देह
इस देह में
बहुत सारे देह हैं
एक देह वह है
जो सिर्फ़ भीड़ से धकियाते हुए
अपने गंतव्य तक पहुँचता है
इस देह में घुल जाता है
हज़ारों देह के गंध
गोनोरिया रोगी हो या गलित कुष्ठ का रोगी
सबकुछ आत्मसात कर
ज़िंदा रहता है यह देह
तुम इसे मेरी उन्नत प्रतिरोध क्षमता कहते हो
मैं इसे अपने पारिपार्श्विक के प्रति उदासीनता
दूसरा वह देह है
जो तुम्हारे साथ अंतरंग होने के लिए
शुचिता की तलाश में रहता है
बाल्टी भर पानी में धुल जाता है
नर्तकी का ज़हरीला दंश
यह देह तुम्हारे साथ जब होता है
अक्सर, बंद खिड़की के पीछे
मुजरा करती हैं उसकी परछाईंयाँ
तुम इसे खंडित व्यक्तित्व कहते हो
मैं इसे दुनाली के निशाने पर रखा शिकार कहता हूँ
तीसरा देह नींद और शांति की तलाश में रहता है
उसके लिए फुटपाथ और महल में
कोई अंतर नहीं है
माँ की गोद से बिछड़ने के बाद
इस देह के लिए सब कुछ एक समान है
तुम इसे निस्पृह पशु कह सकते हो
मेरे लिए यही चरम वैराग्य है
एक और देह इनके सिवा भी है
एक देह
जो कभी बनना चाहता है
राजा के बेशर्म नाक पर पड़ता हुआ घूँसा
कभी बनना चाहता है
बारूद और बंदूक़
उनके लाल कार्पेट के नीचे
फटना चाहता है बम बनकर
तुम इसे आत्मघाती कह सकते हो
मेरे लिए यही देह सबसे उत्तम है
- सुब्रतो चटर्जी
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