पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
कोरोना वायरस को लेकर सोशल मीडिया पर लोग उल्टा-सीधा, सही-गलत सब कुछ लिख रहे हंै और बिना जानकारी वाले लोग शेयर भी कर रहे हैं, अतः सोचा आज कोरोना वायरस पर लिखा जाये. हालांकि कोरोना वायरस पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है परन्तु मैं जो लिख रहा हूं वो शायद ही किसी ने लिखा हो. अतः ध्यानपूर्वक पढ़ियेगा.
सबसे पहले तो जीवाणु (बैक्टीरिया) और विषाणु (वायरस) के अंतर को अच्छे से पहचान लीजिये – जीवाणु इस सृष्टि में हर जगह पनपते हैं और वे ज्यादातर मामलो में घातक नहीं होते बल्कि जीवन वृद्धि में सहायक होते हंै (उदाहरण के लिये खेती की जमीन में पनपने वाले जीवाणु – जो फसलों की वृद्धि में सहायक होते हैं अथवा एंटीबायोटिक दवायें जो रोगांे के विषाणुओं से लड़ने और स्वास्थ्य बनाये रखने में मदद करती है), लेकिन विषाणु ज्यादातर मामलों में मानव द्वारा तैयार किये जाते हैं अथवा प्रकृति के अतिक्रमण में मानविक क्रियाओं का संक्रमण होते है. विषाणु हमेशा घातक और जानलेवा ही होते हंै और वे जीवाणुओं का भक्षण कर हमारे शरीर के इम्युनिटी सिस्टम को नष्ट कर देते हंै, जिससे हम संबंधित रोग से ग्रसित हो जाते हैं.
कोरोना वायरस असल में कोई अकेला वायरस नहीं बल्कि कई विषाणुओं का समूह है, जो पशुजन्य होता है अर्थात जो लोग मांसाहार करते हैं उन्हें ये अपनी चपेट में ले सकता है. शाकाहारियों को सीधा चपेट में नहीं ले सकता लेकिन संक्रमित मानव-पशु-पक्षियों के द्वारा अधखाये फलों-सब्जियों इत्यादि खाद्य पदार्थों के प्रयोग से शाकाहारियों को भी पकड़ में ले सकता है, अतः ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन न करे.
इसकी पहचान सर्वप्रथम चीन के वुहान प्रान्त के एक ऐसे बाजार में हुई जिसमें तरह-तरह के मांस को बेचा जाता है और संभवतः ये वायरस (इबोला वायरस की तरह ही) सर्प्रथम चमगादड़ से उत्पन्न हुआ माना जाता है लेकिन बाद में संक्रमित होकर बीफ, पोर्क और चिकन और अन्य दूसरे प्रकार के मांसाहार (सी-फूड इत्यादि) खाने वाले लोगों में भी पहचाना गया. चीन के भोजन में 100 प्रतिशत मांसाहार शामिल है और उसमे भी sea-food ज्यादा है. असल में चीन में समुद्री जीवों की खेती की जाती है. इतनी बड़ी आबादी को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने हेतु समुद्री जीवों की (दूसरे पशु-पक्षियों की भी) प्रजनन प्रक्रिया को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है और ऐसा सिर्फ चीन में हीं नहीं कई देशों में हो रहा है. भारत में भी हो रहा है (हरियाणा में शीप की खेती बहुतायत में की जाती है).
ज्ञात रहे ये कोई नया विषाणु नहीं है बल्कि इसका परीक्षण 30 साल पहले हो चूका है, जब इसकी प्रथम स्टेज टेस्ट की गयी थी जो ज्यादा घातक नहीं थी लेकिन अब ये आरएनए वायरस छूत की बीमारी की तरह हो गया है क्योंकि अब इसकी ट्रांसमिशन क्षमता इतनी ज्यादा हो चुकी है कि ये 2 मीटर की दूरी से भी हस्तांतरित हो सकता है (ये इसकी अभी दूसरी स्टेज का टेस्ट है). ध्यान रहे अब तक इसकी कोई भी वेक्सीन या दवा अभी बनी नहीं है. अतः नीम-हकीमों और झोला-वैद्यों के बहकावे में न आये क्योंकि इस वायरस के प्रति जागरूकता और इससे बचाव ही अभी इसका सबसे बड़ा उपचार है.
अभी तक ये पूरी तरह से पता नहीं चल सका है कि कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कैसे ट्रांसफर हो रहा है हालांकि इससे मिलते-जुलते वायरस खांसी और छींक से गिरने वाली बूंदों के जरिये फैलते हैं, अतः इसी कारण इसकी सावधानी के लिये जारी की गयी एडवाइजरी में सर्दी-जुकाम-खांसी इत्यादि से संक्रमित व्यक्ति से सावधानी बरतने को कहा गया है क्योंकि सर्दी-खांसी के विषाणु 2 मीटर की दूरी तक से भी सामने वाले के शरीर में प्रवेश कर सकते है. भारत में अभी तक इसके जो भी प्रमाणित मामले सामने आये हैं, वे सभी विदेश से भारत आये थे. कुछ संदेहास्पद विदेश यात्रा से लौटे लोगो को जांच के लिये एकांत स्थान में रखा गया है ताकि दूसरे लोगों में ये वायरस न फैले.
ऐसा नहीं है कि दवा के अभाव में इसका इलाज संभव नहीं. 650 के लगभग भारतीय नागरिकों को भारत सरकार ने वुहान प्रान्त से वापस भारत बुलाया है और 150 से ज्यादा भारतीय नागरिक जापान से भी लौटे हैं. ऐसे ही अन्य भारतीय नागरिक और भी दूसरे देशों से भी आये हैं. उन सबको आइसोलेशन सेंटर में रखा गया है.
सरकार ने सुरक्षा के लिये कई कदम उठाये है जिसमे विदेशों से आने वाले सभी यात्रियों की 21 हवाई अड्डों, 12 प्रमुख बंदरगाहों और 65 छोटे बंदरगाहों पर जांच की जा रही है और चीन समेत सभी संक्रमित देशों के पूर्व में जारी वीजा को अस्थायी रूप से अमान्य कर दिया गया है. भारतीय नागरिकों को चाइना की यात्रा न करने की सलाह दी गयी है और चीन से लौटने वाले सभी यात्रियों को उनके परिवार से नहीं मिलने दिया जायेगा और सरकार उन्हें जांच होने तक एकांत स्थान पर नजरबन्द रखेगी. स्थल मार्गों में विशेष रूप से नेपाल की सीमा से आने वाले लोगो की जांच की जा रही है ताकि कोई नेपाल की तरफ से संक्रमित व्यक्ति भारत में न घुस सके. अतः अफवाहों पर ज्यादा ध्यान न दे और साथ ही स्वयं भी अफवाहों को न फैलाये.
कोरोना वायरस जमीन पर गिरने और प्लास्टिक की थैली में बंद करने के बाद भी नौ दिन तक जिन्दा रह सकता है. अतः प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करे और घर-दुकान इत्यादि का फर्श भी डिटॉल डालकर साफ करे (मोबाइल पर भी ये वायरस 48 घंटे तक जीवित रह सकता है. अतः अपने मोबाइल को या तो स्वयं ही प्रयोग करें अथवा दूसरों के प्रयोग के बाद इसे सैनिटाइजर से भींगे कपडे से पोंछकर ही प्रयोग में लेवे).
कोरोना वायरस असल में सबसे पहले श्वास को बाधित करता है, अतः शरीर में डीहाइड्रेशन न होने दे क्योंकि शरीर में पानी की कमी होने से शरीर को स्वस्थ रखने वाले जीवाणु मरने लगते हैं, जिससे शरीर का इम्युनिटी सिस्टम डेमेज होने लगता है और सबसे पहले श्वांस लेने में ही प्रॉब्लम होती है. कोरोना वायरस 35 डिग्री से ज्यादा तापमान पर निष्क्रिय हो जाता है, अतः तेज गर्मी होने तक सावधानी रखे क्योंकि भारत में जेठ की 50-52 डिग्री की तेज गर्मी में ये विषाणु स्वतः ही नष्ट हो जायेगा लेकिन तब तक सावधानी रखे.
मांसाहार करने वाले मांसाहार से दूर रहे. मांस (अंडे या सी-फूड भी) चाहे कच्चा हो या पका हुआ दूर ही रहे. पक्षी-पक्षियों द्वारा अधखाये या काटे (चोंच मारे हुए) अथवा गले-सड़े फल सब्जिया प्रयोग न करे तथा किसी भी तरह से मांसाहार खाने-बेचने-खरीदने से जुड़े व्यक्ति से हाथ न मिलाये.
मास्क से लेकर ग्लब्ज तक और सेनिटाइजर से लेकर शराब तक सबका प्रचार जोरो-शोरों से हो रहा है और लोग मूर्खता की हद तक इसका प्रयोग कर रहे हंै जबकि ऐसी महामारियों में डरने के बजाय जागरूकता जरूरी होती है (ये सिर्फ बाजारवाद है, जो माल बेचने के लिये प्रचारित करवाया जा रहा है) जबकि कोरोना एक आरएनए वायरस है.
आरएनए वायरस तरंगों से ट्रांसफर होता है और शरीर के डीएनए में मौजूद जींस के साथ संक्रमण करके वायरस के रूप में परिवर्तित होता है. इसे ग्लब्ज या अन्य कोई भी आवरण रोक नहीं सकता. अतः संक्रमित व्यक्ति से 2 मीटर की दूरी और इसके प्रति जागरूकता ही इसका बचाव है अर्थात ग्लब्ज इसकी सेफ्टी नहीं है और मास्क तो कत्तई नहीं है क्योंकि बढ़िया से से बढ़िया मास्क (एन-95 मास्क जो मोदीजी पहनते हैं) में भी 150 माइक्रोन का गेप होता है, जबकि इस वायरस का साइज 60 से 80 माइक्रोन का है अर्थात दो वायरस एक साथ मास्क से निकल सकते हैं (नाक के अंदर प्राकृतिक फिल्टर लगा है, जिसमें सिर्फ 6 माइक्रोन का गेप होता है और अगर कोरोना वायरस नाक के प्राकृतिक फिल्टर से निकल सकता है तो मास्क से उसका बचाव कैसे होगा ?
आरएनए अणुओं के दो प्रकार mi(माइक्रो)RNA और si(स्माल)RNA) होते है और कोरोना वायरस si-RNA है. मुख्य तौर पर इनका काम अन्य जीनों के साथ मिलकर उनकी गतिविधियों को घटाना या बढ़ाना होता है अर्थात वो एक मेसेंजर की तरह कार्य करता है और हमारे शरीर में मौजूद RNA में मौजूद प्रोटीन के उत्पादन को रोक देता है, जिससे कोशिकाओं का क्षरण शुरू हो सकता है और हमारा शरीर इस परजीवी (वायरस) के ट्रांसपोषण को रोकने में अक्षम होता जाता है, जिससे ये हमारे डीएनए पर अधिकार कर उसका इतिहास बदलने की प्रक्रिया शुरू कर देता है, जिससे इस वायरस के जीन तेजी से विकसित होने लगते हैं. परन्तु फिर भी हमारा आंतरिक शारीरिक सिस्टम इस RNA का अभ्यस्त नहीं होने के कारण इसके साथ संघर्ष करता है, जिससे हमारा इम्युनिटी सिस्टम कमजोर पड़ता जाता है और प्रोटीन की कमी होने लगती है और हमें सर्दी, खांसी, बुखार जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं (क्योंकि इस संघर्ष से उत्पन्न तापमान को कम करने के लिये ये वायरस अपने बचाव के लिये शरीर में ठण्डक बढ़ाने वाले प्रोटीन को विकसित करता है, जिससे हमें सर्दी-जुकाम होता है).
लगातार संघर्ष से जब शरीर में दो प्रवृतियां एक साथ चलती है और जब गाइड स्ट्रैंड बेस मैसेंजर आरएनए अणु के संपूरक क्रम के साथ जुड़ता है और दरार को आर्गोनॉट (आरआइएससी कॉम्प्लेक्स का एक कैटालिटिक घटक) के द्वारा प्रेरित करता है तो सीमित दाढ़ सांद्रता को छोड़कर दैहिक रूप से सभी जीवधारियों में फैल जाने वाली प्रक्रिया को अपना लेता है और इस ट्रांसमिशन की प्रक्रिया में जो एनर्जी लगती है, उससे हमारा शरीर अत्यधिक तापमान पर आ जाता है, जिसे बुखार कह दिया जाता है.
तो ये था कोरोना का हौआ. मैंने भाषा जटिलता को छोड़कर सरल शब्दों में आपको समझाने की कोशिश की है कि इससे डरने की जरूरत नहीं बल्कि इसके प्रति जागरूकता रखने की जरूरत है. अतः आप फालतू अफवाहों और मिस अंडरस्टेंड करने वाली लेखों को छोड़कर जागरूकता फैलाये.
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