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कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

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कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त
कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) को उनकी पार्टी विरोधी, गुटबाजीपूर्ण गतिविधियों के चलते पार्टी सदस्यता रद्द करते हुए, सभी जिम्मेवारियों से हटाते हुए पार्टी से बर्खास्त करने की भाकपा (माओवादी) की घोषणा की है. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता अभय की ओर से इसकी घोषणा 3 जनवरी, 2024 को किया है.

इस घोषणा के बाबत जब बिहार के कामरेड संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) से इसकी जानकारी मांगी गई तो उन्होंने बताया कि ‘यह एक कांस्पिरेसी है. दर्शन पाल और मैं 2012 से ही जनदिशा की सोच के साथ अलग काम कर रहे हैं.’ ज्ञात हो ही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से बर्खास्त दोनों कामरेड लंबे समय से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के तहत कार्यरत थे और पंजाब के जोसफ (दर्शन पाल) संयुक्त किसान मोर्चा के अहम भूमिका में थे.

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अपने विज्ञप्ति में बताते हैं कि कामरेड जोसेफ पूर्ववर्ति भाकपा (माले) (पार्टी यूनिटी) में 80 के दशक में शामिल हुए थे और पंजाब की राज्य कमेटी सदस्य रहे. जबकि कामरेड संजीत भी 80 के दशक में ही भाकपा (माले) (पार्टी यूनिटी) में शामिल हुए और बिहार राज्य कमेटी सदस्य भी बने. बाद की प्रक्रिया में भाकपा (माओवादी) बनी और ये दोनों कामरेड उसमें शामिल हुए और केन्द्रीय कमेटी के मार्गदर्शन में जिम्मेवारियां लेकर काम करते आए हैं.

प्रेस विज्ञप्ति
प्रेस विज्ञप्ति : पेज – 1
प्रेस विज्ञप्ति : पेज – 2

विज्ञप्ति में बर्खास्त करने के कारण के बारे में बताते हुए आगे कहा गया है कि दोनों का पार्टी की बुनियादी लाइन से मतांतर था, जो बाद में ढुलमुलपन में तब्दील हुआ. वे पार्टी की इलाकावार सत्ता दखल करने, आधार इलाका निर्माण करने की दीर्घकालीन जनयुद्ध की लाइन पर भिन्न मत रखते थे. उनमें कानूनी और खुले जनसंगठन तक सीमित रहकर और कानूनवाद में डूबकर काम करने का गलत रुझान था. उन्हें पार्टी लाइन से मजबूती से जोड़े रखने के लिए पार्टी की ओर से राजनीतिक अध्ययन कक्षाएं व चर्चाएं आयोजित की गई. लेकिन उनकी समझ और व्यवहार में कोई खास बदलाव दिखलाई नहीं दिया. दुश्मन के भीषण हमले में एनआरबी के भंग होने की परिस्थिति में उन्होंने सीसी से सम्पर्क रखकर मार्गदर्शन लेने की बजाय पार्टी लाइन से हटकर व्यक्तिगत तौर पर मनमर्जी से काम करते रहे.

2014 में पंजाब में सम्पन्न हुए प्लेनम के बाद जोसेफ को राज्य कमेटी में कॉ-कॉप्ट करने से लेकर अबतक उनके कामकाज में पार्टी की लाइन से हटकर फैसले लेने की प्रवृति हावी होती गई और वे अवसरवादी तरीके से पार्टी को गुटबाजी और विभाजन (स्पलिट) की ओर ले गए. 2016 में कामरेड बलराज के जेल से रिहा होने के बाद उनके साथ कामरेड जोसेफ और कामरेड संजीत अवसरवादी तरीके से सांठगांठ करते हुए पार्टी संविधान और अनुशासन को तोड़ते हुए पार्टी विरोधी गुटबाजीपूर्ण और विघटनकारी गतिविधियों में शामिल होते आए. उन्होंने कामरेड बलराज के नेतृत्व में पार्टी विरोधी समानांतर केन्द्र स्थापित किया.

2021 में संपन्न सीसी की 7वीं बैठक में पारित प्रस्ताव के मुताबिक पार्टी महासचिव की ओर से उत्तर रीजन के राज्यों की सभी पार्टी कतारों को कामरेड बलराज की पार्टी विरोधी गतिविधियों से दूर रहने के लिए आगाह करते हुए पत्र जारी किया गया था, जिसमें उनके दक्षिणपंथी अवसरवाद से लड़ते हुए पार्टी लाइन पर डटे रहने, और उनसे सभी प्रकार के संबंध तोड़ने के लिए निर्देश जारी किया गया था. इसके बावजूद दोनों कामरेड बलराज के नेतृत्व में बनाए गए पार्टी विरोधी समानांतर केन्द्र का हिस्सा बने रहे और विघटनकारी गतिविधियां जारी रखी.

उपरोक्त पृष्ठभूमि में सीसी की 8वीं बैठक के प्रस्ताव के तहत सीसी (केन्द्रीय कमिटी) कामरेड बलराज को पार्टी से बर्खास्त करने के साथ-साथ उनके नेतृत्व में कार्यरत व पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त का. जोसेफ और कामरेड संजीत को भी पार्टी से बर्खास्त करती है. इसलिए हमारी केन्द्रीय कमेटी अंतर्राष्ट्रीय व समूचे देश खासतौर पर पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार की क्रांतिकारी कतारों, पार्टी सदस्यों, हमदर्दों, समर्थकों एवं क्रांतिकारी जनता का आह्वान करती है कि वे जोसेफ और संजीत से दूर रहे, सतर्क रहे और उनके दक्षिणपंथी अवसरवादी लाइन से डटकर मुकाबला करते हुए पार्टी लाइन को आत्मसात करते हुए पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाए.

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के इस विज्ञप्ति और अर्जुन प्रसाद सिंह के जवाब के बाद कई सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं –

  1. क्या माओवादी संगठन विभाजन के दौर से गुजर रही है ?
  2. जब ये कामरेडद्वय 2012 से ही अलग कार्य कर रहे थे, तब इतनी देर (12 साल बाद) से सूचना क्यों जारी की गई ?
  3. क्या सीपीआई (माओवादी) के गठन जल्दीबाजी में की गई ?
  4. उत्तरी रीजनल ब्यूरो (एन.आर.बी) के ध्वस्त होने का कारण क्या था ?
  5. क्या आज भी पार्टी दक्षिणपंथी अवसरवाद से जूझ रही है ?
  6. क्या संशोधनवाद के खतरा से पार्टी को सदैव जूझना पड़ेगा ?
  7. मार्च, 2026 तक माओवादियों को भारत से खत्म कर देने की धमकी का मुकाबला पार्टी किस तरह कर पायेगी ?

मुझे लगता है भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) को जनता के बीच से उठ रहे इन सवालों का जवाब जरूर देना चाहिए. बहरहाल, देश की जनता इस बात पर गहराई से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के द्वारा प्रशस्त मार्ग को देख रही है. साथ ही वह चिंतित भी है. देखना होगा उत्तर भारत में ध्वस्त माओवादी संगठन और केन्द्रीय भारत में लाखों की तादाद में पुलिसिया गिरोह की मौजूदगी और उसके निरंतर हमलों के बीच से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) किस तरह आगे बढ़ती है.

  • महेश सिंह

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