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दिल्ली के दंगे और उसकी चुनौतियों को याद रखा जाना चाहिए

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दिल्ली में गुजरात मॉडल को एक बार फिर दुहराया गया और दबे-कुचले आंकड़ों के बाद भी मरने वालों की तादाद 49 पार कर चुकी है. मरने वालों में अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग थे. सैकड़ों घायल हुए और करोड़ों की सम्पत्ति जलकर राख हो गई. देश की राजधानी में गुजरात मॉडल को दुहराने की घटना की गूंंज न केवल देेेश के लोगों को सिहरा दिया बल्कि सारी दुनिया एकबारगी सहम गई. दिल्ली दंगे मेें बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश से भाड़े के गुंंडे मंंगवाये गये थे, ये बात अब पूूरी तरह साबित हो चुुुकी है. यही कारण है कि दिल्ली के दंगे को हमेशा याद किया जाना चाहिए. मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त रविश कुमार की रिपोर्ट.

दिल्ली के दंगे और उसकी चुनौतियों को याद रखा जाना चाहिए

दिल्ली दंगों की बहसें बड़ी होने लगी हैं. इन बहसों के लिए खलनायक चुन लिए गए हैं ताकि आराम कुर्सी पर बैठे प्रवक्ताओं के भाषण में जोश आ सके. धीरे-धीरे अब चैनलों से मरने वालों की संख्या भी हटती जा रही है, लेकिन उनके पीछे परिवार वाले अलग-अलग चुनौतियों से जूझ रहे हैं. यूपी के कासगंज के प्रेम सिंह रिक्शा चलाने आए थे. ब्रिजविहार में किराए के मकान में पत्नी और तीन बेटियों के साथ रहते थे. प्रेम सिंह की उम्र 26-27 बताई जा रही है. उनके छोटे भाई चांद सिंह ने बताया कि न तो प्रेम सिंह साक्षर थे और न ही उनकी घरवाली. घरवाली के नाम से खाता भी नहीं है. सरकार मदद के पैसे दे रही है, लेकिन एक लाख रुपया बाहर कैसे रखें. तो अब खाता खुलवाने का प्रयास हो रहा है. प्रेम सिंह के परिवार का खर्च कैसे चलेगा? उसकी पत्नी तीन बेटियों को लेकर किस जीवन यात्रा पर निकलेगी इसका जवाब उन प्रवक्ताओं के पास नहीं है जो टीवी के डिबेट में आराम कुर्सी पर बैठे हैं. दरअसल आप देखिए तो कितनी जल्दी इस हिंसा की भयावहता और करुणा से बहस ने दूरी बना ली है. कुछ लोग इन सभी की मदद में लगे हैं, लेकिन आप भी देखिए कि दंगों को लेकर बहस दंगों से भी ज्यादा क्रूर होती जा रही है. जहां एक मज़हब के नाम के अपराधी की बराबरी दूसरे मज़हब के नाम के अपराधी खोज कर की जा रही है. उसी तरह घायलों की संख्या 200 से बढ़ते हुए 400 से कुछ अधिक पर आ रुकी है, लेकिन हर घायल की अपनी अलग कहानी है. उसकी अपनी दुश्वारियां हैं. जिनके हाथ कट गए, पांव बेकार हो गए या शरीर अब पहले की तरह मुश्किल काम नहीं कर पाएगा, उन्हें हम सभी घायलों की संख्या 400 में गिन लेते हैं.
शमशाद 25 तारीख को अपने घर के बाहर खड़ा था. सुभाष विहार की गली नंबर 3 में. पेट में गोली लगी थी. 27 फरवरी को श्मशाद को एलएनजेपी अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई है मगर तीन महीने तक श्मशाद को बिस्तर पर रहना होगा. गोली लगी है तो दर्द है. उठने बैठने में दिक्कत हो रही है. श्मशाद बिजली की दुकान पर काम कर महीने का दस हज़ार कमा लेता था, लेकिन अब उसकी कमाई कई महीनों के लिए बंद हो गई. दिल्ली सरकार ने 20,000 की मदद की है, लेकिन इलाज का बाकी खर्च श्मशाद ही उठा रहा है. पिता प्राइवेट नौकरी करते हैं. श्मशाद के दो बच्चे हैं और पत्नी हैं. जब मीडिया श्मशाद को घायलों में गिनकर आगे बढ़ जाएगा तब श्मशाद ठीक होने के लिए एक-एक दिन संघर्ष करते रहेंगे. श्मशाद के साथ दो और लोगों को गोली लगी थी जो नहीं बच सके. जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं होगा, श्मशाद और उसके परिवार को सदमे से गुज़रते रहना होगा.

जिनकी मौत हुई है या जो घायल हुए हैं वे कानूनी प्रक्रियाओं से बेहद अनजान हैं. मेहनत मजदूरी कर कमाने वाले लोग हैं. बेहद सामान्य परिवारों के. यही वजह रही होगी कि दानिश जीटीबी अस्पताल से डिस्चार्ज होकर बाहर तो आ गया, लेकिन उसे सरकारी मदद का 20,000 नहीं मिला. दिल्ली सरकार घायलों को तुरंत 20,000 दे रही है. श्मशाद को मिला है, लेकिन दानिश को नहीं मिल सका. दानिश को 28 फरवरी को छुट्टी मिली थी. मौजपुर के दानिश को 25 फरवरी को बायें घुटने में गोली लगी थी. चल नहीं पा रहा है, लेकिन अपने घर मुरादाबाद आ गया है. वहां दर्द बढ़ा तो वहां के डॉक्टर से दिखाया. नए डॉक्टर ने नई दवा लिख दी है. अब उसे हर दिन 600 से 700 रुपये की दवा खरीदनी है. वो भी अपने खर्च से. फिलहाल तो परिवार के लोग मदद कर रहे हैं, लेकिन उधार लेकर. दानिश को पूरी तरह ठीक होने में तीन महीने लगेंगे. दानिश नाई का काम करता था और महीने का दस से बारह हज़ार कमा लेता था. दानिश की शादी नहीं हुई है. कच्चा मकान है. नाई की दुकान पर काम करता है, इसलिए दानिश के लिए पैरों पर खड़ा होना बहुत ज़रूरी है.

जाफ़राबाद का आसिफ़ भी घायलो में से एक है. आसिफ़ को दिल्ली सरकार से 20,000 रुपये मिले हैं. आसिफ के भाई तालिब ने बताया कि दिल्ली सरकार के कर्मचारी ने उन्हें घर पर खोजा. अस्तपाल में खोजा. नहीं मिले तो फोन किया कि अपना पैसा आकर ले जाएं. चूंकि आसिफ़ बिस्तर पर था इसलिए उसके भाई को कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए नंदनगरी कोर्ट जाना पड़ा. जहां कई जगह पर साइन करना पड़ा और तस्वीर लेनी पड़ी. यह जानकारी बताती है कि घायलों की लड़ाई कितने स्तर पर होती है.

26 साल के आसिफ़ जाफ़राबाद से वेलकम आए थे खाना खाने. जब खाकर फैक्ट्री जा रहे थे तो गोली लग गई. पेट में एक गोली लगी है. तीन दिन अस्पताल में रहने के बाद आसिफ़ को छुट्टी मिल गई है. आसिफ़ जीन्स की फैक्ट्री में काम करते हुए महीने में 18 से 20 हज़ार कमा लेते थे. अब उन्हें तीन महीने लग जाएंगे ठीक होने में. यानी आसिफ़ को बेकार रहना होगा. दिल्ली सरकार ने 20,000 तो दिए हैं, लेकिन आसिफ को 60,000 का नुकसान हो गया है. आसिफ़ ने बताया कि दवा अस्पताल से मिल गई है. पांच दिनों के बाद बुलाया भी है. आसिफ अभी यूपी के संबल चले गए हैं जहां उनका घर है.

अगर आप देखना चाहते हैं कि दिल्ली सरकार ने राहत और पुनर्वास की नीति कैसी बनाई है, ‘TAKE LINK’ आप उसकी वेबसाइट पर जाएं और टाइप करें delhi.gov.in/Relief. यहां लिखा है कि दंगों में घायल हुए लोगों को क्या-क्या मदद दी जाएगी. इस वेबसाइट पर अधिकारियों के नाम और नंबर भी हैं.

स्थायी रूप से विकलांग होने वालों को 5 लाख रुपए दिए जाएंगे
गंभीर रूप से घायलों को को 2 लाख रुपये दिए जाएंगे
कम गंभीर घायलों को 20,000 रुपये दिए जाएंगे
अनाथ होने वालों को 3 लाख रुपये दिए जाएंगे
जिनका ई रिक्शा जला है उसे 50,000 और सामान्य रिक्शा वाले को 25,000 रुपये दिए जाएंगे

आसिफ़ और श्मशाद को गंभीर घायलों की श्रेणी में नहीं रखा गया है. उन्हें 20-20 हज़ार ही मिले हैं. आसिफ़ और श्मशाद को गोली लगी है. उन्हें ठीक होने में दो से तीन महीने लगेंगे. काम पर वापस जाने में और वक्त लग सकता है. क्या इन्हें तीन लाख रुपये नहीं मिलने चाहिए थे?

दिल्ली के दंगों में 327 दुकानें जली हैं. दिल्ली सरकार ने जो मुआवज़ा नीति की घोषणी की है, उसमें यही लिखा है कि वैसे कमर्शियल यूनिट को अधिकतम पांच लाख मिलेगा जिन्होंने बीमा नहीं कराया है. क्या इससे बिजनेस में हुए घाटे की भरपाई हो पाएगी? हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में घरों में बिजनेस यूनिट चल रहे थे. कानूनी शब्दावली में इन्हें कई तरह की मुसीबत आ जाए. असंगठित क्षेत्र की इन इकाइयों को दूसरे नज़रिए से भी देखने की ज़रूरत है. दंगाइयों ने जलाते वक्त न हिन्दू की दुकान देखी न मुसलमान की. लेकिन अब कानून उन्हें अपनी किताब के हिसाब से देखने लगेगा तो इनकी मुसीबत और बढ़ सकती है. एक मुसीबत तो यही है कि वे अपना सारा नुकसान नहीं बता सकते हैं, लेकिन वो नुकसान हुआ तो है ही. दूसरी मुसीबत ये है कि सरकार का मुआवज़ा काफी नहीं होगा. एक मुसीबत यह भी है कि दुकानें खड़ी करें या कानूनी प्रक्रिया पूरी करें.

भजनपुरा पेट्रोल पंप के साथ इस कोचिंग सेंटर को भी जला दिया गया था. विनोद जोशी अपने इस कोचिंग सेंटर में युवाओं को स्वरोज़गार के हुनर सीखाते थे. 50 से 60 नौजवान यहां ट्रेनिंग ले रहे थे और 10-12 ट्रेनर को भी रोज़गार मिला था. मगर आग की घटना में सारे कंप्यूटर जल गए. वाई फाई से लेकर सीसीटीवी की तारें जल गईं. दीवारों का रंग रोगन फिर से करना होगा. इन सबका खर्च विनोद जोशी को अपनी जेब से उठाना होगा या फिर किसी से उधार लेकर करना होगा. दिल्ली सरकार की मुआवज़ा नीति के दायरे में यह कोचिंग सेंटर नहीं आया तो फिर विनोद जोशी ज़िंदगी भर उस चीज़ का खर्च चुकाते रहेंगे, जिसके लिए वे कहीं से ज़िम्मेदार नहीं हैं. विनोद की 25 साल की मेहनत दांव पर लग गई है. उन्हें वापस ज़ीरो से शुरू करना होगा.

विनोद जोशी ने बताया कि सड़कें अभी भी पहले की तरह व्यस्त नहीं हुई हैं. दुकानदारों और खरीदारों को सामान्य होने में वक्त लगेगा. इसके लिए स्थानीय व्यापार संघ पुलिस के साथ मिलकर शांति मार्च निकालेगा. इसमें भजनपुरा के रेज़िडेंट वेलफेयर संघ के सदस्य भी होंगे. ये सभी लोगों को एक गुलाब का फूल भेंट करेंगे ताकि सबको लगे कि हालात सामान्य हो गए हैं और व्यापार को पटरी पर लाना बहुत ज़रूरी है. दुकानदारों के संकट को भी अलग से समझने की ज़रूरत है.

दानिश की दवा की दुकान क्राउन मेडिकल्स गोकुलपुरी झुग्गी झोपड़ी कॉलोनी के मेन रोड पर है. 24 फरवरी को डेढ़ बजे आग लगा दी गई. पहले ताला तोड़कर तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन नहीं टूटा तो आग का गोला फेंक दिया गया. 1987 से यह दुकान थी. दानिश के अनुसार डेढ़ करोड़ का नुकसान हुआ है. बीमा नहीं कराया था. यहां घर के तीन लोगों को मिलाकर 6 लोगों को काम मिला था. दानिश को कोई मुआवज़ा नहीम मिला है. फॉर्म भरने के लिए कहा गया है. जिस पर दो पड़ोसियों को साइन करना होगा. थाने में जमा करा दिया है, लेकिन कुछ हुआ नहीं है अभी तक.

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