दिल्ली के जेएनयू और डीयू छात्र संघ के चुनाव में प्रतिगामी ताकत भारतीय जनता पार्टी के छात्र ईकाई एवीबीपी को जिस प्रकार छात्रों के आक्रोश का सामना करना पड़ा और उसे नेतृत्वकारी निकायों से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, वह भारतीय जनता पार्टी के प्रति देशभर का रूझान का प्रतिनिधित्व करता है. जेएनयू देश भर में फैले हुए किसान, मजदूर, बुद्धिजीवियों व जनवाद पसंद प्रगतिशील छात्र ताकतों का प्रतिनिधित्व करता है, तो वहीं डीयू उत्तर भारत के छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि डीयू में ज्यादातर उत्तर भारत के छात्र पढ़ने जाते हैं.
जेएनयू और डीयू छात्र संघ में भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन एवीबीपी की हार इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इन शिक्षण संस्थानों में मोदी के प्रतिगामी नीतियों पर खुलकर बहस होती है और इन चुनावों में एवीबीपी की पराजय, मोदी के नीतियों की पराजय के रूप में देखा जाना चाहिए. महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है की इन छात्रों के बौद्धिक और नैतिक बहसों में जाने-अनजाने आज समूचा देश शामिल हो गया है.
जेएनयू और डीयू के छात्र संघ के चुनाव में एवीबीपी की पराजय का सबसे गहरा संदेश इस बात में जाता है कि यहां मतदान संदिग्ध ईवीएम के वजाय मतपत्रों से किया गया था. उत्तर प्रदेश में भाजपा की विशाल जीत ने ईवीएम को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था क्योंकि धरातल पर जिस प्रकार ध्रुवीकरण हो रहा था वह भाजपा के पक्ष में तो कतई नहीं था. परन्तु अचानक ईवीएम से भाजपा के पक्ष में जिस प्रकार ईवीएम से आदेश निकल कर सामने आया, वह स्वाभाविक नहीं था. ईवीएम के खिलाफ देश भर में सवाल उठने और उसकी जांच कराये जाने की मांग को जिस प्रकार चुनाव आयोग ने न केवल अनसुना ही कर दिया वरन् ‘अंधे धृतराष्ट्र’ की भांति ईवीएम के पक्ष में अड़ा रहा, वह देश की निगाह में खुद चुनाव आयोग ही भाजपा के दलाल के रूप में साबित कर गया.
दिल्ली के छात्र संघों का यह जनादेश ईवीएम के खिलाफ इसलिए भी जाता है कि उत्तर प्रदेश में अस्वाभाविक तौर पर जीत के बाद जहां कहीं भी मतपत्रों के माध्यम से चुनाव हुई और भाजपा ने उसमें भाग लिया, उसे पराजय ही हाथ लगी है, चाहे बंगाल हो या गुजरात अथवा स्वयं दिल्ली के बाबना या फिर राजस्थान छात्र संघ का चुनाव हो. भाजपा की मतपत्रों के माध्यम से हुई लगातार हार ने यह साबित कर दिया है कि ईवीएम फर्जी है. वह देश की जनता के जनादेश का प्रतिनिधित्व कतई नहीं करता. जिस प्रकार सारी दुनिया ने ईवीएम को कबाड़ में फेंक दिया है, भारत में भी उसे कबाड़ के हवाले फेंक दिया जाना चाहिए.
भाजपा की नीतियों के खिलाफ देश भर में गुस्सा है. किसान, मजूदर, व्यावसायी सहित सभी भाजपा की नीतियों से आक्रोशित हैं. देश में कहीं भी भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण नहीं है. जो भी दिख अथवा दिखाया जा रहा है वह सोशल मीडिया पर बैठे भाजपा के गुण्डे और खुद को भाजपा के हाथों बेच चुके मुख्य धारा की मीडिया संस्थान की वजह से हो रहा था. चूंकि अब ऐसे वे तमाम मीडिया संस्थान – जिसमें जी-न्यूज, अरनब गोस्वामी का रेडिकल (यह केवल नाम का रेडिकल है) न्यूज – जो भाजपा की दलाली व स्वामी भक्ति में लीन थे, जनता में बदनाम हो चुकी है.वहीं सोशल मीडिया पर बैठे भाजपा के भाड़े के गुण्डे हर दिन, हर क्षण जनता के आक्रोश से प्रकम्पित हो कर मैदान छोड़कर भाग रहे हैं.
जेएनयू के छात्रों के साथ किया गया दुव्र्यवहार देश की जनता को हिला कर रख दिया था. सारे के सारे दलाल नंगे हो गये. भाजपा की नीतियों की समीक्षा देश की हर गली व सड़क-चैराहे पर होने लगी है. पतनशील भाजपा पूरे देश के सामने नंगी हो गई है. यही कारण है कि दिल्ली के दोनों छात्र संघों में एवीबीपी की पराजय खुद भाजपा, उसकी नीतियों, संदिग्ध ईवीएम और भाजपा की दलाली पर उतर आये चुनाव आयोग के खिलाफ मानी जानी चाहिए.