हसदेव अरण्य जंगल छत्तीसगढ़ के कोरबा और सरगुजा जि़लों में फैला हुआ है. यह जंगल जैविक विविधता के नज़रिए से भारत के सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है. यह जंगल भारत में अलोप होने का सामना कर रही जानवरों की प्रजातियों के अलावा, दुर्लभ वनस्पति के लिए भी जाना जाता है. इस इलाक़े में गोंड, ओरान के साथ कुछ और आदिवासी क़बीले के लोग भी रहते हैं पर पिछले कुछ समय से भारत का सबसे बड़ा पूंजीपति गौतम अदाणी इन जंगलों को अपने क़ब्ज़े में करने के लिए हर तरीक़ा अपना रहा है.
इस काम में भारत के एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की दोनों मनपसंद पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस अलग-अलग समय पर अलग-अलग तरह से उसकी कठपुतली बनी हुई हैं. दरअसल इस जंगल में बड़ी मात्रा में कोयले के भंडार पाए जाते हैं. यह कोयला ज़मीनी सतह के काफ़ी नज़दीक ही मौजूद है, जिसके कारण इसे निकालने का ख़र्च काफ़ी कम है. इस वजह से इन कोयला खदानों से बड़े मुनाफ़े हासिल किए जा सकते हैं. पर इस कोयले को निकालने के लिए इस क्षेत्र का 1500 वर्ग किलोमीटर में फैला जंगल काटना पड़ेगा, जिससे यह इलाक़ा बिल्कुल तबाह हो जाएगा. इस काम की शुरुआत भी हो चुकी है.
साल 2022 की शुरुआत में जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी, तब ही तकरीबन 100 एकड़ से अधिक इलाक़े में वृक्षों की कटाई शुरू हो चुकी थी. कांग्रेस के उस समय के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे ‘राष्ट्र-हित’ कहकर जायज़ ठहराया था. अब नवंबर में हुए चुनाव में राज्य में भाजपा की सरकार बन चुकी है.
छत्तीसगढ़ में ही हुई एक रैली में मोदी ने यह ऐलान किया था कि आदिवासियों के ‘जल, जंगल और ज़मीन’ को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया जाएगा, पर सरकार बनने के कुछ दिनों बाद ही हसदेव जंगल में अदाणी को कोयला खदान खोदने के लिए हरी झंडी मिल चुकी है. ख़ुद से हुए इस धोखे के ख़िलाफ़ आदिवासी काफ़ी समय से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन इंसाफ़ के नाम पर उन्हें झूठे दिलासे दिए जा रहे हैं.
हसदेव में कोयला खुदाई का इतिहास
हसदेव अरंड का जंगल छत्तीसगढ़ के कोयला समृद्ध क्षेत्रों में से एक है. एक अंदाज़े के मुताबिक़ यहां करीब 1800 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कोयले के भंडार पाए जाते हैं. साल 2010 में इन जंगलों में कोयले की खुदाई करने की मंजूरी मिलने के बाद यह खदान राजस्थान की सरकारी बिजली कंपनी को दी गई थी. बाद में राजस्थान सरकार ने अदाणी से समझौता करके खदान में से कोयला निकालने का ठेका अदाणी की कोयला कंपनी को दे दिया.
साल 2011 में कांग्रेस की यूनियन सरकार के संरक्षण में पर्यावरण मंत्रालय की एक कमेटी ने इस जंगल की खुदाई के कारण पर्यावरण और स्थानीय आबादी पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को ध्यान में रखते हुए यहां कोयले की खुदाई के विरुद्ध सिफ़ारिश की थी, पर सब नियम-क़ानून तोड़कर तब के पर्यावरण मंत्री जैराम रमेश ने अदाणी को यहां कोयला खुदाई की इजाज़त दे दी. चाहे अभी भी खुदाई जंगल के बाहर वाले हिस्से में हो रही थी, तब भी इसके कारण स्थानीय लोगों को काफ़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा था.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सरकार के दौरान हुए कोयला घोटाले के कारण कोयले की खुदाई के सारे समझौते रद्द कर दिए, लेकिन मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने अदाणी के साथ हुए हसदेव समझौते को वैसे का वैसे ही बना रहने दिया और अदाणी बिना किसी रोक-टोक के यहां पर्यावरण को उजाड़ रहा है. इस समय के दौरान कांग्रेस और भाजपा आदिवासियों के वोट पाने के लिए एक-दूसरे को बदनाम करती रही हैं, लेकिन किसी ने भी इस समझौते को रद्द नहीं किया.
यहां तक कि साल 2020 में भाजपा सरकार ने कोयला नियमों में संशोधन करके इस खदान में से दोयम दर्जे का कोयला निकालने और सरकारी कंपनियों को बेचने की भी छूट दे दी, जबकि पुराने नियमों के मुताबिक़ इस कोयले पर राजस्थान की सरकारी बिजली कंपनी का हक़ बनता था. यह कोयला अदाणी की मालिकी वाले तीन थर्मल प्लांटों को बाज़ार की क़ीमत से काफ़ी कम क़ीमत में बेचा गया.
इस कोयले को इस्तेमाल करने से पहले एक ख़ास प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है, जिसे ‘धोना’ कहा जाता है. इस प्रक्रिया में कोयले से राख को अलग किया जाता है. नियमों के मुताबिक़ उस दूसरे दर्जे के कोयले पर भी राजस्थान सरकार की मालिकी है, क्योंकि अदाणी को समझौते के मुताबिक़ ‘धोने’ की प्रक्रिया के भी पैसे दिए जा रहे हैं, लेकिन अदाणी सरेआम इसे अपने प्लांट में इस्तेमाल करता है.
साल 2020 में हसदेव खदान में कोयले की खुदाई का पहला हिस्सा पूरा होने के बाद, इसके दूसरे हिस्से की शुरुआत से पहले भी स्थानीय लोगों के साथ बड़ा धोखा किया गया. भारतीय संविधान के नियमों के मुताबिक़ आदिवासी इलाक़ों में ज़मीन पर किसी कि़स्म की औद्योगिक गतिविधि करने से पहले आदिवासी ग्राम सभा की मंजूरी लेना लाज़िमी है. हसदेव के आदिवासी शुरू से ही इस प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ थे, इसके कारण उन्हें इस दूसरे हिस्से को मंजूरी देने से इनकार कर दिया.
इसके बाद स्थानीय अधिकारियों ने एक नक़ली ग्राम सभा का आयोजन करके, गांववासियों की मर्जी के बिना ही अदाणी को इस क्षेत्र की खुदाई करने की आज्ञा दे दी. इसके बाद लोगों ने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए और 300 किलोमीटर चलकर ख़ुद छत्तीसगढ़ के कांग्रेस के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को एक पत्र भी दिया. नक़ली दिलासे के अलावा सरकार ने लोगों के साथ किए वायदे को वफ़ा नहीं किया.
फ़रवरी 2022 में ही अदाणी ने हसदेव इलाक़े के जंगल काटने की कार्यवाई शुरू कर दी. इस कार्यवाई के दौरान बड़ी संख्या में पुलिस कर्मचारियों को गांववासियों के घरों के बाहर तैनात करके और गांव के सरपंच, हसदेव के जंगल को बचाने के लिए लड़ रहे अन्य कार्यकर्ताओं को नज़रबंद करके इन जंगलों को काटा गया.
इससे यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि कैसे राज्यसत्ता अदाणी के पक्ष में खड़ी है. चाहे चुनाव के दौरान मोदी और राहुल गांधी दोनों यह जंगल बचाने और आदिवासियों के पक्ष में होने के झूठे जुमले छोड़ते हैं, पर दोनों ने अलग-अलग समय और ढंगों से अदाणी की ही सेवा की है. 2023 का चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने छत्तीसगढ़ सरकार बनाते ही सबसे पहले अदाणी को इस क्षेत्र में कोयले की खुदाई का लाइसेंस दे दिया.
इस समूचे मामले से यह बिल्कुल दिन की तरह साफ़ हो जाता है कि कांग्रेस हो या भाजपा या कोई अन्य पूंजीवादी पार्टी, यह सब अपने असली मालिकों, अदाणी जैसे पूंजीपतियों की ही सेवा का काम करती हैं. अपनी ज़रूरतों के मुताबिक़ अलग-अलग समय पर इनमें से किसी को अपनी सेवा के लिए चुनती हैं, पर इनमें से कोई भी पार्टी लोगों को इंसाफ़ नहीं दे सकती. लोगों को सिर्फ़ अपने संघर्षों द्वारा ही हक़ लड़कर लेने पड़ते हैं. हसदेव अरंड के लोग भी इस बात को अच्छे से समझ गए हैं, भले ही पूरी राज्य सत्ता और मीडिया का बड़ा हिस्सा उनके विरुद्ध है लेकिन तब भी उन्होंने अदाणी जैसे परजीवियों के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखी हुई है.
- गुरप्रीत, अमृतसर (मुक्ति संग्राम)
Read Also –
छत्तीसगढ़ : हसदेव – कहानी दिए और तूफान की
कॉरपोरेटपरस्त राम और उसकी ब्राह्मणवादी संस्कृति के खिलाफ आदिवासियों की लड़ाई से जुड़ें
मणिपुर की आदिवासी जनता के जंगलों-पहाड़ों पर औधोगिक घरानों के कब्जे की तैयारी के खिलाफ मणिपुर की जनता का शानदार प्रतिरोध
कैमूर जनसभा का ऐलान – ‘अपने जल-जंगल-जमीन-आबरू बचाने के लिए संघर्ष का जो भी तरीका अपनाना हो अपनाएंगे’
अगर मैं जंगल में नहीं होता…
विकास मतलब जंगल में रहने वाले की ज़मीन छीन लो और बदमाश को दे दो
जंगल के दावेदारों पर सुप्रीम कोर्ट का आगा-पीछा
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]