नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. ओली ने भारत के सभी अन्धविश्वास व पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने वाले चैनलों पर बैन लगा दिया है. इसका प्रमुख कारण है इन चैनलों द्वारा रात-दिन अन्धविश्वास को बढ़ावा देना. कुबेरलक्ष्मी धनवर्षा यन्त्र, हनुमान रक्षा कवच आदि का प्रचार व आनलाइन बिक्री किया जाना इसका उदाहरण है.
यदि धन वर्षा यन्त्र इतना ही कारगर होता तो भारत के 20 करोड़ लोग भूखे न रहते. हनुमान रक्षा कवच इतना कारगर होता तो भारत के सभी राजनेताओं को Z+Y श्रेणी की सुरक्षा पर लाखों खर्च न करके सबके गले में हनुमान यन्त्र लटका होता.
भारत एक ऐसा देश है जो कई स्थानीय भाषाओं द्वारा विभाजित है और देश के शासकों द्वारा यह अवधारणा जनता में पैदा की गयी कि यह देश एक विदेशी भाषा अंग्रेजी द्वारा एकजुट है.
चीन अपनी सरकार व जनता की मेहनत की वजह से तरक्की कर रहा है और भारत में तरक्की ना होने का सबसे बड़ा कारण उसकी अपनी सरकारें ही रही हैं. इस देश के उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग तथा मध्यम वर्ग द्वारा मेहनत व श्रम के कामों तथा खेती-किसानी के कामों की नीची निगाह से देखा जाता है.
भारत का मतदाता के पास ज्यादा विकल्प ही नहीं हैं. इस देश की वर्गीय एकता को जाति, नस्ल, भाषा व क्षेत्रवाद के आधार पर पहले अंग्रेजों द्वारा तोड़ा गया, अब उस एकता को तोड़ने का काम काले अंग्रेज कर रहे हैं.
भारत एक ऐसा देश है, जहांं एक्टर्स क्रिकेट खेल रहे हैं, क्रिकेटर्स राजनीति खेल रहे है, राजनेता पोर्न देख रहे हैं, और पोर्न स्टार्स एक्टर बन रहे है. क्रिकेट इस देश की नयी पीढ़ी को दिमागी तौर पर दीवालिया बना रहा है. इस खेल (क्रिकेट) के लिये खिलाड़ियों की खरीद-फरोख्त करोड़ों में होती है और इस देश कारपोरेट घराने देश-विदेश के क्रिकेट खिलाड़ियों को खरीद कर अपना काला धन सफेद करते हैं.
फिल्मों से जुड़े कुछ नकली अभिनेताओं व अभिनेत्रियों राजनेताओं व क्रिकेट के बिकाऊ खिलाड़ियों का देश में ऐसा गिरोह बन गया है, जो इस देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहे हैं तथा उसे कर्महीनता की दिशा में ढकेल रहे हैं. 120 करोड़ से अधिक की आबादी वाले इस देश की विश्वस्तर पर क्रिकेट को छोड़कर अन्य खेलों में बेहद शर्मनाक स्थिति है.
कर्म की महिमा गाने वाले भारत में आप जुगाड़ से करीब-करीब सब कुछ पा सकते हैं. भारत गरीब लोगों का एक अमीर देश है, भारत की जनता ने दो फिल्मों- बाहुबली और बजरंगी भाई जान, पर 700 करोड़ खर्च कर दिए.
भारत में किसी अनजान से बात करना खतरनाक है, लेकिन किसी अनजान से शादी कर देने में कोई गुरेज नहीं. हम भारतीय अपनी बेटी की पढ़ाई से ज्यादा खर्च बेटी की शादी पे कर देते हैं.
हम एक ऐसे देश में रहते है, जहांं एक पुलिसवाले को देख कर लोग सुरक्षित महसूस करने के बजाए घबरा जाते हैं. भारतीय हेलमेट सुरक्षा के लिहाज से कम, चालान के डर से ज्यादा पहनते हैं.
(2)
पब्लिक के परसेप्शन को समझने का हमारे आपके पास कौन सा जरिया है ? पूरा मीडिया-समाचारपत्र व चैनल देश के बड़े-बड़े पूंजीपति घरानों के हैं. वे सत्ता के दुभाषिये बनकर जनता के धन का सरकारी विज्ञापनों के जरिये दोहन करते हैं और सत्ताधारी शासक जो चाहते हैं, वही बोलते हैं तथा वही लिखते हैं.
देश व दुनिया भर के शासकों ने जनता को धर्म, मजहब, नस्ल, जाति, भाषा, रंग व क्षेत्र के आधार पर तथा अंधराष्ट्रवाद फैलाकर बांट रखा है. सोशल मीडिया न होता तो देश व दुनिया भर के लोग आपसी कम्युनिकेशन तथा संवाद के लिए भी सरकार के मोहताज होते. दरअसल समाज वर्गों में विभाजित है. बिना इस वर्गीय विभाजन की हकीकत को समझे पूरी जनता के संबंध में एक जैसा परसेप्शन बनाना मेरे विचार से उचित नहीं है.
हमारी वर्ग स्थिति ही हमारे विचारों को निर्धारित करती है, परंतु ये विचार भी इकहरे न होकर अंतर्विरोध से पूर्ण होते हैं. श्रम की मनुष्य की चेतना का विकास सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है. श्रम की ही बदौलत मानव सभ्यता व संस्कृति विकास करते हुए यहाँ तक पहुंंची है. निरंतर श्रम व मेहनतकश वर्गों के जीवन की स्थितियों का अध्ययन व पर्यवेक्षण मनुष्य के चिंतन व विचार धारा को वर्गीय संकीर्णताओं से बाहर ले जाता है.
मनुष्य जिस समाज में रहता है-बोलना पढ़ना व लिखना सीखता है तथा शिक्षा प्राप्त करता है – अधिकांशतः उसके विचारों का निर्माण इसी समाज व प्रक्रिया में होता है. उच्च मानवीय चेतना मनुष्य को वर्गीय संकीर्णताओं से ऊपर उठाती है. वैज्ञानिक रचनाकार कलाकार तथा सार्वकालिक श्रेष्ठ अभिनेताओं को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है.
(3)
कोरोना की आड़ में भारत के शासकों द्वारा पहली कक्षा से लेकर उच्च कक्षाओं तक के लगभग देश के सभी स्कूलों व कालेजों तथा विश्वविद्यालयों के छात्रों का एक साल बर्बाद कर दिया गया है..जब पूरे साल में कोई पढ़ाई ही नहीं हुई है तो फिर परीक्षा की औपचारिकता पूरी कर सभी छात्रों को अगली कक्षाओं में पहुंंचा देना लगभग अर्थहीन है.
इस एक साल के बीच जिन शिक्षित बेरोजगारों की उम्र नौकरियों के लिए निर्धारित उम्र से अधिक हो चुकी है या होने वाली है, क्या उन्हें केंद्र व राज्य की सरकारें उम्र सीमा में एक साल का अतिरिक्त लाभ या अवसर या छूट प्रदान करेंगी ?
शैक्षणिक गतिविधियों की इस अघोषित बंदी के कारण मानव संसाधनों के दृष्टिकोण से देश को कितना बड़ा नुकसान होने वाला है – क्या इस बात का कोई आंंकलन अब तक किया गया है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि देश के वर्तमान दक्षिणपंथी शासक देश भर के छात्रों को अशि क्षित मूर्ख व अंधभक्त बनाए रखने के लिए कोरोना की आड़ में यह बड़ा गेम खेल रहे हैं.
ये और ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनके जवाब नदारद हैं. भारतीय परिवहन व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भारतीय रेलें देश के आम गरीबों के लिए कब से पटरी पर दौड़ना शुरू होंगी, क्या इसकी जानकारी किसी को है ? इस संबंध में मैं एक बात पक्के तौर पर कह सकता हूंं कि जब तक दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आन्दोलन व धरना-प्रदर्शन जारी है, तब तक भारतीय यात्री रेलों का परिचालन शुरू नहीं होने वाला है.
कारण स्पष्ट है कि अगर रेलों का परिचालन आम जनता के लिए शुरू कर दिया जाता है तो आन्दोलनकारी किसानों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हो जाएगी और शासकों के लिए इस स्थिति से निबटना संभव नहीं होगा।
यहांं यह भी ध्यान में रखने वाली बात है कि देश के सभी राज्यों में बसें खचाखच भर कर चल रही हैं. इन बसों में कोरोना का कोई खतरा नहीं है. कोरोना तो रेलों की बोगियों में छिप कर बैठा हुआ है. मेरे गांंव के मजदूर काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस तथा पद्मावत एक्सप्रेस की चालू डिब्बों में बैठकर 200 से भी कम रूपयों में दिल्ली पहुंच जाते थे. उन्ही मजदूरों को बस से दिल्ली पहुंंचने के लिए 1500/-₹ खर्च करने पड़ रहे हैं.
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मुकेश अंबानी के दादा बनने पर इस देश का प्रधानमंत्री जच्चा-बच्चा को देखने मुंबई के अस्पताल गया था. उसे अपने आका के दरबार में हाजिरी भी लगानी थी, पर इस नीरो के पास दिल्ली की सीमाओं पर पिछले एक माह से किसान विरोधी कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे किसानों के पास जाने तथा उनसे बात करने का समय अब तक नहीं मिला है.
एक तरफ कोरोना के बहाने से देश की आम जनता को मुंह बांधकर घरों के भीतर कैद रहने पर मजबूर किया गया दूसरी ओर असंवैधानिक तरीके से बिना जनता व किसानों का पक्ष जाने समझे तीन किसान विरोधी काले कानूनों को संसद के दोनों सदनों से पास करा दिया गया. अब तक इस आन्दोलन में जितने भी किसानों की मौत हुई है, उनके मौत का जिम्मेदार भी देश के वर्तमान सत्ताधारी शासक ही हैं.
अब जुल्म की इंतेहा हो गई है. अगर अब भी इन कारपोरेटपरस्त शासकों के जुल्मों विरोध न हुआ तो फिर इनकी मनमानी को रोकना असंभव हो जाएगा. देश भर के किसानों के दिल्ली की सीमाओं पर पहुंंचकर आन्दोलन व धरना प्रदर्शन के जिम्मेदार देश के वर्तमान सत्ताधारी शासक हैं.
(इस लेख के लेखक का नाम याद नहीं)
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