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देश का अपमान

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क्या तब देश का अपमान नहीं होता
जब आंगन में खेलती हुई बच्ची को
पटक दिया जाता है मंदिर में
अपनी वहशियत मिटाने के लिए
मिलकर के नोंच खाने के लिए
फिर भीड़ द्वारा उदघोष किया जाता है
जय श्री राम
जय श्री राम।

क्या तब देश का अपमान नहीं होता
जब जाति की ईर्ष्या में जलकर,
कई घर जला दिए जाते हैं।
धर्म के नाम पर भीड़ द्वारा
कमजोरों को दबोच लिया जाता है
और एक भीड़ द्वारा ही
देश का संविधान
जला दिया जाता है
नौजवान मात्र एक भीड़ बन जाता है
भीडतंत्र के आगे
लोकतंत्र बौना हो जाता है।

क्या तब देश का अपमान नहीं होता,
जब देश की औरतें
इस आधुनिक युग में
अनगिनत असमानताओं,
असुरक्षा और भय युक्त
जीवन से गुज़र रही होती है
देश का अन्नदाता किसान
कर्ज में डूब कर,
देश का नौजवान
बेरोजगारी से शर्मसार होकर,
फांसी पर लटक रहा होता है
जब शराब के ठेके
आपातकालीन स्थिति में भी
खोले जाते हैं
लेकिन विद्यालय बंद कर दिए जाते हैं
शिक्षा को व्यापार बना दिया जाता है।

क्या तब देश का अपमान नहीं होता,
जब देश का अरबों रुपया लेकर
पूंजीपति विदेशों में बैठ जाते हैं
जब देश में सस्ती से सस्ती कीमत पर
मेहनतकश जनता का श्रम लूटा जाता है
जब नौ महीने की गर्भवती
सर पर ईंटें ढो रही होती है
जब जल जंगल जमीन को बेच
कमीशन खाया जाता है।
तब कोई बवाल क्यों नहीं होता।
ये कैसी विडम्बना है।

ये देश हमसे है दोस्तों,
ना कि हम देश से।
तिरंगा हमारी पहचान है,
ना कि हमारी कमजोरी।
देश का अपमान
तिरंगे के गिरने या उठने से नहीं,
बल्कि देश का अपमान
तब होता है
जब देश की जनता की
संवेदनाएं मर जाती हैं
जब मुनाफे की गरमी से
आंखों का पानी सूख जाता है
जब राजनीति को
पैसा कमाने का जरिया
बनाया जाता है
जब भ्रष्टाचार,
राजनीति का आधार बन जाता है,
जब जनता के हकों की हत्या की जाती है,
जब देश एक बाज़ार
और जनता महज़ एक
सामान बन कर रह जाती है।

  • मेघा आर्या

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