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कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही दहशत

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कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही दहशत

Ram Chandra Shuklaराम चन्द्र शुक्ल

कोरोना भी वायरस जनित एक प्रकार का फ्लू है तथा इसके 1000 में से मात्र एक मरीज के मरने का चांस होता है. इसकी दहशत के पीछे दुनिया के दक्षिणपंथी शासक, दुनिया भर में युद्ध सहित सभी तरह की महामारियों को मुनाफे का माध्यम बना लेने वाला पूंजीपति वर्ग व बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां हैं. चीन, जापान व कोरिया सहित दुनिया के कई देशों ने इसके विस्तार पर नियंत्रण कर लिया है.

लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय तथा पीजीआई में भरती किए गये कई सारे कोरोना पॉजिटिव मरीज ठीक होकर घर जा चुके हैं, जिनमें से एक चर्चित कनिका कपूर भी हैं. इस फ्लू में मलेरिया में दी जाने वाली दवा क्लोरोक्विन तथा गले व छाती के संक्रमण में दी जाने वाली दवा एजिथ्रोमाइसिन प्रभावी है. यही दवा कोरोना पॉजिटिव मरीजों को भी दी जा रही है और वे ठीक भी हो रहे हैं. पिछले दिनों मलेरियारोधी दवा की आपूर्ति अमेरिका को फिर से शुरू करने का अनुरोध अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत से किया गया है.

कोरोना के नाम पर फैलाई जा रही दहशत व षड्यंत्र के संबंध में डाॅ. विश्वरूप राय चौधरी का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने बताया है कि लोग कोरोना से कम, उसके नाम पर फैलाई जा रही दहशत तथा कमजोर इम्यूनिटी के कारण अधिक मर रहे हैं. दहशत व तनाव का शरीर पर विपरीत असर पड़ता है तथा इसके कारण डायबीटीज के मरीजों का शुगर लेविल तथा हार्ट पेशेंट का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. अगर किसी को खांसी आ रही है तो वह भी बढ़ जाती है. अधिक डर व दहशत से दिमाग की नसें फट जाती हैं और आदमी को ब्रेन हेमरेज हो जाता है.

पिछले कुछ दिनों से घरों में कैद हो जाने तथा अकेलेपन का शिकार बन जाने के कारण मनोरोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. लॉकडाउन के कारण ऐसे मरीजों का इलाज संभव नही हो पा रहा है, क्योंकि सभी निजी मनोचिकित्सकों के क्लीनिक व निजी अस्पताल बंद हैं.

लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की स्थिति में जो मेहनतकश वर्ग रोज कमा कर अपना व अपने परिवार के सदस्यों का भरण पोषण करता है, उसके सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो सकती है. गांवों में इस अप्रैल महीने में रबी की फसलों-गेहूं, जौ व सरसों कटाई का काम है इसलिए वहां भुखमरी की स्थिति पैदा होने की संभावना कम है, पर शहरी मजदूर वर्ग के लिए विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गयी है.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) का अध्ययन बताता है कि बड़े शहरों में कमाने-खाने वाली आबादी में से 29 फीसदी लोग दिहाड़ी मजदूर होते हैं. वहीं, उपनगरीय इलाक़ों की खाने-कमाने वाली आबादी में दिहाड़ी मजदूर 36 फीसदी हैं. गांंवों में ये आंंकड़ा 47 फ़ीसदी है जिनमें से ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर हैं. CII ने अपने सर्वे में माना है कि तकरीबन 80 फ़ीसदी उद्योग में लॉकडाउन की वजह से काम बंद हैं जिसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ने वाला है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने भी चेतावनी दी है कि लॉकडाउन से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था 1930 के दशक के ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ (महामंदी) के बाद का सबसे बदतर दौर देखने वाली है.

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