आज जहां एक तरफ तथाकथित संवैधानिक पार्टियां इस समाज को खोखला बनाने में लगी हुई है और देश के तमाम संपत्तियों को मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सौंप रहा है. बड़ी आबादी को फिर से गुलामी की ओर धकेलने का रोज नया योजना बन रहा है, देश के सरकारी खजानों को लूटकर देश छोड़ कर लगातार चोर लूटेरे भाग रहा है, वहीं अपने हक अधिकार के लिए लड़ रहे साथियों को यह व्यवस्था यातना का शिकार बना रही है.
आपको पता ही होगा इसी झारखंड के स्टेन स्वामी जो आदिवासी मूलवासी पर हो रहे जुल्म व अत्याचार के खिलाफ अपने जीवनपर्यंत संघर्षरत रहे, उन्हें जेल में यातना व प्रताड़ित करते हुए इस व्यवस्था में बैठे हुकूमत ने मार दिया.
आज भी जेल के सलाखों में बंद जीवनपर्यंत मानवाधिकार व इस व्यवस्था की गलत नीतियों के खिलाफ संघर्षरत रहे व आदिवासी मूलवासी पर चलाये जा रहे सलवा जुडूम के खिलाफ आवाज उठानेवाले दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक जी. एन. साईंबाबा जो 90 प्रतिशत तक विकलांग हैं, को जेल के अंडासेल में बंद करके यातना दी जा रही है.
भीमाकोरेगांव केस में नागपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष शोमा सेन, प्रो. हनी बाबू, प्रो. आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, रोना विल्सन, सुधीर ढ़ावले सहित ढ़ेरों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देशद्रोही जैसे जघन्य धारा लगाकर जेलों में यातनाएं दी जा रही है.
भाकपा (माओवादी) संगठन के केंद्रीय कमेटी व पोलित ब्यूरो सदस्य सह पूर्वी रिजनल ब्यूरो सचिव कामरेड किसन दा उर्फ प्रशांत बोस व केन्द्रीय कमिटी की सदस्या शीला मरांडी की गिरफ्तारी 12 नवम्बर, 2021 को सरायकेला-खरसवां जिला के कोड्रा थाना अंतर्गत गिद्दी बेड़ा टोल प्लाजा के पास हुई थी.
शीला मरांडी व प्रशांत बोस दोनों सहजीवन साथी भी हैं. लंबे समय से दोनों साथी इस व्यवस्था के द्वारा शोषित-पीड़ित आमजन व झारखंड में चल रहे आदिवासी-मूलवासी पर हो रहे जुल्म व अत्याचार के खिलाफ संघर्षरत रहे हैं. दोनों साथी उम्र के तकाजा के कारण कई बीमारियों से ग्रसित भी हैं, का उचित इलाज तक नहीं कराया जा रहा है.
भले ही शासक वर्ग ने तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम पर भाकपा (माओवादी) को प्रतिबंधित कर रखा हो, लेकिन इन संगठनों का कामकाज आज भी उन हिस्सों में है, जहां देश के सबसे बेशकीमती खनिज पदार्थ है. जिस पर सदियों से आदिवासी मूलवासी बसे हुए हैं, जिसे वर्तमान व्यवस्था चाहती है कि आदिवासियों व मूलवासी को बंदूक की नोंक पर से खदेड़ कर तमाम खनिज पदार्थों को देशी व विदेशी पूंजीपतियों को सौंप दें.
आज भी जब आप खासकर उन क्षेत्रों का दौरा करेंगे जहां सदियों से आदिवासी मूलवासी बास कर रहे हैं और जहां-जहां देशी व विदेशी कॉरपोरेट घरानों का कंपनी लगा हुआ है, अगर आप उस चकाचौंध के पीछे के इतिहास को खंगालेंगे तो आपको एक भयावह व डरावनी सच्चाइयों से रू-ब-रू होना होगा कि किस तरह कल तक जो इस जल, जंगल, जमीन का मालिक थे, आज उसे ही गुलाम बना दिया गया है और वे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
एक शब्द में कहें तो ये तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो इस जल, जंगल, जमीन पर सदियों से रहते आये थे, उन्हें आज गुलाम बनाने की साजिश रची जा रही है.
इन दोनों वरिष्ठ साथियों (शीला मरांडी व प्रशांत बोस ) के गिरफ्तारी के बाद पार्टी के बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी के प्रवक्ता ‘आजाद’ ने प्रेसबयान जारी करते हुए सरकार से इन्हें राजनीतिक बंदी का दर्जा और जेल में बेहतर सुविधा देने के साथ-साथ इलाज की पूरी व्यवस्था करने की मांग की है.
उन्होंने कहा है कि शीला मरांडी व प्रशांत बोस कई बीमारियों से ग्रसित हैं, ठीक से चल नहीं पाते हैं और ना ही खाना खा पाते हैं. उन्हें जेल अस्पताल भी व्हीलचेयर पर बिठाकर लाया जाता है, फिर भी उनको हाई सिक्युरिटी सेल में रखा गया है जबकि बीमारी की स्थिति में उन्हें उचित ईलाज की जरूरत है तो उल्टे उन्हें दो-चार दिन में विभिन्न एजेंसियां द्वारा घंटों पूछताछ कर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है.
इन दोनों नेताओं से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पत्रकारों को भी मिलने की अनुमति नहीं दी जा रही है, और न हीं उनका उचित इलाज ही किया जा रहा है. दोनों नेताओं को उचित ईलाज के लिए रिम्स या एम्स में भर्ती कराया जाना चाहिए.
भाकपा माओवादी एक राजनीतिक पार्टी है और उनके कार्यकर्ताओं व नेताओं की गिरफ्तारी के बाद उनके साथ राजनीतिक बंदी का सलूक किया जाना चाहिए लेकिन यह व्यवस्था उन्हें राजनीतिक बंदी का दर्जा देने के बजाय धीमी मौत दे रही है.
एक तरफ सरकार जनता के हितैषी होने का दावा करती हैं तो वहीं दूसरी तरफ जनता के हित के लिए हर वक्त कार्य करनेवाले संगठन के नेताओं को जेल में यातनाएं दी जा रही है.
- अंजनी विशु
माओवादी विद्रोही बेहद उन्नत वियतनामी गुरिल्ला रणनीति से लैस है
आदिवासियों की अर्थव्यवस्था तबाहकर लुटेरों की क्रूर हिंसक सैन्य मॉडल विकास नहीं विनाश है
जेल में बंद अपने नेताओं की रिहाई और ईलाज के लिए सीपीआई माओवादी का प्रतिरोध सप्ताह
किसी भी स्तर की सैन्य कार्रवाई से नहीं खत्म हो सकते माओवादी
भीमा कोरेगांव मामला : कितना भयानक है प्रधानमंत्री के पद पर एक षड्यंत्रकारी अपराधी का बैठा होना
किस किस को कैद करोगे ?’ बढ़ते राजकीय दमन के खिलाफ उठता आवाज
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]