस स्थिति में उत्तराखंड की महिलाएं ही आगे आकर, अपने परिवार को संभालती हैं, उसकी पूरी जिम्मेदारियां उठाती हैं.

उत्तराखंड में बहुत सारी समस्याएं वहां के किसानों, मजदूरों और नौजवानों को परेशान करती आ रही हैं. भयानक बेरोजगारी, स्कूलों की जर्जर हालत, जंगली जानवरों के आतंक द्वारा खेती-बाड़ी को बर्बाद करने को लेकर वहां की सरकार कतई भी संवेदनशील नहीं दिखाई दे रही है. उत्तराखंड की तमाम जातियों, धर्मों, भाषाओं के लोगों का मिल जुल कर रहना और आपसी सहयोग करना, भारत का और उत्तराखंड का स्वाभाविक धर्म है. मौला बख्श पौड़ी में रामलीला के मुख्य संगीतकार हुआ करते थे, मगर आज हालात बदल रहे हैं. उत्तराखंड की मिली-जुली संस्कृति और स्वाभाविक धर्म का विनाश करने की मुहिम शुरू कर दी गई है.

सत्ता में बने रहने के लिए, भारत के स्वाभाविक धर्म को, सांप्रदायिक रंग देकर तोड़ा जा रहा है. वयस्क लड़का और लड़की अपने धर्मांध विश्वासों को तोड़कर, अपने स्वाभाविक प्रेम की भावना के तहत, अपने मां-बाप को अपनी शादी करने के लिए राजी करते हैं, मां बाप भी सहमत और राजी होकर, उनके विवाह समारोह के कार्ड तक छपवा देते हैं. ऐसे समारोह को हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा खंडित किया जाता है. यह कौन-सी सभ्यता और संस्कृति है ? ये लोग कैसा भारतीय समाज बनाना चाहते हैं ?

मुस्लिम पलायन को रोकने के लिए पिछले दिनों, हिंदू मुस्लिम व्यापारी समितियां समझौता करने की कोशिश कर रही थी. समझौता लगभग हो ही गया था. समझौते की इस सामूहिक मुहिम को, वहां की साम्प्रदायिक गुंडावाहिनी द्वारा रोका और तोड़ा जाता है. यह कौन सा समाज बनाया जा रहा है ? सरकार और प्रशासन इस गुंडा वाहिनी की समाज विरोधी मुहिम के सामने अंधा और बहरा हो गया है. वह इन समाज विरोधी और सांप्रदायिक सौहार्द विरोधी अपराधिक तत्वों के खिलाफ समय से कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर रहा है और वहां के शांति और सद्भाव को पलीता लगाने की जैसे कोशिश ही कर रहा है.

लव जिहाद और जमीन जिहाद के नाम पर झूठी और काल्पनिक मुहीम चलाई जा रही है. पूरी सरकार, प्रशासन और एनसीआरबी के पास ऐसी कोई जानकारियां और आंकड़े नहीं हैं. वे सब मिलकर इस सामाजिक एकता को तोड़ने वाली और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने वाली उत्तराखंड विरोधी मुहिम का कोई जवाब नहीं देते हैं. यह कौन-सी सरकार चलाई जा रही है ?

उत्तराखंड की करोड़ों जनता की समस्याओं के समाधान पर कोई चर्चा नहीं की जा रही है. उत्तराखंड से पलायन करने वाले नौजवान बच्चों की समस्याओं का समाधान खोजने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. खेतीबाड़ी को वहां के जंगली जानवरों ने लगभग पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है. वहां की खेती पर वहां के ‘जंगली जानवरों की सरकार’ चलती है, ‘जानवरों की जंगली सरकार’ को खत्म करने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है.

उत्तराखंड की जनता द्वारा रोज रोज झेली जा रही इन तमाम समस्याओं का कोई निदान वहां की सरकार और वहां की हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक तत्वों के पास नहीं है. जैसे-जैसे 2024 के संसदीय चुनाव पास आ रहें हैं, वैसे-वैसे अब जनता को गुमराह करने के लिए और सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए, अब इस सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ाने के लिए और इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए, शांतिप्रिय उत्तराखंड की जनता के सांप्रदायिक सद्भाव को खत्म करने के लिए, हिंदू मुस्लिम के बीच नफरत बढ़ाने के बीज बोए जा रहे हैं. इस सांप्रदायिक मुहिम से उत्तराखंड की जनता सिर्फ और सिर्फ बर्बादी के कगार पर ही पहुंचेगी.

भारत के 52 आईएएस, आईपीएस और आईएफएस पूर्व नौकरशाहों ने मिलजुलकर उत्तराखंड सरकार को एक ज्ञापन दिया है, जिसमें अपराधी लोगों के खिलाफ समय से कानूनी कार्रवाई करने और उत्तराखंड में शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की है. पूर्व नौकरशाहों द्वारा यह समय से उठाया गया एक प्रशंसनीय कदम है.

वकीलों के एक संगठन ने भी हाई कोर्ट में याचिका दायर करके प्रदेश में शांति और सद्भावना कायम करने की अपील की है जिसके कारण वहां होने वाले महागठबंधनों की आमसभाओं को स्थगित करने को, सरकार को मजबूर होना पड़ा है. अब यह उत्तराखंड की हाईकोर्ट की भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वह मामले की त्वरित छानबीन करके संबंधित दोषी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई करने के आदेश पारित करे.

आज यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि उत्तराखंड की सारी जनता और तमाम जनवादी, प्रगतिशील और वामपंथी ताकतों और लेखकों, बुद्धिजीवियों को एकजुट होकर उत्तराखंड के विनाश की मुहिम को करारा जवाब देना होगा. इसके अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया है. जनता के एकजुट अभियान से ही उत्तराखंड की शांति, सद्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द को तोड़ने की विनाशकारी मुहिम को रोका जा सकता है.

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