मैं ढूंढना चाहता था इस पृथ्वी पर
बेशुमार गिरे हुए बेहिस बेहया लोगों के बीच
अपने लिए भी गिरने की थोड़ी जगह
जहां भी देखा
जिंदा लोगों के बीच हर जगह
गिरने की होड़ मची थी
कि कौन किससे ज्यादा गिर सकता है
भर गई थीं पृथ्वी की सारी खाली-भरी जगहें
यहां तक कि नदियां पहाड़ जंगल और घाटियां
मंदिरों मस्जिदों गिरीजाघरों स्कूलों मदरसों न्यायालयों
संसद सभाओं को जाती सड़कें पगडंडियां
और मैं लड़खड़ाता मुंह बाए खड़ा रह गया था
गिरे हुए लोगों के बीच मुंतजिर उन पंक्तियों में
जिनका गिरना अभी बाकी था
आसमान तक उठती उन सीढ़ियों की तलाश में
वो गिरे थे आत्महीन
अपनी ही बेइंतहा महत्वाकांक्षाओं के बोझ से
आजू-बाजू गिरे अपने ही पड़ोसियों परिजनों के प्रति
हिकारत, घृणा और जुगुप्सा से शरसार
वो गिरे थे दलदल में फंसी ऊंचाइयों की तलाश में
नई सभ्यता की पतनशील खेप के लिए
बजबजाते कीचड़ में लिथड़ कर
जीवन संवारने का जादुई कोई वैश्विक मंत्र उच्चारते
फिर भी दुखांत किसी ग्रीक नाटक का
दृश्य नहीं था यह
नहीं था यह स्वर्ग से आदम और ईव का
पृथ्वी पर गिर चुकी कौमों के बीच
आलिंगन-बद्ध गिरना
नहीं था यह आदमी और आदमी के बीच
जमी बर्फ का पिघल कर गिरना
न ही दो मुल्कों के बीच दिन-ब-दिन
ऊंची होती दीवार का अचानक टूट कर गिरना
और न ही नाज़ी गैस चेंबर में
गैस प्रक्षेपण के बाद का
भयावह कोई दृश्य था यह
जहां आत्मीयता और उम्मीद की कुछ बारीक चिंदियां
तमाम बर्बरताओं-क्रूरताओं के बावजूद
अंधेरे में जुगनुओं की तरह शेष थीं
ठसाठस भरे गैस चेंबरों में
जगह नहीं छोड़ी थी नाजियों ने
उन्हें गिरने की
लोग मर कर भी खड़े थे
एक-दूसरे का हाथ थामे
गले में बांह डाले
जैसे जीवन में वैसे ही मर कर
एक-दूसरे का संबल बन
आने वाले समय को ज़रूरी
उम्मीद और भरोसे का गोपन
कोई सुराग सौंपते
जिंदा कौमें जहां-जहां गिरी थीं
बंजर पड़ गई थी धरती
सूख गई थीं नदियां जल गए थे जंगल
पहाड़ों से लौट गई थीं सारी ऋतुएं
घाटियों ने ओढ़ ली थीं चुप्पियां
अब नहीं गूंजती थीं वहां
संकट में पुकारे गए शब्दों की प्रतिध्वनियां
ऐसे ही माकूल बंजरों ने जगह दी होगी
दुनियाभर के तानाशाहों को
बेरोकटोक फैलने-पसरने की
लेकिन
मर कर भी जो खड़े रहे
एक-दूसरे का हाथ थामे
चूमते हुए एक-दूसरे की लाशें
उनके पक्ष में अचानक खिल उठे थे
मुरझा रहे दुनिया के फूल सारे
चमत्कार की तरह उगे इन फूलों ने ही
प्रेत की तरह पीछा किया होगा तानाशाहों का
और गहन अवसाद में
हिटलरों ने की होंगी आत्महत्याएं
- योगेन्द्र कृष्ण
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