दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी के साथ ही दिल्ली पुलिस के दरबारी तेवर उफान पर है. हालांकि पुलिस हमेशा ही सत्ता पक्ष का एक मुफीद हथियार है. पुलिस को तनख्वाह ही इसी चीज के लिए दी जाती है कि ऊपर के आदेश को तुरंत फालो करो.
जनसाधारण के बीच कोई भी अवैध माने जाने वाले कार्यों में अगर कुछ नेताओं को उसमें अपना फायदा दिखता है तो पुलिस लाव लश्कर के साथ पहुंचकर सब वैध हो जाता है. दिल्ली में शीत लहरियों ने जैसे ही अपने थपेड़ों को कम किया वैसे ही राजनीतिक गलियारों में मनमानी का धंधा बागा-बाग हो रहा है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस समय कारावास में हैं. AAP कार्यकर्ताओं ने इस पर दिल्ली में एक विशाल जनसभा आयोजित की थी. लगभग सभी पत्रकार इस प्रोटेस्ट की कवरेज के लिए वहां पहुंचे थे लेकिन दिल्ली पुलिस ने पत्रकारों को रिपोर्टिंग करने से मना कर दिया.
पुलिस-पत्रकारों के बीच तू-तू-मैं-मैं ने झड़प का रूप अख्तियार कर लिया. पुलिस ने इंडिया टुडे के पत्रकार का गला दबाते हुए कहा कि ‘तुम जहां पर खड़े हो ये दिल्ली है और दिल्ली अब केजरीवाल की नहीं रही ….’.
बहरहाल, दिल्ली पत्रकार एसोसिएशन व फोटो पत्रकार संगठनों ने पुलिस के इस वहशियाना कारनामे के प्रति आक्रोश जाहिर किया है. लेकिन आजकल मीडिया हाउस किसकी प्रापर्टी बनी हुई है ये भी किसी से छिपा नहीं है.
मामला जो भी हो चीजें गुणात्मक गति से बदल रही हैं, और लोकसभा चुनाव 2024 भारत का सबसे बदनाम चुनाव का कीर्तिमान स्थापित करने वाला है.
- ए. के. ब्राईट
Read Also –
2002 के नरसंहार के दोषियों को फांसी पर नहीं चढ़ा पाने की कांग्रेस की व्यर्थता का ख़ामियाज़ा देश दशकों तक भोगेगा
2024 का चुनाव (?) भारत के इतिहास में सबसे ज़्यादा हिंसक और धांधली से होने की प्रचंड संभावनाओं से लैस है
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]