पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
हिन्दू पुराणों में एक दृष्टांत आता है कि जब शिव ने भस्मासुर को वरदान दिया कि जिसके सर पर हाथ घुमायेगा, वो भस्म हो जायेगा, तो भस्मासुर ने सबसे पहले शिव को ही ख़त्म करने की कोशिश की और शिव को भागना पड़ा. बाद में विष्णु ने मोहिनी रूप धरकर नृत्य किया और मायाजाल से उसका हाथ उसी के सिर पर फिरवा दिया, जिससे उसकी मृत्यु हुई.
कांग्रेस ने भी वही (शिव वाली) गलती की और नेहरू ने बिना सोचे समझे आरएसएस के अनुनय-विनय के नाटक से उस पर लगा प्रतिबंध हटा दिया, लेकिन आरएसएस ने भस्मासुर वाली गलती नहीं की अर्थात तुरंत कांग्रेस के सिर पर हाथ घुमाने की कोशिश नहीं की बल्कि प्रतिबंध हटने के बाद आरएसएस ने अपनी कार्यशैली का तरीका बदल लिया.
जो आरएसएस आक्रामक होती थी वह अब सौम्य होने का दिखावा करने लगी और अपनी आक्रमकता, क्रूरता और दुष्टता को सहायक संस्थाओं के मुखोटों के रूप में प्रदर्शित करने लगी ताकि फिर से कोई सीधा बखेड़ा उसके गिरेबां तक न पहुंचे !
कई बार के प्रयास और असफलताओ से चालबाज़ आरएसएस ने बहुत कुछ सीखा और अपने तौर-तरीकों में भी बार-बार बदलाव किया और आखिरकार दीर्धावधि के बाद मोदी ब्रांडनेम वाला वरदान आरएसएस को मिला और उसके बाद आरएसएस रुपी भस्मासुर ने कांग्रेस के सिर पर हाथ फिराकर उसे भस्म करने की कोशिश की.
और चूंंकि कांग्रेस की ‘मोहिनी’ अब बूढी हो चुकी है इसीलिये बेचारी कांग्रेस खुद को बचाने इधर-उधर (कभी राहुल तो कभी प्रियंका, कभी मनमोहन तो कभी सोनिया के पास) भागी-भागी फिर रही है. मगर जिसे युवा ‘मोहिनी’ की तरह कांग्रेस आगे कर रही है, असल में उसे तो नृत्य करना ही नहीं आता इसीलिये न तो भस्मासुर उसके सम्मोहन में आ रहा है और न ही उसके मायाजाल में फंस रहा है. हालांंकि बूढी मोहिनी का सम्मोहन अब भी बरक़रार है मगर बूढी होने के कारण वो मोहक नहीं दीखती है. अतः उस पर अब कोई और भी मोहित नहीं होता तो भष्मासुर क्या मोहित होगा ?
अतः मैं सोचता हूंं कि आरएसएस रुपी भस्मासुर के नैतिक वध के लिये कांग्रेस को नई ‘मोहिनी’ की तलाश करनी चाहिये जो न सिर्फ भस्मासुर का नैतिक वध करने में सक्षम हो बल्कि इतनी मोहक भी हो कि उसकी अदाओं के सम्मोहन में हर कोई वशीकृत-सा रहे ताकि बूढी ‘मोहिनी’ की सांसें टूटने से पहले ही नई ‘मोहिनी’ को उससे रिप्लेस किया जा सके.
इतना पढ़कर आप ये जरूर सोच रहे होंगे कि कांग्रेस में आखिर ये नई मोहिनी आयेंगी कहांं से ! क्योंकि जब तक गांंधी परिवार अपना वर्चस्व स्वेच्छा से नहीं छोड़ेगा, तब तक कांग्रेस में किसी बाहरी नयी ‘मोहिनी’ का आना कैसे संभव है ?
आपका सोचना वाजिब है.. और इसका प्रत्युत्तर ये है कि राख-राख हो रही कांग्रेस के महादेव (राहुल) को ही उस नयी ‘मोहिनी’ का आह्वान करना होगा (जी हांं, मैं राहुल के विवाह की बात कर रहा हूंं). मेरे तथ्य को परखकर देख लीजिये कि जो ‘मोहिनी’ अपने चिरकुंवारे राहुल को मोहित कर सकती है, उसके सामने ये भस्मासुर क्या चीज़ है !
कांग्रेस के चमचों (समर्थकों और कार्यकर्ताओं) को भी अब इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिये कि कांग्रेस को बूढ़े हो चुके मनमोहन से भी ज्यादा जरूरत नई ‘मोहिनी’ की है. आखिर कब तक बेचारी बूढी ‘मोहिनी’ से जबरन जादू करवाते रहोगे ? और फिर बूढी ‘मोहिनी’ का जादू भी आखिर कब तक चल पायेगा ? इसलिये बूढी ‘मोहिनी’ की सांसों की रफ्तार थमने से पहले नई ‘मोहिनी’ को ले आओ वर्ना ये आरएसएस रुपी भष्मासुर जल्द ही कांग्रेस को भष्म कर देगा.
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