बिहार की शान पटना संग्रहालय (म्यूजियम) तथा अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए ‘पटना संग्रहालय बचाओ विरासत बचाओ संघर्ष समिति’ ने संवेदनशील एवं जनतांत्रिक नागरिकों से अपील जारी किया है. सैकड़ों लोगों के हस्ताक्षर से जारी यह अपील देश के जनमानस को झकझोरने का कार्य किया है. ज्ञात हो कि बिहार सरकार ने बिहार की प्राचीन धरोहरों को समेटे 106 वर्ष पुरानी ‘पटना म्यूजियम’ जो आम जनों के बीच ‘जादूघर’ के नाम से भी विख्यात है, को तोड़ने और निजी हाथों में सौंपने की कार्यवाही कर रही है. यहां हम अपने पाठकों के लिए जारी इस अपील को प्रकाशित कर रहे हैं – सम्पादक
पटना संग्रहालय से हम सभी परिचित हैं. 106 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक इमारत में पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं की भरमार है. लेकिन उसके देख-रेख, बचाव, सुरक्षा एवं संवर्धन पर राज्य सरकार की ओर से समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. पिछले अनेक वर्षों से पटना संग्रहालय सरकार की उपेक्षा एवं उदासीनता का शिकार है. ऐसा क्यों हो रहा है, इसका सही जवाब तो सरकार और उसके प्रतिनिधि ही दे सकते हैं. बहरहाल हम तो बस इतना जानते हैं कि अपनी ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा करना किसी भी जनपक्षधर सरकार का दायित्व होता है. और जो सरकार इस दायित्व का निर्वहन करने में कामयाब नहीं रहती है, वह अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफल साबित होती है.
बिहार में पिछले 18 वर्षों से नीतीश कुमार राज्य की सत्ता के केन्द्र में हैं. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले शासनकाल में सूबे में नये-नये सड़कों का निर्माण हुआ है, पटना में अनेक फ्लाईओवर बने हैं, करोड़ों-अरबों की लागत से बहुतेरे नये-नये भवनों, उद्यानों, पार्कों, म्यूजियम, आवासीय परिसरों आदि का निर्माण हुआ है. लेकिन पटना संग्रहालय तथा कई पुरातात्विक महत्व के स्थानों की सुरक्षा और रख-रखाव के मामले में नीतीश सरकार का रवैया उपेक्षात्मक रहा है. पिछले दिनों अशोक राजपथ पर हो रहे निर्माण के नाम पर ऐतिहासिक खुदाबख्श लाइब्रेरी और पटना विश्वविद्यालय के कई महत्वपूर्ण भवनों के एक हिस्से को तोड़ने की परियोजना राज्य सरकार ने बनाई थी, लेकिन पटना के नागरिकों के व्यापक विरोध के चलते सरकार को पीछे हटना पड़ा.
यह तथ्य सर्वविदित है कि बिहार म्यूजियम के निर्माण में नीतीश सरकार ने करीब 1000 करोड़ रुपए की राशि खर्च की है. उसके विकास एवं प्रचार-प्रसार में तो राज्य सरकार सक्रिय है लेकिन पटना संग्रहालय (म्यूजियम) की देखभाल, उसके सामानों की सुरक्षा और उसके विकास के लिए उठाए जाने वाले कदमों के सिलसिले में सूबे की सरकार की भूमिका चिन्ता का विषय है.
हम नये-नये इमारतों, भवनों, संग्रहालयों, आवासीय परिसरों, पार्कों, जैविक उद्यानों, सड़कों, फ्लाईओवरों के निर्माण के बिल्कुल पक्ष में हैं. लेकिन नये के निर्माण के नाम पर पुराने ऐतिहासिक भवनों एवं धरोहरों के रखरखाव में उपेक्षा या उसके विनाश के रास्ते को प्रशस्त करने वाले कदमों के खिलाफ हैं. ज्ञातव्य है कि प्राचीन पाटलिपुत्र का पुरातात्विक अवशेष स्थल (कुम्हरार पार्क), फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, गांधी मैदान सरीखे अनेक महत्वपूर्ण विरासत उपेक्षा या अतिक्रमण के शिकार हैं.
हम सभी जानते हैं कि पटना म्यूजियम के निर्माण में बिहार निर्माता डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, विख्यात इतिहासकार डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल और उद्भट विद्वान राहुल सांकृत्यायन जैसे महान विभूतियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उन महान विभूतियों की विरासत को बचाना हर बिहारवासी का कर्तव्य है.
प्रो. रोमिला थापर, प्रो. इरफान हबीब, प्रो. डी.एन. झा जैसे प्रसिद्ध इतिहासकारों ने 2017 में ही पटना संग्रहालय के अस्तित्व को बचाने की अपील की थी लेकिन उनकी इस अपील को राज्य सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया. किसी भी संवेदनशील सरकार को इतिहास एवं पुरातत्व के मसले में देश के प्रसिद्ध इतिहासकारों व पुरातत्ववेत्ताओं की राय का सम्मान करना चाहिए.
दुनिया के तमाम धंधों में पुरातत्वों की तस्करी सबसे बड़ा मुनाफ़े वाला धंधा है. संग्रहालयों की सुरक्षा को हवाई अड्डे के समतुल्य महत्व दिया गया है. पुरातत्वों की तस्करी से किसी भी राष्ट्र के इतिहास के नष्ट होने का खतरा है. पटना संग्रहालय बुद्धिस्ट पुरातत्वों के मामले में दुनिया भर में प्रतिष्ठित है. 2007 में पटना संग्रहालय के पुरातत्वों की चोरी के मामले में सीबीआई ने इंटरपोल की मदद ली थी. इसलिए केन्द्र एवं राज्य सरकार का दायित्व बनता है कि पटना म्यूजियम के पुरातात्विक महत्व के सामानों की सुरक्षा में वे पर्याप्त सावधानी बरतें और उसकी सुरक्षा की गारंटी करें.
पटना संग्रहालय के सबसे बड़े दानदाता राहुल सांकृत्यायन की पुत्री जया सांकृत्यायन के पत्र की राज्य सरकार ने अनदेखी की. फिर प्रशासनिक हस्तक्षेप से उन्हें परेशान करने की कोशिश की गई. स्वतंत्रता सेनानी, पद्मभूषण महापंडित राहुल सांकृत्यायन पर बिहार को गर्व है. उनकी पुत्री के पत्रों की अनदेखी करना और उन्हें प्रशासनिक हस्तक्षेप से परेशान करने की कोशिश करना दुःखद है.
16 मार्च, 2023 को बिहार सरकार के द्वारा जारी गजट के अनुसार कला, संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा लिये गये संकल्प के द्वारा पटना संग्रहालय को सोसाइटी एक्ट से निर्मित बिहार म्यूजियम सोसायटी को सौंप दिया गया. यह संकल्प पूर्णत: विधि विरुद्ध है.
अपने ऐतिहासिक धरोहरों एवं विरासतों की रक्षा करना और भविष्य की पीढ़ी को उसे सुरक्षित रूप से सौंप देना किसी भी जागरूक समाज का लक्षण होता है. और इसके लिए आवश्यक है कि नागरिक समाज स्वयं सजग रहे और समयानुसार समुचित पहलकदमी ले. ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह परम आवश्यक है कि उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी योग्य कंधों पर रहे. सिर्फ सरकार पर निर्भरता से यह काम संभव नहीं है. पटना संग्रहालय सरीखे ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए यह अपरिहार्य है कि उसे यथासंभव नौकरशाही के बेजा हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाए और उसकी जिम्मेवारी योग्य पुरातत्वविदों और इतिहासकारों की कमिटी को सौंप दिया जाए.
पटना संग्रहालय बचाओ विरासत बचाओ संघर्ष समिति* राज्य सरकार से मांग करती है –
- पटना संग्रहालय से अवैधानिक तरीके से स्थानांतरित सभी पुरातत्वों का राष्ट्रहित में रेस्क्यू (पुनर्वापसी) किया जाये.
- पटना संग्रहालय के पुरातत्वों का भौतिक सत्यापन (फिजिकल वेरिफिकेशन) कराया जाए और उसका एक सूचीपत्र (Catalogue) बनाकर उसे सर्वसुलभ बनाया जाए.
- अगर पटना संग्रहालय के पुरातत्वों की तस्करी हुई है तो सीबीआई की निगरानी में उसकी जांच कराई जाए.
- राहुल सांकृत्यायन के द्वारा तिब्बत से लायी गई दुर्लभ पांडुलिपियों तथा दान में दी गई लुप्त भारतीय ज्ञान संपदा का भारत सरकार के उच्च पालि विशेषज्ञों के द्वारा अध्ययन कराया जाए तथा उसका अनुवाद कराया जाए.
- पटना संग्रहालय की स्वायत्तता पूरी तरह बरकरार रखी जाए और इसे किसी दूसरे म्यूजियम से जोड़ने की कवायद पर अविलंब रोक लगाई जाए. यानी पटना म्यूजियम और बिहार म्यूजियम को भूमिगत सुरंग से जोड़ने की 542 करोड़ रुपए की योजना के क्रियान्वयन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए.
- तमाम ऐतिहासिक धरोहरों एवं विरासतों की रक्षा के लिए सुयोग्य इतिहासविदों, पुरातत्वविदों एवं लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों की अगुवाई में एक स्वायत्त उच्च स्तरीय समिति बनाई जाए और उसके कार्यों में में सरकार एवं नौकरशाही के हस्तक्षेप को वर्जित किया जाए.
अंत में हम बिहार के तमाम संवेदनशील, सजग एवं जनतांत्रिक नागरिकों से अपील करते हैं कि पटना संग्रहालय (म्यूजियम) सहित ऐतिहासिक महत्व के तमाम धरोहरों व विरासतों की रक्षा के लिए आगे आएं.
पटना संग्रहालय बचाओ विरासत बचाओ संघर्ष समिति के समर्थन में हस्ताक्षर –
- गणेश शंकर सिंह (राजनीतिकर्मी),
- प्रो. नवल किशोर चौधरी (अ.प्रा. विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र, पटना विश्वविद्यालय),
- अरविन्द सिन्हा (राजनीतिकर्मी),
- बलदेव झा (राजनीतिकर्मी) ,
- चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी (राजनीतिकर्मी),
- अरूण कुमार मिश्र (राजनीतिकर्मी),
- अरूण कुमार सिंह (सेवानिवृत्त उप महालेखाकार),
- प्रो. अरूण कमल (वरिष्ठ कवि),
- प्रो. रमाशंकर आर्य (पूर्व कुलपति, कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा)
- किशोरी दास (राजनीतिकर्मी),
- नन्द किशोर सिंह (राजनीतिकर्मी),
- महेन्द्र सुमन (सामाजिक कार्यकर्ता),
- अर्जुन प्रसाद सिंह (राजनीतिकर्मी),
- अरूण शाद्वल (सेवानिवृत्त बैंक पदाधिकारी),
- प्रीति सिन्हा (सम्पादक, फिलहाल),
- कमलेश शर्मा (राजनीतिकर्मी),
- उमेश सिंह (किसान नेता),
- अजय कुमार (श्रमिक नेता),
- सर्वोदय शर्मा (राजनीतिकर्मी),
- नवेन्दु (वरिष्ठ पत्रकार),
- पद्मश्री (प्रो.) उषा किरण खान (लेखिका),
- उमेश कुमार सिंह (सेवानिवृत्त पुलिस पदाधिकारी),
- प्रो. युवराज देव प्रसाद (अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष, इतिहास, पटना वि.वि.),
- सी.पी. सिन्हा (पूर्व निदेशक, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान, पटना),
- प्रो. पुष्पेन्द्र कुमार सिंह (पूर्व प्राध्यापक, टिस),
- प्रो. तरूण कुमार (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिन्दी, पटना वि.वि.,
- ह्रषिकेश सुलभ (कथाकार),
- पुष्पराज (लेखक),
- आशीष रंजन (राजनीतिकर्मी),
- प्रो. डी.एम. दिवाकर (पूर्व निदेशक, अनुग्रह ना.सिंह समाज अध्ययन संस्थान, पटना),
- विजय कुमार चौधरी (राजनीतिकर्मी),
- प्रो.आनन्द किशोर (मानवाधिकार कार्यकर्ता )
- अमिताभ कुमार दास (सेवानिवृत्त आईपीएस),
- अभय कुमार पाण्डेय (शोधार्थी),
- सत्यनारायण मदन (राजनीतिकर्मी)
- कंचन बाला (सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता),
- अशोक कुमार (अधिवक्ता),
- मिथिलेश कुमार (अधिवक्ता)
- मणिलाल (अधिवक्ता),
- नरेन्द्र कुमार (लेखक),
- आकाश आनन्द (राजनीतिकर्मी),
- सुरेन्द्र कुमार (सामाजिक कार्यकर्ता, मुजफ्फरपुर),
- शंभू मल्लिक (अवकाशप्राप्त बैंक पदाधिकारी),
- विरेन्द्र कुमार (राजनीतिकर्मी),
- कृष्ण मुरारी (मानवाधिकार कार्यकर्ता),
- पूनम (सामाजिक कार्यकर्ता),
- विनोद कुमार (संस्कृति कर्मी),
- प्रो. योगेन्द्र (अ.प्रा. विभागाध्यक्ष, हिन्दी, भागलपुर वि.वि.),
- मृत्युंजय शर्मा (वरिष्ठ रंगकर्मी),
- नारायण पूर्वे (राजनीतिकर्मी),
- कुलभूषण गोपाल (पत्रकार),
- पार्थ सरकार (राजनीतिकर्मी),
- मनोज कुमार झा (सामाजिक कार्यकर्ता),
- पुरूषोत्तम (सामाजिक कार्यकर्ता),
- चितरंजन भारती (कथाकार),
- मोना झा (रंगकर्मी ),
- सतीश कुमार (राजनीतिकर्मी),
- जयप्रकाश ललन (राजनीतिकर्मी),
- संजय श्याम (राजनीतिकर्मी),
- राजकुमार शाही (राजनीति कर्मी),
- कुमकुम (सामाजिक कार्यकर्ता),
- अखिलेश पांडेय (मजदूर नेता),
- रंजीत वर्मा (वरिष्ठ कवि),
- सुमंत शरण (वरिष्ठ कवि),
- अंकित आनन्द (मानवाधिकार कार्यकर्ता , मुजफ्फरपुर),
- निवेदिता झा (पत्रकार एवं महिला नेत्री),
- शाहिद कमाल (सामाजिक-राजनीतिकर्मी),
- ऋषि आनन्द (राजनीतिकर्मी),
- विकास (राजनीतिकर्मी),
- संजीव श्रीवास्तव (कवि),
- मुकेश प्रत्युष (वरिष्ठ कवि ),
- बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता (सांस्कृतिक पत्रकार),
- प्रो. चंद्रेश (संस्कृति कर्मी, भागलपुर),
- श्रीराम तिवारी (वरिष्ठ कवि, पटना),
- गौतम कुमार प्रीतम (सामाजिक कार्यकर्ता ,भागलपुर),
- किरण देव यादव (राजनीतिकर्मी, खगड़िया),
- उदयनचन्द्र राय (सामाजिक कार्यकर्ता),
- कर्नल बी.बी. सिंह (शिक्षाविद),
- कैप्टन उदय दीक्षित (विरासत प्रेमी, पटना)
- मणिकांत ठाकुर (वरिष्ठ पत्रकार),
- प्रो. शशि शर्मा (पूर्व प्राचार्य, मगध महिला कॉलेज,पटना),
- प्रो. के.के. मंडल (प्राध्यापक, इतिहास विभाग, भागलपुर वि.वि.),
- सुनील कुमार सिंह (प्रगतिशील बुद्धिजीवी),
- शशिकांत राय (अ.भा.राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ),
- उदयभानु राय (वरिष्ठ अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय),
- सुनील कुमार सिन्हा (पूर्व बैंक अधिकारी),
- प्रतिमा (सामाजिक कार्यकर्ता),
- लाल रत्नाकर (वरिष्ठ पत्रकार, टाइम्स ऑफ इंडिया),
- मणिकांत झा (वरिष्ठ अधिवक्ता, पटना सिविल कोर्ट),
- अखिलेश्वर प्रसाद (वरिष्ठ अधिवक्ता, दानापुर सिविल कोर्ट)
- प्रो. अवध किशोर प्रसाद (अ.प्रा. प्राध्यापक, इतिहास विभाग, पटना वि.वि.),
- डॉ. शकील (समाजसेवी एवं चिकित्सक),
- इरफान अहमद फातमी (ऑल इंडिया तंजीम इंसाफ),
- गुलरेज शहजाद (शायर, मोतीहारी),
- राजीव कुमार (सामाजिक कार्यकर्ता),
- नवज्योति पटेल (स्वतंत्र पत्रकार, भागलपुर),
- लोकेन्द्र भारतीय (समाज कर्मी, सहरसा),
- सोमप्रकाश (पूर्व विधायक, बिहार),
- राकेश रंजन (प्रेरणा, जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा),
- संदीप सौरभ (विधायक, भाकपा माले),
- सुनील सरला (कठपुतली कलाकार, मुजफ्फरपुर),
- तनवीर अख्तर (महासचिव, इप्टा),
- ग़ालिब खां (सामाजिक कर्मी),
- चन्द्रकांता (सामाजिक कार्यकर्ता),
- राजेश कमल (कवि, पटना),
- विनय कुमार सिंह (पत्रकार, बरियारपुर, मुंगेर),
- अनीता कुमारी (लोक गायिका, मुजफ्फरपुर),
- लक्ष्मी यादव (लोक गायक, बेगूसराय),
- संतोष कुमार (लेखक, मुजफ्फरपुर),
- ब्रह्मानन्द ठाकुर (सामाजिक कार्यकर्ता, मुज.),
- विक्रम जय नारायण निषाद (सामाजिक कार्यकर्ता, मुजफ्फरपुर),
- जय शर्मा (कलाकार, अरेराज, पूर्वी चम्पारण)
पटना संग्रहालय बचाओ अभियान के पक्ष में देशव्यापी समर्थन :
- प्रो.रोमिला थापर (प्रसिद्ध इतिहासकार)
- प्रो. इरफान हबीब (प्रसिद्ध इतिहासकार)
- जया पड़हाक सांकृत्यायन,देहरादून (राहुल सांकृत्यायन की पुत्री),
- प्रो.चमनलाल (अध्यक्ष, शहीद भगत सिंह अभिलेखागार, दिल्ली)
- यशवंत सिन्हा (पूर्व वित्त मंत्री, भारत सरकार),
- प्रो. रूपरेखा वर्मा (पूर्व कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय),
- डॉ. संदीप पाण्डेय (समाजसेवी),
- विजय बहादुर सिंह (आलोचक, भोपाल),
- अनिल जायसवाल (डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल के पौत्र)
- हिमांशु कुमार (प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, छत्तीसगढ़),
- प्रो. शिवमंगल सिद्धांतकर (वरिष्ठ साहित्यकार, अ.प्रा.प्रो. दिल्ली विश्वविद्यालय)
- पद्मश्री शेखर पाठक (इतिहासविद, नैनीताल)
- प्रभात कुमार (सामाजिक एवं राजनीतिक कर्मी, दिल्ली)
- पुरूषोत्तम शर्मा (किसान नेता, दिल्ली)
- गिरिजा पाठक (स्वतंत्र पत्रकार, दिल्ली)
- प्रो.मनमोहन (प्रतिष्ठित कवि, रोहतक)
- प्रो. शुभा (प्रतिष्ठित कवि, रोहतक)
- प्रो. सुबोध मालाकार (अवकाश प्राप्त प्राध्यापक, जेएनयू, दिल्ली),
- मणिका मोहिनी (वरिष्ठ कथाकार एवं अ.प्रा. राजनयिक भारतीय दूतावास, गयाना),
- प्रो. पंकज चतुर्वेदी (कानपुर)
- विक्रमजीत सिंह (सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर)
- देवेंद्र आर्य (वरिष्ठ कवि, गोरखपुर)
- विकास नारायण राय (अवकाश प्राप्त डी.जी., हरियाणा पुलिस)
- सुधांशु रंजन (अ.प्रा.अपर महानिदेशक, प्रसार भारती)
- रविन्द्र भारती (वरिष्ठ कवि, नाट्यकार)
- शशिभूषण (अर्थशास्त्री, हैदराबाद)
- प्रसन्न कुमार चौधरी (समाजशास्त्री, देवघर),
- राकेश रंजन (पत्रकार, जमशेदपुर),
- मंथन (सामाजिक राजनीतिक कर्मी, जमशेदपुर)
- सुब्रत बसु (अ.प्रा.संपादक , आनंद बाजार, कोलकाता)
- प्रो.प्रियरंजन (यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडी, देहरादून)
- प्रह्लाद अग्रवाल (भारतीय फिल्मों के इतिहास लेखक, सतना)
- अवधेश बाजपेयी (वरिष्ठ चित्रकार, जबलपुर)
- हरपाल ग़ाफ़िल (कवि-कलाकार, कुरुक्षेत्र)
- स्वप्निल श्रीवास्तव (वरिष्ठ कवि, फैजाबाद)
- बंधु कुशावर्ती (वरिष्ठ साहित्यकार, लखनऊ)
- कमलेश जैन (अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली)
- प्रो.सूर्यनारायण (हिंदी विभाग, इलाहाबाद वि.वि.)
- कात्यायनी (कवयित्री, लखनऊ)
- सत्यम वर्मा (राजनीतिकर्मी, लखनऊ)
- आशा काचरू (शिक्षाविद एवं जर्मन सिटी पार्लियामेंट में पूर्व काउंसलर मेंबर)
- डॉ. दिनेश मिश्र (नदी विशेषज्ञ)
- डॉ. रविभूषण (स्तंभकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार, रांची)
- उषा तितिक्षु (वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर, नेपाल)
- वाचस्पति (साहित्यकार, वाराणसी)
- प्रकाश चंद्रायन (अ.प्रा.फीचर संपादक, लोकमत समाचार, नागपुर)
- डॉ. लेनिन रघुवंशी (संयोजक, मानवाधिकार जन निगरानी समिति, वाराणसी)
- जितेंद्र राणा (नाट्यम, शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश)
- जयप्रकाश धूमकेतु (सचिव, राहुल सांकृत्यायन पीठ, मऊ)
- मदन सांकृत्यायन (संपादक, जनहित इंडिया, कनैला, आजमगढ़)
- राजीव यादव (संयोजक, राहुल सांकृत्यायन की विरासत संवर्धन अभियान, आजमगढ़
- निर्निमेष (अवकाशप्राप्त वरिष्ठ पत्रकार, द हिन्दू, दिल्ली)
- दिगम्बर (राजनीतिकर्मी, दिल्ली)
- अनिल सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
- दयाशंकर राय (वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ)
- रणधीर संजीवनी (स्वतंत्र शोधकर्ता, लखनऊ)
- मोनाली बैरागी (गायिका, कोलकाता)
- तुषार कांति (वरिष्ठ पत्रकार, नागपुर)
- सृंजय (कथाकार, पश्चिम बंगाल)
- संतोष दीक्षित (कथाकार)
- रामजी यादव (कथाकार, वाराणसी)
- संजीव चंदन (संपादक, स्त्री काल, दिल्ली)
- गंगा प्रसाद (वरिष्ठ पत्रकार, जनसत्ता)
- डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी (प्राध्यापक, हिंदी विभाग, केंद्रीय वि.वि., गुजरात)
- मेरी स्टेला माइकल (निदेशक, स्त्री वन इंडिया, रांची)
- राजेन्द्र प्रसाद (संपादक, तीस्ता हिमालय, सिलीगुड़ी)
- अंशुल छत्रपति (संपादक, पूरा सच, सिरसा)
- लेखराज ढोठ (अधिवक्ता, सिरसा)
- निर्भय दिव्यांश (संपादक, लहक, कोलकाता)
- विजय शर्मा (कथाकार, कोलकाता)
- प्रो. कमलेश वर्मा (वाराणसी)
- मधु कांकरिया (कथा लेखिका, मुम्बई)
- दिनकर कुमार (कवि एवं पत्रकार, गुवाहाटी)
- महारूद्र मंगनाले (सम्पादक, मुक्तरंग लातुर, महाराष्ट्र)
- सुनील ताम्बे (मराठी स्तंभकार, मुंबई)
- रामाशंकर कुशवाहा (व्याख्याता, दिल्ली वि.वि.)
- अरुण कुमार त्रिपाठी (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
- ब्रज किशोर सिंह (सेवानिवृत्त मुख्य आयकर आयुक्त, मुम्बई)
- प्रो.गोपेश्वर सिंह (प्राध्यापक, दिल्ली)
- गोपाल कृष्ण वर्मा (सामाजिक कार्यकर्ता, फैजाबाद)
- बुद्धि लाल पाल (कवि, दुर्ग, छत्तीसगढ़)
- सुभाष राय (सम्पादक, जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ)
- अपर्णा (सम्पादक, गांव के लोग)
- काशीनाथ सिंह (प्रसिद्ध कथाकार, वाराणसी)
- अजेय कुमार (सम्पादक, उद्भावना)
- नरोत्तम विनीत (व्याख्याता, इतिहास विभाग, दयाल सिंह कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)
- प्रो. संजीव कुमार (महासचिव, जनवादी लेखक संघ, दिल्ली)
- दीपक धोलकिया (सामाजिक कार्यकर्ता, दिल्ली)
- विभूति नारायण राय (पूर्व कुलपति, अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी हिन्दी वि.वि., वर्धा)
- विनोद तिवारी (आलोचक, सम्पादक- पक्षधर, दिल्ली)
- राजेश जोशी (वरिष्ठ कवि,भोपाल)
- डॉ. अभय कुमार (हिन्दी विभाग, दयाल सिंह कॉलेज, दिल्ली वि.वि.)
- विनोद सिंह (विधायक, भाकपा माले, झारखंड)
- राजेश कमाल (कवि, झुंझनु, राजस्थान)
- मोहन लाल यादव (कवि, उत्तर प्रदेश)
- मदन कश्यप (वरिष्ठ कवि, दिल्ली)
- प्रो. हितेन्द्र पटेल (कोलकाता)
- डॉ. विद्यानिधि छाबड़ा (लेखिका, शिमला)
- राजीव रंजन नाग (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
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