Home कविताएं बेशुमार गिरे हुए बेहिस बेहया लोग

बेशुमार गिरे हुए बेहिस बेहया लोग

8 second read
0
0
211

मैं ढूंढना चाहता था इस पृथ्वी पर
बेशुमार गिरे हुए बेहिस बेहया लोगों के बीच
अपने लिए भी गिरने की थोड़ी जगह

जहां भी देखा
जिंदा लोगों के बीच हर जगह
गिरने की होड़ मची थी
कि कौन किससे ज्यादा गिर सकता है

भर गई थीं पृथ्वी की सारी खाली-भरी जगहें
यहां तक कि नदियां पहाड़ जंगल और घाटियां
मंदिरों मस्जिदों गिरीजाघरों स्कूलों मदरसों न्यायालयों
संसद सभाओं को जाती सड़कें पगडंडियां

और मैं लड़खड़ाता मुंह बाए खड़ा रह गया था
गिरे हुए लोगों के बीच मुंतजिर उन पंक्तियों में
जिनका गिरना अभी बाकी था

आसमान तक उठती उन सीढ़ियों की तलाश में
वो गिरे थे आत्महीन
अपनी ही बेइंतहा महत्वाकांक्षाओं के बोझ से
आजू-बाजू गिरे अपने ही पड़ोसियों परिजनों के प्रति
हिकारत, घृणा और जुगुप्सा से शरसार

वो गिरे थे दलदल में फंसी ऊंचाइयों की तलाश में
नई सभ्यता की पतनशील खेप के लिए
बजबजाते कीचड़ में लिथड़ कर
जीवन संवारने का जादुई कोई वैश्विक मंत्र उच्चारते

फिर भी दुखांत किसी ग्रीक नाटक का
दृश्य नहीं था यह
नहीं था यह स्वर्ग से आदम और ईव का
पृथ्वी पर गिर चुकी कौमों के बीच
आलिंगन-बद्ध गिरना
नहीं था यह आदमी और आदमी के बीच
जमी बर्फ का पिघल कर गिरना
न ही दो मुल्कों के बीच दिन-ब-दिन
ऊंची होती दीवार का अचानक टूट कर गिरना

और न ही नाज़ी गैस चेंबर में
गैस प्रक्षेपण के बाद का
भयावह कोई दृश्य था यह
जहां आत्मीयता और उम्मीद की कुछ बारीक चिंदियां
तमाम बर्बरताओं-क्रूरताओं के बावजूद
अंधेरे में जुगनुओं की तरह शेष थीं

ठसाठस भरे गैस चेंबरों में
जगह नहीं छोड़ी थी नाजियों ने
उन्हें गिरने की
लोग मर कर भी खड़े थे
एक-दूसरे का हाथ थामे
गले में बांह डाले
जैसे जीवन में वैसे ही मर कर
एक-दूसरे का संबल बन
आने वाले समय को ज़रूरी
उम्मीद और भरोसे का गोपन
कोई सुराग सौंपते

जिंदा कौमें जहां-जहां गिरी थीं
बंजर पड़ गई थी धरती
सूख गई थीं नदियां जल गए थे जंगल
पहाड़ों से लौट गई थीं सारी ऋतुएं
घाटियों ने ओढ़ ली थीं चुप्पियां
अब नहीं गूंजती थीं वहां
संकट में पुकारे गए शब्दों की प्रतिध्वनियां

ऐसे ही माकूल बंजरों ने जगह दी होगी
दुनियाभर के तानाशाहों को
बेरोकटोक फैलने-पसरने की

लेकिन
मर कर भी जो खड़े रहे
एक-दूसरे का हाथ थामे
चूमते हुए एक-दूसरे की लाशें
उनके पक्ष में अचानक खिल उठे थे
मुरझा रहे दुनिया के फूल सारे

चमत्कार की तरह उगे इन फूलों ने ही
प्रेत की तरह पीछा किया होगा तानाशाहों का
और गहन अवसाद में
हिटलरों ने की होंगी आत्महत्याएं

  • योगेन्द्र कृष्ण

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…