गिरीश मालवीय
भारत में वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल का डेटा और वैक्सीनेशन के बाद के उसके प्रभाव का डेटा जनता के लिए जारी करने में आख़िर दिक्कत क्या है ? जबकि ICMR के नियम ही कहते हैं कि क्लिनिकल ट्रायल और वैक्सीन प्रभाव का डेटा सार्वजनिक होना चाहिए.
इस मामले को जैकब पुलियल और प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए जहां सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल का डेटा और वैक्सीनेशन के बाद के उसके प्रभाव का डेटा पब्लिक करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था. जवाब में केंद्र ने कहा था- COVID-19 टीकाकरण के खिलाफ किसी भी तरह के प्रोपगेंडा से वैक्सीन लगाने को लेकर हिचकिचाहट बढ़ेगी और संदेह पैदा होगा, जो जनहित में नहीं होगा. इस तरह की याचिका राष्ट्रीय हित के खिलाफ है और लोगों के टीकाकरण के अधिकारों का उल्लंघन करेगी.
यानी सही बात भी लोगों तक पहुंचाना प्रोपेगेंडा हैं. क्लिनिकल ट्रायल में हिस्सा लेने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाली डेटा दुनिया भर में सार्वजनिक किया जाता है लेकिन भारत में हमने ऐसा किया तो वह राष्ट्रीय हित के खिलाफ हो जाएगा.
याचिकाकर्ता ने कह रहे हैं कि जो भी प्रतिकूल प्रभाव का डेटा है, उसे टोल फ्री नंबर पर लोगों को बताया जाए, साथ ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर कोई टीकाकरण करवा रहा है और प्रतिकूल प्रभाव हुआ है तो वह इस बारे में शिकायत कर सके. आप ही बताइए कि ऐसा होना चाहिए या नहीं ?
असलियत बुलेट ट्रेन परियोजना की
मीडिया जापानी प्रधानमंत्री द्वारा 3.2 लाख करोड़ के भारत में निवेश करने की खबर प्रमुखता से दिखा रहा है लेकिन मीडिया यह तो पूछ ही नहीं रहा है कि पिछली बार जब जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे 2016 में भारत आए थे और उन्होंने भारत में 2022 तक चलने वाली बुलेट ट्रेन के लिए एक लाख करोड़ का लोन देने को कहा था तो आखिरकार उस बुलेट ट्रेन योजना का हुआ क्या ?
2016 में मोदी सरकार की हर योजना का लक्ष्य 2022 रखा गया था. लगता था कि 2022 कोई जादुई वर्ष है. भारत 2022 में स्वर्णयुग में प्रवेश कर जाएगा. 100 स्मार्ट सिटी बन जाएगी, गंगा पूरी तरह से साफ़ हो जाएगी, मुंबई से अहमदाबाद तक बुलेट ट्रेन दौड़ने लगेगी…, यह सारे सपने 2022 में ही पूरे होने थे लेकिन आज कुछ नहीं हैं. जनता को कश्मीर फाइल्स दिखा दी गई हैं और जनता उसी में उलझी भी हुई है.
बाकि योजनाओं के बारे में बाद में जान लीजिएगा, आज बुलेट ट्रेन के बारे में ही जान लीजिए. बुलेट ट्रेन के 237 किमी लंबे रूट में अभी आधा रूट भी तैयार नहीं हो पाया. 508 किलोमीटर के पूरे रूट पर 8000 पिलर बनाए जाने हैं, उसमें से सिर्फ 502 पिलर ही तैयार हुए हैं. कई हिस्सों में तो अभी जमीन अधिग्रहण का काम भी पूरा नहीं हुआ है.
कहां मोदी 2022 में बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहे थे और अब पता चला हैं कि बुलेट ट्रेन का पहला ट्रायल-रन वर्ष 2026 में होगा, वो भी मात्र सूरत से बिलिमोरा के बीच. परियोजना तो शायद 2029 में भी पूरी नहीं हो पाएगी, क्योंकि प्रॉजेक्ट के सबसे महत्वपूर्ण सेक्शन माने जा रहे 21 किलोमीटर के अंडरग्राउंड स्ट्रेच के लिए जापान की तरफ से हिस्सेदारी नहीं मिली है. 21 किलोमीटर के इस अंडरग्राउंड स्ट्रेच में से 7 किलोमीटर का सेक्शन मुंबई के पास समुद्र से होकर गुजरेगा. अभी तक इसको लेकर डील फाइनल नहीं हो सकी है. यह है असलियत बुलेट ट्रेन परियोजना की.
मुकेश अंबानी की दादागिरी
देश के सबसे बड़े सेठ मुकेश अंबानी ने पिछले हफ्ते दादागिरी दिखाते हुए हुए बिग बाजार वाले फ्यूचर ग्रुप के 300 स्टोर्स पर रातों रात अपना ताला डालकर कब्जा कर लिया. मीडिया ने बड़े सेठ जी की वाह वाह करनी शुरु कर दी कि उन्होंने हजारों नोकरियां बचा ली, लेकिन दो दिन पहले सेठ जी का दांव उल्टा पड़ गया क्योंकि फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (FRL) ने रिलायंस पर जबरन स्टोर कब्जा करने का आरोप लगाया.
दरअसल यह मामला बिग बाजार वाले बियानी जी के अमेजन के साथ हुए सौदे के कारण सुप्रीम कोर्ट में उलझा हुआ था और रिलायंस के मुकेश अंबानी दाल भात में मूसलचंद बनकर बीच में कूद पड़े और जबरन 300 दुकानों पर कब्जा कर लिया.
इस संबंध मे अमेजॉन ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया जो कई अखबारों में भी छपा. इसमें कहा गया कि कंपनी के निदेशक मंडल ने रिलायंस समूह को यह भी सूचित किया कि बुनियादी ढांचा, माल भंडार आदि जैसी फ्यूचर ग्रुप से संबंधित संपत्तियां इन दुकानों के अंदर पड़ी है, इसे एफआरएल के कर्जदाताओं के पक्ष में सुरक्षित रखा जाए.
2019 में अमेजॉन ने फ्यूचर ग्रुप के साथ एक डील की थी. इसके बाद अमेजॉन ने फ्यूचर ग्रुप के गिफ्ट वाउचर की यूनिट में भारी निवेश किया था. इस बीच रिलायंस ने दीवालिया होते फ्यूचर ग्रूप को पूरा खरीद लिया लेकिन अमेजॉन ने इस डील के खिलाफ अपील की और अमेजॉन के पक्ष में सिंगापुर के इमरजेंसी आर्बिट्रेटर ने फ्यूचर ग्रुप को रिलायंस रिटेल के साथ 27,513 करोड़ रुपये के सौदे पर रोक लगाने का निर्देश दिया.
लेकिन रिलायंस नही माना इसलिए अमेजॉन ने भारत के दिल्ली हाईकोर्ट में यह मामला दाखिल किया. हाईकोर्ट से यह मामला सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस और फ्यूचर ग्रुप की करीब 27,513 हजार करोड़ की डील पर रोक लगा रखी थी. यह मामला चल ही रहा था कि सेठ जी ने यह 300 स्टोर्स को कब्जाने का कदम उठा लिया.
यह मामला अब दुनिया के दो सबसे बड़े सेठों मुकेश अंबानी और जेफ बेजोस के बीच नाक की लड़ाई बन गया है, हालांकि मोदी जी के सपोर्ट की वजह से अम्बानी भारी पड़ते नजर आ रहे हैं.
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]