Home कविताएं मरी चिरैया

मरी चिरैया

0 second read
0
0
188

एक मरी हुई चिरैया
मेरे पांव के सामने पड़ी है
अगला कदम उठाने के पहले
हज़ार बार सोचना है

हर बार ऐसा नहीं होता कि
अतिथि
तुम्हारे दरवाज़े पर आ कर
दम तोड़ दे
और तुम्हारे हिस्से रह जाए
उसके आने के कारण पर
उधेड़ बुन करते हुए
दिन काट लेना

जैसे कोई अकारण
बिन बुलाए आ जाता है
और कहता है
बहुत दिनों से उसे तुमसे मिलने का मन था
बस यूं ही
उसी तरह कोई अकारण चला भी जाता है
यहां से

फ़िलहाल
मैं सोच रहा हूं कि
मेरे सामने पड़ी
मरी हुई चिरैया के उपर
अपने शरीर का सारा बोझ
डाल दूं या नहीं

क्या फ़र्क़ पड़ेगा अगर
उसके चमकते हुए, लेकिन
मरी हुई डैनों को
रौंद जाऊं मैं

क्या फ़र्क़ पड़ेगा अगर
आसमान की तरफ़ उठी
उसकी खुली लेकिन निर्जीव आंखें
और खुले हुए चोंच
मेरे शरीर के बोझ तले दब कर
कुछ और विस्फारित हो जाए
जैसे, छर्रे की मार से माथे से
छिटक कर
धरती पर बिखर जाता है भेजा

आख़िर मरी हुई चिरैया ही तो है
क्या फ़र्क़ पड़ता है कि कभी
यही चिरैया गाती थी
और बीट करती थी
मंदिर के माथे पर
और राज प्रासाद के घड़ियालों पर

राज पथ के किनारे उगे पेड़ों पर
फुदकती हुई चिरैया ने देखा था
कई गणतंत्र दिवस की झांकियां
जीवित रहते हुए जिसने
शक्ति का इतना प्रदर्शन देख लिया
क्या मरने के बाद
एक मेरे शरीर का बोझ नहीं संभाल पाएगी

बेशक उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा
लेकिन, मुझे पड़ेगा
मैं
मृत्यु से सौम्य, शांत हुए
एक अक्षुण्ण काया को
जला सकता हूं
दफ़ना सकता हूं
पानी में बहा सकता हूं
मीनारों पर टांग सकता हूं
लेकिन
अपने पैरों तले रौंद नहीं सकता

मैं जानता हूं कि
मरी हुई चिरैया आजीवन मेरे साथ रहेंगी
मैं जब भी घर लौटूंगा
और काग़ज़ कलम के मुख़ातिब रहूंगा
वही मरी हुई चिरैया
सामने की खिड़की के बाहर
पेड़ पर पड़ी मिलेगी
वही पेड़ जो मुझे रोज़ अंगूठा दिखाता है
अपनी जगह खड़े खड़े

और
हिल डुल नहीं पाता मैं अपनी जगह से

मरी हुई चिरैया की तरह
जमीन से उठे मेरे पैर की तरह

किसी निष्कर्ष तक पहुंचने की जल्दी
कभी नहीं रही
धनुष पर चढ़े वाण की तरह
जो कभी चला ही नहीं

सभी ज़िंदा हैं जैसे
मौत से मिली
अग्रिम ज़मानत पा कर

  • सुब्रतो चटर्जी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • मरम्मत से काम बनता नहीं

    आपके साथ जो हुआ वह निश्चित ही अन्याय है पर, आपके बेटे की क्या गलती जो बेशक बहुत अव्वल नहीं…
  • बहुत सारे फिलिस्तीन हैं और इस्राईल भी…

    बहुत सारे फिलिस्तीन हैं और इस्राईल भी बहुत हैं असल में हम सब के भीतर इस्राईल भी है और फिलि…
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

क्या यूक्रेन में जनवादी कोरिया (उत्तर कोरिया) के सैनिक हैं ? आईये, सच की पड़ताल करें

उत्तर कोरिया के 10 हजार सैनिक यूक्रेन में रुस के साथ सहयोग में है, इस तरह की बातें आये दिन…