लंबा कद, गंभीर हंसमुख चेहरा, नया पथ खोजती बड़ी-बड़ी आंखें, का. राजकिशोर सिंह, जो आर. के. सिंह के नाम से ज्यादा पहचाने जाते थे, का 82 वर्ष की उम्र में देहावसान हो गया. का. राजकिशोर सिंह की पहचान थी – धैर्यपूर्वक सुनना, बुद्धिमानी से उत्तर देना, गंभीरतापूर्वक विचार करना और निष्पक्षतापूर्वक निर्णय देना.
राजकिशोर सिंह ने दिल्ली में 1983 को आयोजित ऑल इंडिया लीग फॉर रिवोल्यूशनरी कल्चर (एआईएलआरसी) के साथ अपनी क्रांतिकारी राजनीति की शुरुआत की थी. बाद में वे एआईपीआरएफ के केंद्रीय कमेटी के सदस्य बने, फिर जब 2005 में एआईपीआरएफ और एआईपीआरएफ को मिलाकर आरडीएफ बना तो उसके महासचिव बने.
दिल्ली में जब आरडीएफ का केन्द्रीय कार्यालय खुला तो इन्हें उसका कार्यभार संभालने की जिम्मेवारी सौंपी गई. उन्होंने करीब चार दशक तक पूरे देश का भ्रमण कर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ एक नवजनवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया.
अपने भाषण और लेखन में सामंजस्य रखते हुए इन्होंने आंदोलन को तेज करने के लिए आदिवासियों, दलितों अल्पसंख्यकों, महिलाओं, छात्र-नौजवानों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों के संगठन बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. ‘जन ज्वार’ और आरडीएफ का मुखपत्र ‘प्रतिरोध’ जैसी जनपक्षधर पत्रिकाओं का सफलतापूर्वक संपादन भी किया. कई बुकलेट, पुस्तिकाएं आदि उनके नाम से प्रकाशित हुए, जिससे नये समाज के निर्माण हेतु लड़ रहे आंदोलन को काफी बल मिला.
साम्राज्यवादी नीतियों के इशारे पर चल रही मौजूदा व्यवस्था के द्वारा विकास के नाम पर जब जल, जंगल, जमीन का बेहिसाब अधिग्रहण किया जाने लगा तब इसके खिलाफ पूरे देश में विस्थापितों, खासकर आदिवासियों का आंदोलन तेज होने लगा. उस समय इन्होंने कई प्रदेशों का लगातार दौरा कर सरकार की दमनकारी नीतियों का जमकर विरोध किया.
दमन के दौर में कई आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई, कई को शहादतें देनी पड़ी. इस क्रम में का. राजकिशोर सिंह ने सफल नेतृत्व कर आने वाली पीढ़ियों को आंदोलन में सक्रिय रहने में अनेकों काम किये. राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए किये गये कई उल्लेखनीय कामों में इनकी सहभागिता रही.
क्रांतिकारी भूमिका में आने के पूर्व का. राजकिशार 23 वर्षों तक अपने पंचायत के मुखिया रहे. 1974 के बिहार आंदोलन (जेपी आंदोलन) में सक्रिय रूप से शामिल हुए और गिरफ्तार करके मोतिहारी जेल भेजे गए. जेल में कुव्यवस्था के खिलाफ इन्होंने आंदोलन किया फलतः भागलपुर जेल में भेजा गया. कैदियों पर अत्याचार के मामले में कुख्यात भागलपुर सेंट्रल जेल में भी इन्होंने बंदियों के लिए कार्यरत एक कमिटि में सक्रिय भूमिका अदा कर विभिन्न मांगों के समर्थन में जेल प्रशासन को झुकने पर मजबूर किया.
जेल में ही क्रांतिकारी धारा के साथियों से राजनीतिक बहस के बाद इनका रुझान क्रांतिकारी धारा की ओर हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वामपंथी आन्दोलन में हिस्सा लेने लगे. इसी बीच प्रसिद्ध क्रांतिकारी कपिल मुनि के संपर्क में आए और फिर इस धारा के अभिन्न अंग बन गए और जन आन्दोलनों में खुलकर भागीदारी निभाने लगे.
भारत की दो कम्युनिस्ट क्रांतिकारी दलों की एकता के राजनैतिक महत्व को जनता के बीच सामने लाने के लिए जब पटना के गांधी मैदान में एक रैली व आमसभा का आयोजन किया गया था तो बिहार पुलिस ने क्रार्यक्रम को बाधित करके आयोजकों व कार्यकर्ताओं के साथ का. राजकिशोर के रफ्तार कर लिया था. जमानत पर जेल से बाहर आकर दुगुने उत्साह से वे अपने मिशन में लग गये.
उम्र के 75वें पड़ाव पर आते-आते कई बीमारियों ने इन्हें घेर लिया तो अपने बखरी, पताही, पूर्वी चंपारण लौट गए, जहां पारिवारिक सदस्यों की देखभाल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. 1974 आन्दोलन के बाद कुछ लोगों ने पुलिस की गोली से शहीद साथियों की याद में स्मारक स्थल के निर्माण के लिए कुछ जमीन दान किया था.
घर लौटने के बाद का. राज किशोर सिंह ने दान के एक हिस्से की जमीन सरकारी अस्पताल को सौंपकर उसपर ‘जनता अस्पताल’ नामकरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया तथा शेष जमीन पर ‘जयप्रकाश आश्रम सांस्कृतिक विकास न्यास’ नामक ट्रस्ट बनाकर वाचनालय बनाने में अपना सहयोग प्रदान किया.
1974 के आन्दोलन में शरीक लोगों को जब बिहार सरकार ने पेंशन व अन्य सुविधा देने की घोषणा किया तो का. राजकिशोर ने इसे घूस मानते हुए लेने से इंकार कर दिया. देश की जनता पर बढ़ते शोषण-दमन के दौर में का. राजकिशोर सिंह का गुजर जाना जनवादी क्रांतिकारी आंदोलन को एक गंभीर क्षति है.
कॉमरेड राजकिशोर को इंकलाबी सलाम !
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