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सीजेआई टी. एस. ठाकुर के बाद डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट का बेहतरीन प्रदर्शन

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सीजेआई टी. एस. ठाकुर के बाद डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट का बेहतरीन प्रदर्शन
सीजेआई टी. एस. ठाकुर के बाद डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट का बेहतरीन प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टी. एस. ठाकुर के बाद पहली बार सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने कई फैसलों से सुप्रीम कोर्ट की गिरती विश्वसनीयता को कुछ हद तक बहाल करने का काम किया है. वरना, टी. ठाकुर के बाद तमाम सीजेआई केन्द्र की मोदी सरकार के चरणों में रेंगता ही रहा. दलाली की हद पार कर दी. यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट की यह विश्वसनीयता कब तक कायम रह पाता है क्योंकि केन्द्र की देशद्रोही मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपने ऐजेंट को भर्ती कर रही है ताकि सुप्रीम कोर्ट आतंकवादी मोदी सरकार के देशद्रोही ऐजेंडों के सामने ‘यस सर’ की भूमिका में रहे. जैसा कि प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राजीव भूषण सहाय अपने ट्वीट में और सुब्रमण्यम स्वामी अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं –

केन्द्र की सत्ता हथियाने के साथ ही मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट समेत तमाम संस्थाओं में अपने ऐजेंटों की ताबड़तोड़ भर्ती शुरु कर दिया था. जिस पर सबसे पहला प्रतिरोध भी सुप्रीम कोर्ट के चार बरिष्ठ जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के रुप में सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘लोकतंत्र खतरे में है. हमने ये प्रेस कॉन्‍फ्रेंस इसलिए की ताकि हमें कोई ये न कहे हमने अपनी आत्मा बेच दी. कोई भी अनुशासन भंग नहीं कर रहा है और यह जो हमने किया है वह तो राष्ट्र का क़र्ज़ उतारना है.’

इस सन्दर्भ में दो फैसलों को देखा जा सकता है, जिसमें सीजेआई डी. वाई. चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट के संघी मिजाज वकील अश्विनी उपाध्याय के 1000 नाम बदलने वाली याचिका कि दिल्ली में पांडवों के नाम पर कोई रोड नहीं है को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों नै साफ कहा कि क्या चाहते हैं देश जलता रहे ? अंग्रेजों वाला फॉर्मूला चाहते हैं ? इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वकील अश्विनी उपाध्याय को नसीहत भी दे डाली कि धर्म की जगह देशहित को सर्वोपरि रखें.

दरअसल,  सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में करीब 1000 जगहों का नाम बदलने की एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज कर दी है. इस दौरान उच्चतम न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आप इस तरह की याचिका से आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं ? सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने मामले पर सुनवाई की.

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि कहा कि – ‘क्या देश में और समस्याएं नहीं हैं, जो हम पुरानी चीजों के पीछे पड़े हुए हैं ?’ इस पर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि ‘क्या जगहों और सड़कों का नाम ऐसे लोगों पर होना चाहिए जिन्होंने देश को लूटा ?’ उन्होंने कहा कि ‘सिर्फ गजनी और गोरी के नाम से इतिहास क्यों शुरू होता है ? औरंगजेब का भारत से क्या रिश्ता है ? हमारे यहां गजनी, गोरी और लोधी के नाम पर सड़कें हैं लेकिन पांडव के नाम पर नहीं.’

इस पर जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि ‘अतीत को चुनिंदा तरीके से देखने का क्या मतलब ? भारत एक सेक्युलर देश है. अगर आप एक समुदाय पर उंगली उठाएंगे तो क्या चाहते हैं कि देश हमेशा जलता रहे ? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सेक्युलरिज्म के खिलाफ है. हमें इस तरह की याचिकाओं में नहीं पड़ना चाहिए.’

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कोर्ट के उपर फंडामेंटल राइट्स को बचाने की जिम्मेदारी है और यह भी महत्वपूर्ण है कि देश आगे बढ़ता रहे. सिर्फ और सिर्फ सद्भाव ही देश को एकजुट रख सकता है और इसी से देश का भला भी होगा.’ इसपर संघी मिजाज वकील अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से दरख्वास्त की कि कृपया आर्डर रिजर्व रख लें और उन्हें एफिडेविट फाइल करने का वक्त दें. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘आप हमें नहीं बताएंगे कि क्या करना है.’

इसके बाद कोर्ट का मूड भांपते हुए अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और कहा कि वे इस संबंध में गृह मंत्रालय से सामने अर्जी लगाएंगे. लेकिन कोर्ट ने उनकी बात नहीं मानी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को किसी लड़ाई के हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. हम और कड़ी टिप्पणी कर सकते थे, लेकिन आदेश को संतुलित रखा है. कृपया हिंदू धर्म को इस तरीके से छोटा ना बनाएं, इसकी महानता को समझने का प्रयास करें.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि इस तरह की याचिकाओं से देश को बांटने का प्रयास न करें. कृपया धर्म की जगह देशहित को दिमाग में रखें. इस पर अश्विनी उपाध्याय ने आगे दलील देने की कोशिश की, तो कोर्ट ने रोकते हुए कहा कि हमें जो कहना था कह दिया है. हम इस मामले में पूरी तरह क्लियर है. इसके बाद याचिका खारिज कर दी.

वहीं एक और मामले में इसी वकील अश्विनी उपाध्याय को टका सा जवाब देते हुए कि ‘हम आपके विचार सुनने या आपको खुश करने नहीं बैठे हैं, जहां उचित लगे वहां जाइए’, कहते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ी की अगुवाई वाली बेंच ने महिला और पुरुष की शादी की उम्र एक समान करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से मना कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी को महिला और पुरुष की शादी की उम्र एक समान करने की मांग वाली इसी संघी मिजाज वकील की याचिका पर विचार करने से मना करते हुए कहा कि यह संसद को तय करना है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी. एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई की. वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप कह रहे हैं कि महिलाओं की शादी की उम्र 18 नहीं 21 साल होना चाहिए. अगर हम 18 साल की समय सीमा खत्म कर देंगे तो कोई सीमा ही नहीं बचेगी. ऐसे में तो कोई 5 साल की उम्र में भी शादी कर सकता है.

इस पर अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 18 साल और 21 साल की दो अलग-अलग उम्र सीमा मनमानी है. संसद में पहले से ही इस कानून पर बहस चल रही है. इस पर जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा ने अश्विनी उपाध्याय को टोकते हुए कहा कि जब संसद में कानून पर बहस चल रही है तो आप हमारे पास क्यों आए हैं ? इस पर उपाध्याय ने कहा कि आप मामले को स्थगित कर दीजिए. उपाध्याय ने तर्क दिया कि अगर 18 साल की समय सीमा खत्म कर दी जाती है तो यह अपने आप 21 साल हो जाएगा ? उन्होंने हिंदू मैरिज एक्ट का हवाला दिया. इस पर सीजेआई ने इसे दिखाने को कहा.

चीफ जस्टिस ने कहा कि आर्टिकल 32 का मजाक मत बनाइए. हम अकेले संविधान के कस्टोडियन नहीं हैं. संसद, खुद कानून बना सकती है और तय कर सकती है. कुछ मामले संसद के लिए हैं और संसद पर ही छोड़ दीजिए. इस पर अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि हमें लॉ कमीशन जाने की अनुमति दे दीजिये. सीजेआई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि आपको किसी ने लॉ कमीशन जाने से रोका है ? उपाध्याय ने जवाब दिया ‘नहीं…’. फिर चंद्रचूड़ ने पूछा कि फिर आपको छूट क्यों चाहिए ? चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की इस टिप्पणी पर उपाध्याय ने कहा फिर इस मामले को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कराने का फायदा क्या रह गया ?

इसी बात पर चीफ जस्टिस तल्ख हो गए. उन्होंने कहा कि हम आपकी राय सुनने के लिए नहीं बैठे हैं. हम यहां पर संवैधानिक ड्यूटी पूरी करने के लिए बैठे हैं, न तो आपको और न किसी पार्टी को खुश करने के लिए बैठे हैं. आप हमारे (कोर्ट के लिए) जैसा महसूस करते हैं, इस पर हमें आपकी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है. आप बार के सदस्य हैं, हमारे सामने बहस करें. यह कोई पॉलिटिकल फोरम नहीं है.

इसी तरह के कई अन्य मामलों पर सीजेआई चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट ने अनेक मौकों पर संविधान का साथ देते हुए न्याय का पक्ष लिया है, जिसमें पवन खेड़ा का मामला भी शामिल है. यह कहना तो कठिन है कि जस्टिस टी. एस. ठाकुर के बाद केन्द्र की मोदी सरकार के चरणों को चूमने वाली सुप्रीम कोर्ट जस्टिस चन्द्रचूड़ के वक्त खड़ी होने की कोशिश करती हुई सुप्रीम कोर्ट कितने समय तक चल पाती है, लेकिन जब तक भी चले, आशा बंधाती रहेगी.

लेकिन देश की आम जनता को सुप्रीम कोर्ट पर पैनी निगाह रखने की जरूरत है क्योंकि फासिस्ट मोदी सरकार के सामने बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी. संभव है बुझने से पहले तेज लौ देने वाली कहावत न लागू हो जाये क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर संघियों/भाजपाई गुंडों को जज के रुप में बहाल कर दिया है.

खतरनाक ‘इतिहास बोध’ पर आधारित एक सही निर्णय

सुप्रीम कोर्ट के ये चंद निर्णय सही होते हुए भी एक खतरनाक इतिहास बोध का परिचय दिया है सुप्रीम कोर्ट ने. मनीष आजाद लिखते हैं कि – जब कोई सही निर्णय किसी गलत या खतरनाक प्रस्थापना पर टिका हो तो यह भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसा ही एक निर्णय 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने जगहों के नाम बदलने के सवाल पर अश्विनी उपाध्याय की याचिका को रद्द करते हुए दिया.

अश्विनी उपाध्याय की याचिका को उचित ही रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुइज़्म (Hinduism) की तारीफ करते हुए इसे बदनाम न करने की बात कही. कोर्ट ने कहा- ‘हिन्दुइज़्म जीने का एक तरीका है. इसी कारण भारत ने सभी को अपने में समाहित किया है. इसी कारण हम साथ-साथ रह रहे हैं.’ कोर्ट ने वेद, उपनिषद, गीता की भी भूरि भूरि तारीफ की और हिन्दुइज़्म को अन्य सभी धर्मों से श्रेष्ठ बताया.

निश्चित ही आने वाले समय में भाजपा/आरएसएस की शक्तियां अपने हित में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गयी उपरोक्त बातों का अपने हित में इस्तेमाल करेंगी और दूसरे समुदायों विशेषकर मुस्लिमों पर इसका मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा. अपने निर्णय में आगे सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का सुप्रीम कोर्ट किसी एक धर्म और उसकी पुस्तकों को दूसरे धर्म और उसकी पुस्तकों से श्रेष्ठ कैसे ठहरा सकता है ?

क्या वेद, उपनिषद, गीता आदि धार्मिक पुस्तकों में वर्ण व्यवस्था को जायज नहीं ठहराया गया है ? इन पुस्तकों के बारे में डॉ. अम्बेडकर के क्या विचार थे ? जजों ने एक जगह यह भी कहा कि हिन्दुइज़्म में कट्टरता की कोई जगह नहीं है. क्या यह बात सच है ? इसे औरतों और दलितों से बेहतर कौन समझ सकता है ! हमने तर्कशास्त्र में पढ़ा है कि सही निर्णय के लिए सही कारण भी होना चाहिये.

अपने संविधान में आर्टिकल Article 51 A में जिस ‘साइंटिफ़िक टेम्पर’ (scientific temper) की बात की गयी है, सुप्रीम कोर्ट अपनी उपरोक्त स्थापना में इस साइंटिफ़िक टेम्पर का निषेध करता दिखाई देता है. अफसोस कि सुप्रीम कोर्ट ने एक सही निर्णय पर पहुंचने के लिए बहुत ही खतरनाक स्थापना दे दी है, जिसका असर भविष्य में बुरा ही पड़ेगा.

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