गुरूचरण सिंह
हमारी बला से. देश तबाह होता है तो होता रहे, हमारी बला से !
अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई है, हमारी बला से !
पांच साल में चार करोड़ लोगों का रोज़गार छिन गया है, हमारी बला से !
तीन करोड़ लोग रोज भूखे या अधभरे पेट के साथ सोते हैं तो सोते रहें न, हमारी बला से !
हमारा घर परिवार तो ठीक से चल रहा है न !!
थोड़ी मुश्किल जरूर है, मुसलमानों को सबक तो सिखाया जा ही रहा है न !!
ऐसी ही बातें सुनने को मिलती हैं हमें अपने आस पास. खास कर उन इलाकों में जहां पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) से विस्थापित हुए लोग बसे हुए हैं. जिन रिफ्यूजी कालोनियों में केवल एक कमरा रसोई ही बना कर दी गई थी काम चलाने के लिए, वे सभी घर सरकारी जमीन पर पैर पसारते पसारते 20-25 कमरों की इकाई में बन चुके हैं, पंचमंजली इमारतों में तब्दील हो चुके हैं, कुछ बेच दिए, कुछ किराए पर दिए जाते हैं. यही रिफ्यूजी कालोनियां अब दिल्ली के पॉश इलाके बन चुके हैं, एक-एक घर के सामने कम से कम दो-दो गाडियां पार्क होती हैं और बाकी कारें तीन चौथाई सड़क को घेर कर खड़ी रहती हैं.
इनके साथ-साथ सरकार के और भी जो अंधभक्त हैं, जरा ध्यान से देखिएगा उन्हें और उनकी जीवन शैली को. लगभग सभी लोग आपको काला बाजारी करने वाले, चीन आदि से स्मगल किया समान बेचने वाले, घर में दुकान बना कर समान बेचने वाले, अनाज समेत बाकी चीजों मे मिलावट कर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने वाले, कर्मचारियों को रिश्वत दे बिजली पानी की चोरी करने वाले, जुआड़ी, निकम्में, गुण्डागर्दी, पुलिस की मुखबिरी करने वाले, हमेशा ट्रैफिक में उल्टी लेन में चलकर सिपाही पर धौंस जमाने वाले, सरकारी ठेके लेने वाले और न जाने कितने ही तरह के गलत काम करने वाले मिल जाएंगे. चूंकि गलत काम किए बिना इनका चलता ही नहीं है, इसलिए ऐसे लोग डर के साए में ही जिंदा रहने को अभिशप्त हैं और यही वजह है कि सरकार के साथ खड़े रहना उनकी मज़बूरी है.
कल दूसरी किसी सरकार के आ जाने पर उसके साथ भी ये लोग अपना यही किरदार निभाते हुए मिल जाएंगे. आपको अच्छा लगे या नहीं, सच तो यही है कि हमारे मध्यवर्ग का यही स्वरूप है. पूरी तरह से वैयक्तिक सोच है उसकी, आर्थिक कामयाबी को सीढ़ी बना कर सामाजिक हैसियत पाना ही उसका एकमात्र लक्ष्य है. इसी मकसद को छिपाए रखने के अपने ही तर्क और औचित्य गढ़ लिए हैं उसने – अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता !! ‘अपना काम’ बनाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं ये लोग !
खैर,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने वर्ष 2019 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटा कर 4.8% कर दिया है. IMF ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच का सालाना शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए यह बताया है.
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने सीएमआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए अपने एक लेख में खुलासा किया है कि इन पांच साल के दौरान कर्मचारियों की संख्या 45 करोड़ से घट कर 40 करोड़ रह गई है लेकिन कर्मचारियों की संख्या घटना तो असल में एक लक्षण भर है, लगातार बद से बदतर होती अर्थव्यवस्था का, समुद्र में तैरते बर्फ के पहाड़ का दिखने वाला हिस्सा भर है यह तो.
ये आंकड़े तो केवल छ: फीसदी क्षेत्र के आंकड़े हैं जो संगठित है. 96% असंगठित क्षेत्र तो कभी नजर आता ही नहीं जब तक आप खुद भुक्तभोगी न हों. यही क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, पहले नोटबंदी से, फिर जीएसटी से और फिर लगातार सरकारी कैंची की जद में आती सार्वजनिक कम्पनियों से, उनके लिए काम करते लघु व कुटीर उद्योगों के बंद होने से.
केवल 63 लोगों के कारोबार का आकार देश के बजट से भी ज्यादा है, लोगों को इलाज दवाई नहीं मिल रही, शिक्षा तो बस कुलीन वर्ग और सरकारी माल को अपना समझ कर लूटते मध्यम वर्ग के बच्चों के लिए ही आरक्षित हो गई है लेकिन हमें क्या ? हमें तो हिंदू-मुसलमान का कीर्तन करना है, मंदिर-मस्जिद बनाने हैं !
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