Home कविताएं आईए शहर में मेरे…

आईए शहर में मेरे…

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आईए
शहर में मेरे
मैं नहीं तो क्या
मेरी गलियों में
परछाईयां हैं मेरी

उस साल की बारिश में धुली
जिस साल
मैंने बुलाया था तुम्हें
बारिश में मेरे साथ
भींगने के लिए

ये शहर
सिर्फ़ मेरा तो नहीं है
कहा था तुमने
भींगते हुए बारिश में
मेरे साथ

दुबारा
जब कभी आओ
मेरे शहर की बारिश में भींगने
मैं रहूं या न रहूं
बहा देना
एक काग़ज़ की नाव
मेरी गली में उफनते हुए
पानी में
और
धो लेना चेहरा अपना
तेरहवीं मंज़िल की तरफ़
नज़र उठाए
जहां कभी होता था
घर मेरा
कहा था उसने

मैं आज तक समझ नहीं पाया कि
उसे कैसे मालूम था कि एक दिन
लौटूंगा मैं
लौटना पड़ेगा मुझे
उसके शहर में
जिस दिन
उसका शहर सिर्फ़ उसका नहीं रह जाएगा

हमेशा की ख़ातिर उजड़ने के लिए
एक शहर को
लग जाती हैं कई सदियां

किसी के जाने से
नहीं उजड़ता है कोई शहर
लेकिन
किसी के चले जाने से
शहर का एक हिस्सा
बहुत छोटा सा ही सही
हो जाता है
हमेशा के लिए
खामोश

आवाज़ें
अब भी आती हैं
उस खोह से
जिसे छोड़ गया था
एक परिंदा
लेकिन, अब वो आवाज़ें
समंदर के किनारे पड़े
शंखों के आर पार गुजरती
हवाओं की हैं
जिनका साथ नहीं देते
सांध्य प्रदीप
किसी मंदिर के बज़्म में
जलते हुए
चुपचाप

इस बरसात में
अगर मुझे जाना ही पड़ा
तुम्हारे शहर
तो चुपचाप छू आऊंगा
हर वो कोना
जिसे तुम्हारे स्पर्श ने कभी
दी थी उष्मा

इस बरसात में
अगर मुझे जाना ही पड़ा
तुम्हारे शहर
तो चुपचाप सुन आऊंगा
हर वो आवाज़
जिसे तुम्हारे होने ने कभी
दिया था अर्थ

ये माना कि तुम्हारे बिना
तुम्हारे शहर का सिंगार
एक बेवा की पुरखुलूस जवानी सी है
लेकिन
मेरा हवाओं सा बहकना
कहाँ मना है ?

  • सुब्रतो चटर्जी

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