गुरूचरण सिंह
दो तरह के लोगों ने मौजूदा सरकार का खुले दिल से समर्थन किया था : एक, जो ‘सत्तर सालों’ की सरकारों से आजिज़ आ चुके थे और अच्छे दिन की चाह में एक बेहतरीन वक्ता के नाम पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों के हवाले देश कर आए थे और महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार कुछ भी सहने के लिए तैयार थे. दूसरे शब्दों में वज्र मूर्ख थे. दूसरे, वे शातिर लोग थे सांप्रदायिक (उग्र हिन्दुत्व) के कारण मोदी को वोट दिया था. हिंदू राष्ट्र का जो सपना वे एक सदी से पाल रहे थे, वह साकार करने का मौका जो मिल रहा था. एक किस्म का वायवी देशप्रेम या राष्ट्रप्रेम एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया इन लोगों ने इस चाह को छुपाए रखने के लिए.
देशप्रेम से आकंठ भरे वसंत शर्मा जैसे हमारे कई मित्र भी इसी झांसे में आए लोग हैं. उनके लिए सैनिकों की बजाय आम आदमी की बात करने वाला आदमी एक देशद्रोही है, बेशर्म है. इसका अर्थ यह हुआ वक्त-बेवक्त सैनिकों की जयजयकार करने वाला ही देशभक्त होता है.
एक और मित्र अलवर से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, कुछ हजार वोटों से हार गए थे. सार्वजनिक जीवन में होने के चलते देश की समस्याओं पर अच्छी समझ और पकड़ भी रखते हैं. उनकी भी यह टिप्पणी एक गहरी निराशा का परिणाम ही लग रही है क्योंकि बहुत समझाने पर जब कोई असर न हो तो तंग आ कर आदमी कह देता है, जा फिर देख मजा अपनी मनमर्जी करने का, ‘Gurcharan Singh i intend to say one more opportunity be provided to modi ji then see the results. The country will become the catle ground what you need more. This would be the hindu rashtra for which rss is committed to. The country has become the playground for hindu vs hindu, no one knows who is a hindu so everyone is for ‘grv se kaho hm hindu haen’. Hence there is no indian except sikhs and muslims others are definitely hindu. What would be the fate?’
इन्हीं दो छोरों के बीच झूल रहा है हमारा समाज ! खुद के ही खिलाफ लामबंद हो गया है यह; सब को जोड़ने वाला आज खुद गहरी टूटन का, खुद खेमेबंदी का शिकार हो चुका है ! एक खेमा ‘देशप्रेमी’ बन कर खुद पर, अपने स्वर्णिम अतीत पर इतरा रहा है और अपने ही दूसरे हिस्से को ‘देशद्रोही’ कह कर गरिया भी रहा है. मजे की बात तो यह कि उसे खुद भी नहीं पता कि यह देशभक्ति है किस चिड़िया का नाम; वंदेमातरम् गा लिया ( ज्यादातर तो उसकी एक पंक्ति तक नहीं गा सकते), भाषण के अंत में ‘भारत माता की जय’ बुला दिया, जबरदस्ती अपने खेमें के खींच लाए ‘देशभक्तों’ की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं खड़ी दी, कुछ शहरों के नाम बदल दिए, बस हो गई देशभक्ति ! इसके बाद तो आप कुछ भी करने का लाइसेंस पा जाते हैं.
एक पुरानी फिल्म देशप्रेमी के एक गीत की याद आ रही है – ‘आपस में प्यार करो देशप्रेमियों !’ उस फिल्म में चार अलग समुदायों के लोग गुंडों में बंटी हुई थी, वह बस्ती भी ठीक अपने देश ही तरह : एक मद्रासी, एक बंगाली, एक सिख और एक हिंदू. चारों के चारों एक दूसरे से नफरत करने वाले. फ़र्क इतना कि यहां नफरत के निशाने पर मुसलमान हैं. नफरत और लालच में अंधे ये चारों ही गुंडे अपने फायदे के लिए आदर्शवादी मास्टर दीनानाथ के बेटे का इस्तेमाल करते हैं. गीत के शब्दों की ओर कृपया ध्यान दें ‘आपस में प्यार करो.’ इसमें कहीं ऐसा नहीं कहा गया कि बस्ती के धार्मिक स्थानों, चीजों या और किसी आदमी से प्यार करो. इसका अर्थ यह हुआ कि देश के लोगों से प्रेम करना ही असल में देशप्रेम है, उनकी भलाई, बेहतरी के लिए हर वक्त सोचना, काम करना ही देशभक्ति है.
‘ईश्वर’ की तरह देशप्रेम भी एक अमूर्त भाव है जिसका वर्णन भी नेति-नेति शैली से ही किया जा सकता है. देश के नदियां, पहाड़, मरुस्थल, हरे-भरे मैदान और जंगल, खदान, खेत और खलिहान देश का भूगोल तो सकते हैं, देश नहीं. देश कोई राजनीतिक और भूगौलिक नक्शा भी नहीं है, सीमा की सुरक्षा करते हमारे सैनिक का कठिन जीवन भी देशप्रेम नहीं हो सकता क्योंकि सभी तो सैनिक बन नहीं सकते, सबका शरीर वैसा काम करने की इजाजत भी नहीं देता ! तो क्या वे देशद्रोही हो गए !! दूसरे शब्दों में, देशप्रेम की यह अवधारणा देश या राष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण घटक, इसमें रहने वाले लोगों की उपेक्षा करती है. लोगों के बिना देश या राष्ट्र हो ही नहीं सकता. अगर लोग हैं तो देश की व्यवस्था के लिए दो तरह की विचारधारा भी होगी; एक, जिसे देश का हर संसाधन अपने लिए चाहिए और दूसरी वह जो खुद को एक बड़े समुदाय का हिस्सा मान सबके लिए इन संसाधनों का यथोचित बंटवारा चाहती है. फिर दोनों में से एक विचारधारा देशद्रोही कैसे हो गई ?
मेरी नज़र में तो देश और समाज को तोड़ने की मंशा रखने वाला आदमी या संस्था ही सबसे बड़ा गद्दार है, भले ही ऐसा आदमी या संस्था सत्ता और सरकार का ही हिस्सा क्यों न हो. लेकिन सरकार ही तो देश नहीं होती, और उसके बाहर और उससे अलग विचारधारा रखने वाले लोग भी देशद्रोही नहीं हो सकते !! इस हिसाब से तो लगभग छः दशक तक विपक्ष का हिस्सा रहे आज के सत्ता पक्ष और उसके समर्थकों को भी देशद्रोही घोषित कर देना चाहिए था लेकिन किसी ने भी उसे ऐसा कभी महसूस नहीं होने दिया. हमें तो वह घटना भी याद है जब नेहरू जी ने एक विदेशी मेहमान से ‘भविष्य का प्रधानमंत्री’ कह कर अटल विहारी बाजपेयी का परिचय करवाया था. सरकार की आलोचना ही विपक्ष का काम है, वही तो स्वस्थ लोकतंत्र की बुनियाद है. जो व्यक्ति डर से या लालच के चलते सरकार को उसकी गलती बताने से गुरेज़ करता है, सबसे बड़ा देशद्रोही तो वही है !
विपक्ष जब ऐसा करने में नाकामयाब रहता है तो जनता खुद यह जिम्मेदारी उठा लेती है और सड़कों पर उतर आया करती है, जैसा नागरिकता कानून के खिलाफ बरसों से दबा गुस्सा अचानक फ़ूट पड़ा है. अच्छे दिनों की चाह में टकराव की ओर बढ़ता हुआ समाज अचानक फिर दोराहे पर आ कर खड़ा हो गया है. दिल और दिमाग की लड़ाई में दिमाग को सुना जाने लगा है !
बेशक, देशद्रोह जैसे संगीन अपराध पर कोई समझौता नहीं हो सकता. मगर देशद्रोह क्या है, इसे तय करना भी तो ज़रूरी है. चलिए आज यही कोशिश करते हैं :
• देश के सबसे महत्वपूर्ण घटक नागरिकों में एक दूसरे के खिलाफ नफरत पैदा करना और सांप्रदायिक दंगे करवाने को आप देशद्रोह मानते हैं या नहीं ? अगर समाज टूटता है तो यकीनन देश भी नहीं बच सकता. सुरक्षित सीमाएं भी इस के सुरक्षित रहने की गारंटी नहीं हैं.
• पूरे सेवाकाल के दौरान काम के नाम पर महज़ खानापूर्ति करते हुए ‘बेदाग’ पेंशन पा जाने वाले सरकारी अधिकारी और कर्मचारी को क्या आप देशसेवक मानते हैं ? अनजाने में कोई कानून तोड़ देने वाले अनपढ़ गंवार लोगों से कहीं ज्यादा ख़तरनाक हैं ये 90% लोग जो यह जानते हुए भी कि वे जो भी कर रहे हैं, वह सब संविधान के खिलाफ है (जिसकी हिफाज़त के लिए वे हैं), ऐसा करना किसी का हक मारना है, फिर भी वे अपने बॉस को खुश रखने के लिए कानून की मोम से बनी नाक मरोड़ते रहते हैं. ऐसे कर्मचारी देशद्रोही नहीं हैं क्या ?
• रिश्वत लेना कब से देशप्रेम में शामिल हो गया ? यहां तो देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई पर ही खुले आम रिश्वतखोरी का आरोप लगता है, आरोप साबित भी हो जाते हैं और देश के सबसे बड़े कार्यालय (पीएम) पर भी इनके कुछ छींटे पड़ते हैं. ऐसी संस्कृति का संरक्षण क्या देशद्रोह नहीं होता ?
• पुलिस या दूसरी एजेंसियों द्वारा वसूली करने के मकसद से जनता को अनावश्यक तरीकों से डराना व परेशान करना, ऐसा करने की खुली छूट पाने के लिए राजनीतिक आकाओं की हर गलत बात मान लेना क्या देशद्रोह जैसा संगीन अपराध नहीं है ?
• प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सच सामने लाने की बजाए झूठ को सच साबित करने का प्रयास तो सबसे बड़ा संगीन अपराध है, क्योंकि जनता उन पर भरोसा करती है. सरकारी विज्ञापन पाने की लालच में उसके विचारों की भड़ुवागिरी क्या देशद्रोह नहीं है ?
• जमाखोरी करने वाले, छपे दाम से भी ऊंचे दाम पर सामान बेच कर महगांई बढ़ाने वाले, मिलावट करने वाले और झूठे विज्ञापन दे कर आम जनता को लूटने वाले कारोबारी लोग क्या देशद्रोही नहीं है ? संगीन अपराध नहीं कर रहे हैं क्या वे आप की नज़र में ? क्या ऐसे लोगों को देशप्रेमी कहेंगे ?
• डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक या और कोई काम करने वाला पेशेवर आदमी अगर ईमानदारी से अपना काम नहीं करता, उसकी चिंता का विषय है कैसे उस पेशे से अधिक से अधिक पैसा बनाया जाए, जो हमेशा इसी जुगत में लगा रहता है और परिणाम की रत्ती भर भी परवाह नहीं करता, ऐसे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक या और कोई काम करने वाला पेशेवर आदमी को आप देशद्रोही मानते हैं क्या ?
• लालच, रिश्वत, जाति, धर्म, नस्ल, क्षेत्र के नाम पर मतदान करना क्या देशद्रोह नहीं है ?
• पेशेवर राजनेता को बदल-बदल सत्ता सौंपना, उसके आगे कुछ देख ही न पाना क्या खुद में देशद्रोह नहीं है ?
केवल देश भक्ति के गीत गाना, नारे लगाना ही देशभक्ति नहीं होती. ये सब तय कसौटियां हैं उसके लिए जिन पर सबको अपने आप को साबित करना होगा. खुद को देशभक्त मानने वाले कितने ही लोगों ने सरकारी जमीन हथिया रखी है, सड़कों की पटरियां अपने कामकाज के लिए कब्जा रखी हैं, पुलिस की दलाली करते हैं, पानी, बिजली और टैक्स की चोरी करते हैं, दरअसल जो भी इन कसौटियों पर खरा नहीं उतरता उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाना चाहिए. देश के संविधान और कानून के तहत अपना फ़र्ज़ न निभाने वाले आदमी को भी गद्दारों की सफ़ में खड़ा करना होगा.
इस कदर कोई बड़ा हो मुझे मंज़ूर नहीं ,
कोई बंदों में खुदा हो मुझे मंज़ूर नहीं.
रौशनी छीन के घर घर से चिरागों की अगर ,
चांद बस्ती में उगा हो मुझे मंज़ूर नहीं.
मुस्कुराते हुए कलियों को मसलते जाना ,
आपकी एक अदा हो मुझे मंज़ूर नहीं.
आज मैं जो भी हूं हूं बदौलत उसकी ,
मेरे दुश्मन का बुरा हो मुझे मंज़ूर नहीं.
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