गुरूचरण सिंह
इतना तो सच है दिल्ली का मौजूदा नरसंहार तो उन्हीं इलाकों में हुआ है जहां से भाजपा के सातों विधायक जीते थे, यानी यमुना पार के उत्तरपूर्वी दिल्ली के इलाके.
पता नहीं यह संयोग ही है या कोई पहले से चली आ रही एक प्रक्रिया की अगली कड़ी, लेकिन इतना तो सच है दिल्ली का मौजूदा नरसंहार तो उन्हीं इलाकों में हुआ है जहां से भाजपा के सातों विधायक जीते थे, यानी यमुना पार के उत्तरपूर्वी दिल्ली के इलाके. दहशत का आलम यह था कि दिल्ली वालों को 84 का नरसंहार याद आ गया. उसके निशाने पर भी एक कौम सिख थी, इसमें भी एक ही कौम है मुसलमान. यही वह इलाका है जहां के आरक्षित चुनाव क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मशहूर पंजाबी लोकगायक हंसराज हंस को जालंधर (पंजाब) से आयात किया गया था. सूफियाना कलाम गाने में मसरूफ रहने वाले इस लोक गायक को अपने इतिहास की बुनियादी जानकारी तक नहीं है, जनता से संपर्क और संसदीय कामों में भागीदारी तो बहुत दूर की बात है.
यमुना पार से दूसरे सांसद हैं गौतम गंभीर, बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी लेकिन उतने ही खराब सांसद हैं. मैं खुद भी यमुना के इस पार वाले इसी चुनाव क्षेत्र का निवासी हूं. देश के बंटवारे के समय दिल्ली आए एक शरणार्थी परिवार से हैं ये गौतम गंभीर. इसलिए अपने समुदाय की तरह उसके मन में भी मुसलमानों के खिलाफ एक दबा हुआ गुस्सा है, कुंठा है. अपनी क्रिकेट की तरह ही वाणी से भी वह एक अगिया बेताल हैं. जनसंपर्क लगभग है ही नहीं. सबके तारणहार मोदी जी तो हैं ही, फिर बेकार की मेहनत क्यों करना !!
खैर, शाहीन बाग में पिछले अढ़ाई महीने से चल रहा था नागरिकता कानून के खिलाफ महिलाओं का धरना प्रदर्शन. पता नहीं इसे बदनाम करने की कितनी तरह से कोशिश की गई. पैसे और बिरयानी के लिए धरने पर आने वाला बताया गया उन्हें, यह जानते हुए भी सिख संगठन या बजाप्ते खुद सिख वहां लंगर का इंतजाम करते रहे हैं. बता दें कि लंगर के नाम पर मांसाहारी खाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. बुर्का पहनकर संघी लड़कियां तक भीतरघात करने के लिए शामिल हो गई थीं उन औरतों में, लेकिन पकड़ी गईं.
खैर, मजाल है इस अरसे में पुलसिया कार्रवाई और मुसंघी शरजाल और वारिस पठान के भड़काऊ बयानों के बावजूद वहां कोई अप्रिय घटना घटी हो. जैसे ही ‘कोर्ट के आदेश’ के चलते सड़क का एक हिस्सा जबरदस्ती खुलवाए जाने से इन आंदोलनकारियों का एक समूह मौजपुर में स्थानांतरित हुआ, दंगाइयों की योजना का दूसरा चरण शुरू हो गया.
पहले कपिल मिश्रा और फिर रागिनी तिवारी जैसी भड़काऊ और गंदी भाषा का इस्तेमाल करती हुई महिला और उस जैसे और कई लोग नागरिकता कानून के समर्थन में सड़क जाम कर देते हैं, जाट और गुर्जर आंदोलन की तरह जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ था लेकिन संघ-भाजपा ने एक शब्द भी नहीं कहा था उनके खिलाफ. बल्कि आगे बढ़ कर उन्हें मनाने की कोशिश की थी. लेकिन इस बार तो निशाने पर ‘देश के गद्दार’ थे, विदेशी थे, विधर्मी थे, मलेच्छ थे ! संक्षेप में जो कुछ भी बुरा हो सकता है, वे सभी थे ! फिर उनके खिलाफ कुछ करने में कैसा संयम !!!
सच्चाई तो यह है कि दंगा करने, करवाने में संघ-भाजपा का कोई सानी ही नहीं. एक सदी से यही काम करते करते इतनी महारत हासिल कर ली उन्होंने कि जब चाहें, जहां चाहें ऐसा माहौल बना सकते हैं, जिसमें कभी भी दंगे भड़क उठते हैं और कोई कुछ नहीं कर सकता. इसे तो महज आपकी एक वोट ही हरा सकती है वरना तो उसे हराना किसी के बूते की बात नहीं है ! भाजपा को मारे भाजपा या मारे करतार क्योंकि जो महारत इन्हें हासिल है उसका सामना कौन और क्या खा कर करेगा कोई !! पगड़ी पहन कर ये लोग सिख भी बन सकते हैं और टोपी पहन कर मुसलमान भी. यह तो कुछ भी नहीं वर्दी पहन कर पुलिस और सैनिक भी बन सकते हैं ये लोग. चोरी भी करेंगे और चोर-चोर चिल्लाने वाले भी यही लोग होंगे; गोली भी खुद ही मारेंगे और बेकसूर बन टेसुए बहाते हुए भी यही लोग मिलेंगे. देश के दुश्मनों को गोपनीय जानकारी भी यही बेचेंगे और जय श्रीराम का जयकार कर देशभक्त भी यही बन जाएंगे !
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