कोरोना वायरस के नाम पर दुनियाभर में कोहराम मचाने के बाद अब पता चल रहा है कि यह बीमारी ही अन्तर्राष्ट्रीय फर्जीवाड़ा का हिस्सा है. दुनिया के किस हिस्से में कितने लोगों की मौतें हुई है, यह क्रिकेट स्कोर की तरह मीडिया के माध्यम से लोगों को बता-बता कर भयाक्रांत कर दिया गया था.
विदित हो कि केवल भारत में ही कोरोना वायरस के इस फर्जीवाड़े के आड़ में राजनैतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने की कोशिश में लगाये गये लॉकडाऊन से अपुष्ट आंकड़ों के हिसाब से तकरीबन 25 हजार लोगों की मौतें भूख प्यास और पुलिसिया पिटाई से हो चुकी है. करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये और लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. फलत: देश की अर्थव्यवस्था माइनस 24 पर पहुंच कर अधपागल मोदी सरकार का मूंह चिढ़ा रही है.
इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से दी गई एक खबर (अगर खबर सच हैै तो) के अनुसार इटली के डॉक्टरों ने कोविड 19 के नाम से मरे मरीजों के पोस्टमार्टम के बाद पाया कि यह बीमारी ही फर्जीवाड़ा है. मालूूूम हो कि कोविड-19 के नाम से मरने वाले लोगों के शव का पोस्टमार्टम करने यहां तक कि उसके परिजनों को भी शव देखने की इजाजत नहीं दी गई है. इसका परिणाम यह हुआ कि अस्पतालों में कोविड-19 के नाम पर भर्ती मरीजों के शरीर के बेेशकीमती अंंगों (हृदय, किडनी, आंखें, लीवर आदि) की तस्करी की खबरें सामने आने लगी.
अगर इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय के नाम पर जारी की गई इस खबर में थोड़ी भी सच्चाई साबित होती है, तो मानव संसाधन के साथ किया जाने वाला यह घोर अनैतिक साजिश बेहद ही क्रूर मजाक है, उससे भी बेहद क्रूर भारत जैसे देश का अधपागल यह मोदी सरकार है, जिसने करोड़ों की तादाद में देशवासियों को तबाह और बर्बाद करने का घृणित अपराध किया है, जिसके लिए हत्या के इस अपराधी नरेन्द्र मोदी को फांसी की सजा दी जानी चाहिए.
सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित और प्रसारित यह रिपोर्ट इस आशय के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है कि इस जानकारी को अपने सारे परिवार, पड़ोसियों, जानकारों, मित्रों, सहकर्मियों को साझा करें ताकि वो कोविड-19 के खौफ से बाहर निकल सकें. आइयेे, इस रिपोर्ट को यहां देखते हैं –
‘इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसने एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी (पोस्टमार्टम) किया और एक व्यापक जांंच करने के बाद पता लगाया है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है. लोग असल में ‘ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन’ (ज़हर) के कारण मर रहे हैं.
‘इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (पोस्टमार्टम) करने की आज्ञा नहीं देता ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है, जिस की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है.
‘इटली ने इस वायरस को हराया है, और कहा है कि फैलीआ-इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के इलावा और कुछ नहीं है और इस का मुक़ाबला करने का तरीका आर्थात इलाज़ यह बताया है –
ऐंटीबायोटिकस (Antibiotics tablets}
ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) और
ऐंटीकोआगूलैटस ( Aspirin) को लेने से यह ठीक हो जाता है.
‘और यह संकेत करते हुए कि इस बीमारी का इलाज़ सम्भव है, विश्व के लिए यह सनसनीख़ेज़ ख़बर इटालियन डाक्टरों द्वारा कोविड-19 वायरस से मृत लाशों की आटोप्सीज़ (पोस्टमार्टम) कर तैयार की गई है. कुछ और इतालवी वैज्ञानिकों के अनुसार वेन्टीलेटर्स और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी. इसके लिए इटली में अब नए सिरे से प्रोटोकॉल जारी किए गए है.
‘चीन इसके बारे में पहले से ही जानता था, मगर इसकी रिपोर्ट कभी किसी के सामने उसने सार्वजनिक नहीं की.
कृपया इस जानकारी को अपने सारे परिवार, पड़ोसियों, जानकारों, मित्रों, सहकर्मियों को साझा करें ताकि वो कोविड-19 के डर से बाहर निकल सकें और उनकी यह समझ में आये कि यह वायरस बिल्कुल नहीं है बल्कि एक बैक्टीरिया मात्र है, जो 5G रेडियेशन के कारण उन लोगों को नुकसान पहुंंचा रहा है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है.
‘यह रेडियेशन इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है. जो लोग भी इस की जद में आ जायें उन्हें Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस या पैरासिटामोल 650mg लेनी चाहिए. क्यों…??? क्योंकि यह सामने आया है कि कोविड-19 ख़ून को जमा देता है, जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और जिसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है और इस कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिसके कारण से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और सांस ना आने के कारण व्यक्ति की तेज़ी से मौत हो जाती है.
‘इटली के डॉक्टर्स ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और उन लाशों पर आटोप्सीज़ किया जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी. डॉक्टरों ने उन लाशों की भुजाओं, टांगों और शरीर के दूसरे हिस्सों को खोल कर सही से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नस-नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थी, जो ख़ून को आमतौर पर बहने से रोकती है और आक्सीजन के शरीर में प्रवाह को भी कम करती है, जिस कारण रोगी की मौत हो जाती है.
‘इस रिसर्च को जान लेने के बाद इटली के स्वास्थ्य-मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ के प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने पोज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन 100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया, जिससे मरीज़ ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा. इटली स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ही दिन में 14000 से भी ज्यादा मरीज़ों की छुट्टी कर दी और उन्हें अपने अपने घरों को भेज दिया.’
प्रचारित रिपोर्ट यहां समाप्त हो जाता है लेकिन अनेकों सवाल छोड़ जाता है, जो देश के शासकों और डब्ल्यूएचओ के चेहरे पर कालिख पोत जाता है.
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