भाकपा (माओवादी) ने अपने पोलित ब्यूरो के सदस्य और वरिष्ठतम नेता कोबाड गांधी को ‘द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद, मार्क्सवाद और वर्ग संघर्ष के सिद्धांतों’ को छोड़ने और ‘रहस्यवाद के माध्यम से खुशी प्राप्त करने का रास्ता चुनने’ का आरोप लगाते हुए निष्कासित कर दिया है.
27 नवंबर, 2021 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता कामरेड अभय ने कहा कि केंद्रीय समिति कोबाड गांधी को उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए भाकपा (माओवादी) से निकाल रही है. मुख्य रूप से ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम-ए प्रिज़न मेमॉयर’ नामक पुस्तक लिखने के लिए, जिसे उन्होंने 2019 में जेल से रिहा होने के बाद 2021 में इसे जारी किया था. भाकपा माओवादी के राष्ट्रीय प्रवक्ता कामरेड अभय ने घोषणा की कि वे जल्द ही कोबाड की ‘फ्रैक्चर्ड फ़्रीडम-ए प्रिज़न मेमॉयर’ का जवाब जारी करेंगे.
कामरेड अभय ने यह भी कहा कि ‘पार्टी समझ गई थी कि कोबाड गांधी मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद (एमएलएम) से पूरी तरह से अलग हो गए थे. उन्होंने (कोबाड) यह भी कहा कि जीवन के इन तीन पहलुओं को परिवर्तन के लिए किसी भी परियोजना में बुना जाना है, जो उनके 40 साल के क्रांतिकारी जीवन में प्रतिबिंबित नहीं होता है, इसलिए दुनिया को बदलने से पहले इसे लक्ष्य पोस्ट के रूप में रखें. वह यह भी कह रहे हैं कि बुर्जुआ नैतिक कहानियों से सार ग्रहण किया जाना चाहिए. इस प्रकार आदर्शवादी मार्ग चुनकर वह बेईमानी से कह रहे हैं कि मार्क्सवादी अभ्यास में सुख और स्वतंत्रता नहीं है, इसलिए मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद अपने लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहा है.
‘कोबाड का रहस्यवाद केवल सामंती और बुर्जुआ विचारधारा से संबंधित है, लेकिन इसका मार्क्सवाद से कोई संबंध नहीं है, जो दार्शनिक पहलू में अधिक वैज्ञानिक है. कोबाड ने 40 से अधिक वर्षों तक नक्सलबाड़ी की राजनीति का अनुसरण किया और सीपीआई (एमएल) पीपुल्स वार (पीडब्ल्यू) के सीसी सदस्य के रूप में अपना सफर जारी रखा, महाराष्ट्र राज्य समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया और बाद में जो सीपीआई (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य के रूप में उनकी गिरफ्तारी तक जारी रहा.
‘2019 में उन्होंने अपनी ईमानदारी खो दी थी और शासक वर्गों को संतुष्ट करने की कोशिश में लग गये. जेल से छूटने के बाद उन्होंने पार्टी से संपर्क नहीं किया. पार्टी पर चर्चा किए बिना और पार्टी के संविधान, लोकतांत्रिक केंद्रीयवाद और वैचारिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए उन्होंने पुस्तक लिखी और जारी की. यह सब कोबाड गांधी में अराजकतावादी प्रवृत्तियों को प्रदर्शित कर रहा है. इस पुस्तक के माध्यम से वह क्रांतिकारी खेमे में निराशावाद और माओवादी पार्टी के खिलाफ झूठे आरोप लगाने की कोशिश कर रहे हैं.’
‘जब फासीवादी मोदी सरकार समाधान-प्रहार के सैन्य अभियान को तेज करके 2022 तक क्रांतिकारी आंदोलन को जड़ से उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रही है, तो कोबाड ने शासक वर्ग की सेवा में अपनी पुस्तक जारी की. उन्होंने पुस्तक में बताया कि उनका आपराधिक दुनिया और जेल अधिकारियों के साथ एक अच्छा रिश्ता था और उन्होंने जेल में एक आरामदायक जीवन व्यतीत किया था. बिना शर्म के उन्होंने खुलेआम आपराधिक गिरोहों और जेल अधिकारियों की प्रशंसा की. उन्होंने झूठा आरोप लगाया कि माओवादियों केा माफिया के साथ घनिष्ठ संबंध थे.
‘क्रांतिकारी राजनीति को नकार कर उन्होंने बुर्जुआ आदर्शवाद की दलदल में कदम रखा है. वह एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वह राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग से पार्टी में आए थे. वह कॉरपोरेट जगत में पले-बढ़े हैं. वह दून के स्कूल में पढ़ते थे. उन्होंने कुछ समय तक लंदन में अध्ययन किया. वे नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित हुए और अंततः क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए.
‘वह महाराष्ट्र आंदोलन के प्रमुख सदस्यों में से एक के रूप में उभरे. उन्होंने लंदन के पुस्तकालय में मार्क्सवाद-लेनिनवाद का अध्ययन किया, जहां कार्ल मार्क्स ने द दून स्कूल में अध्ययन किया था लेकिन वह सिद्धांत को ठोस परिस्थितियों में लागू करने में विफल रहे.’
‘40 वर्षों के बाद, वह (कोबाड) समाज की सड़ी-गली अर्ध-सामंती-अर्ध औपनिवेशिक व्यवस्था में वापस चले गये. वह कह रहे हैं कि यह ‘वापसी’ बहुत बड़ी घटना है. कोबाड बर्नस्टीन और डांगे जैसे उन मार्क्सवादियों के साथ जुड़ गए जो शब्दों में मार्क्सवाद से सहमत थे और कार्यों में मार्क्सवाद के मुख्य सिद्धांतों का विरोध कर रहे थे इसलिए केंद्रीय समिति कोबाड गांधी को पार्टी से निकाल रही है.
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