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देश की मूर्ख अवाम धर्म की अफीम चाटकर सो रही है

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देश की मूर्ख अवाम धर्म की अफीम चाटकर सो रही है

Saumitra Rayसौमित्र राय

गाय हो गई, मॉब लीनचिंग हो गई, पाकिस्तान हो गया, चीन हो गया, तीन तलाक हो गया, सीएए/एनआरसी हो गया, दुनियाभर की लफ्फाजी हो गई. दुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नही जिससे हिन्दू, हिंदुस्तान खतरे में नही आया हो. सावरकर गोडसे भगवान बन गया, नेहरू शैतान बन गया, रेप धर्म बन गया, अपहरण कानूनी बन गया, मालिश करवाना हक बन गया, ताजमहल तेजोमहालय बन गया, काबा मक्केश्वर बन गया, पूरी कायनात हिन्दू बन गई पर फिर भी हिन्दू खतरे में आ गया.

377 कानूनी बन गया, रीना की सीडी बन गई, भड़वा टीनू जैन भगवान बन गया, कब्र से निकाल कर रेप करने वाला मुख्यमंत्री बन गया, गुजरात का नरपिशाच प्रधानमंत्री बन गया, तड़ीपार गृहमंत्री बन गया, फिर भी हिन्दू खतरे में आ गया. यूपीएससी का जिहाद बन गया. एनईईटी का टॉपर जिहादी बन गया. एएमयू, जेएनयू, जेएमयू फसादी बन गया, पर कलाम की मिसाइल से दुनिया कांप गई. फिर भी हिन्दू खतरे में आ गया.

बाकी बची थी आशिकी, मुहब्बत, इश्क, शादी, लगन, निकाह भी जिहाद की बरबादी बन गया, देश मे गरीब पैदल चले, बच्चे भूखे मरे, नौजवान बेरोजगार बने, किसान जहर खा कर मरे, पर फिर भी भारत कैसे विश्वगुरु बन गया ?

स्वीडन की संस्था ने कहा, भारत में लोकतंत्र खत्म होने के करीब है. ‘वी- डेम इंस्टीट्यूट’ ने 179 देशों का अध्ययन करते हुए ‘उदार लोकतंत्र सूचकांक’ जारी किया है. इस सूची में भारत 179 देशों में 90वें पायदान पर है. इस सूची में भारत के पड़ोसी श्रीलंका 70वें और नेपाल 72वें स्थान पर हैं.

इस अध्ययन का पैमाना है : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, सिविल सोसाइटी की स्वतंत्रता, चुनावों की गुणवत्ता, मीडिया में विचारों की जगह और शिक्षा में स्वतंत्रता. रिपोर्ट में कहा गया है, मीडिया, सिविल सोसाइटी और मोदी सरकार में विपक्ष के विरोध की जगह कम होती जा रही है, जिसके कारण लोकतंत्र के रूप में भारत अपना स्थान खोने की क़गार पर है.

संस्था के निदेशक स्टाफ़न लिंडबर्ग ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘कई लोकतंत्र के स्तंभ हैं, जो भारत में कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं. मोदी के सत्ता में आने के दो साल पहले इनमें से कुछ इंडिकेटर्स में गिरावट आनी शुरू हो चुकी थी, लेकिन वास्तव में इसमें नाटकीय गिरावट मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से आने लगी.’

लिंडबर्ग ने बताया, ‘मेरे विचार में पिछले पाँच से आठ सालों में स्थिति अधिक बिगड़ गई है. भारत अब लोकतंत्र न कहलाए जाने वाले देशों की श्रेणी में आने के बिल्कुल क़रीब है. हमारे इंडिकेटर्स बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में सरकार के प्रति मीडिया का पक्ष लेने का सिलसिला काफ़ी बढ़ गया है. सरकार की ओर से पत्रकारों को प्रताड़ित करना, मीडिया को सेंसर करने की कोशिश करना, पत्रकारों की गिरफ़्तारी और मीडिया की ओर से सेल्फ़ सेंसरशिप की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.’ लोकतंत्र के कई जानकारों ने इस रिपोर्ट से सहमति जताई है. (सूचना साभार : बीबीसी, लिंक कमेंट बॉक्स में)

मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में 35 अलग-अलग तरीके के उपकरों (सेस), लेवी और शुल्क से कुल 2,74,592 करोड़ रुपये वसूले. इसमें से 35 फीसदी यानी 95,028 करोड़ रुपए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के हर्जाने का है. 22 फीसदी यानी 59,580 करोड़ रुपए हाई स्पीड डीजल तेल और मोटर स्प्रिट में अतिरिक्त उत्पाद शुल्क है. वहीं, 51,273 करोड़ रुपए यानी 19 फीसदी सड़क एवं संरचना उपकर हैं. साथ ही 41,177 करोड़ यानी 15 फीसदी स्वास्थ्य एवं शिक्षा का उपकर भी शामिल हैं.

इस पैसे का इस्तेमाल लोगों की भलाई, कल्याण या उन्नति से जुड़ी योजनाओं को बेहतर और मजबूत बनाने में किया जाना चाहिए. उपकर के पैसे को योजना से जुड़े खास मकसद वाले रिजर्व फंड में संसद की अनुमति से डाला जाता है, ताकि संबंधित मंत्रालय, विभाग रिजर्व फंड का इस्तेमाल आसानी से कर सके.
महालेखा परीक्षक और नियंत्रक, यानी कैग की सितंबर 2020 की रिपोर्ट कहती है कि मोदी सरकार ने इसमें से 1,64,322 करोड़ रुपये ही खास मकसद के उपयोग वाले रिजर्व फंड में डाले और शेष राशि भारत की संचित निधि में ही रह गई.

कैग की रिपोर्ट करीब दो दशक से यह बात दोहराती रही है कि इन उपकरों का इस्तेमाल तय की गई जगह पर ही किया जाना चाहिए. हैरानी की बात यह है कि है कि जिन 17 उपकरों की पहचान खत्म करके उन्हें एक जुलाई, 2017 को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में शामिल कर दिया गया, उनमें से कई उपकरों को सरकार आगे के वर्ष (2018-19) में भी वसूलती रही.

किसान कल्याण कोष, स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छता अभियान जैसे कुल नौ उपकर शामिल हैं, इनको भी संचित निधि में ही रखा गया और रिजर्व फंड में नहीं डाला गया. यानी करीब 2.75 लाख करोड़ में से 1,64,322 करोड़ रुपये ही रिजर्व फंड में डाले गए. यह मोदी सरकार का बड़ा घोटाला है.

भारत की संचित निधि (सीएफआई) सरकार के समस्त आय-व्यय की पूंजी वाली तिजोरी है. इस तिजोरी से बिना संसद की अनुमति के पैसे नहीं निकाले जा सकते हैं. इसके बावजूद तमाम नियम-प्रक्रियाओं को नज़रअंदाज़ कर नरेंद्र मोदी की सरकार ने संसद तक को किनारे कर 2018-19 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस ने 20,566.33 करोड़ रुपए की निकासी की.

न खाऊंगा, न खाने दूंगा- यह जुमला फेंकने वाला खुद अपने घर की तिजोरी से पैसे चुरा रहा है क्योंकि इस देश की मूर्ख अवाम धर्म की अफीम चाटकर सो रही है.

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