भूरे ने कूड़े से भरी रेहड़ी खत्ते में पलट कर वहीं छोड़ दी. कूड़ेदान कचरे से लबालब भर गया है. उसकी जोरू खाली रेहड़ी को घसीट कर खत्ते के बाहर ले आई.
‘अभी रुक, एक बीड़ी पी लूं…’ भूरा खत्ते से सटे लैम्प-पोस्ट के नीचे उकड़ू बैठ गया. बीड़ी सुलगाकर बड़ा-सा कश खींचा और धुआं छोड़ते हुए फुसफुसाया, ‘…इतनी रात हो गई है कूड़ा इकट्ठा करते-करते…खाने का एक दाना नहीं गया पेट में. ये भी भूखी है बेचारी !…..अब कहां पकाएगी !…तंदूर चले चलेंगे.’
खाने के बाबत निश्चित कर लेने पर पैदा हुई तस्सली से उसने एक और लंबा कश लिया, फिर सिर के ऊपर फैले आकाश में इक्का-दुक्का तारों को खोजने लगा.
भूरे की जवान बीवी रेहड़ी-साइकिल की गद्दी पर बैठ कर खाली पैडल चलाकर खेल-सा करने में मशगूल है.
‘भूरे, ओ भूरे !’ एक भारी-कड़क आवाज़ उसके कानों में पड़ी. थोड़ी ही देर में ठेकेदार दुपहिया खड़ा करता हुआ उस तक पहुंचा.
‘साहब, आप !’ उसके मुंह से यकायक निकला. वो बीड़ी मसलते हुए खड़ा हो गया, ‘इस वक़्त….रात में !’
‘आना पड़ता है जब स्साले लोग-बाग हरामपंथी पर उतर आते हैं…’, ठेकेदार अब उसके बिलकुल करीब आ गया है.
‘क्या-क्या…! मैं समझा नहीं !’ भूरा आश्चर्य से बोला, ‘क्या कह रहे हैं बड़े साहब !’
‘ठीक कह रहा हूं मैं ! महीने-पंद्रह दिनों से कूड़े में कांच बिलकुल नहीं निकल रहा…तुम साले पहले ही निकाल लेते हो…’, ठेकेदार की आवाज़ सख्त हो गई. चेहरे पर गुस्सा उभर आया.
‘भगवान की कसम ! कुत्ते का बच्चा होगा जो इस तरह की बेईमानी करेगा साहब.’ भूरा हैरान है, दुखी है कि ठेकेदार उसे चोर समझता है. वो रुककर फिर बोला, ‘साहब, पांच साल से मैं इस काम में हूं…कभी कोई शिकायत नहीं आई…अब अचानक इत्ती बड़ी चोरी…!’
‘चोरी तो हो रही है…अब ऐसे नहीं मानेगा तो पुलिस बुलानी पड़ जाएगी. फिर जब वो थाने ले जाकर तोड़ेंगे, गांड कुटाई करेंगे तब तो बताएगा…हमारे पास सारे तरीके हैं…’. ठेकेदार ने फिर एक चाल चली, ‘अभी सच-सच बता दे मैं कुछ नहीं करूंगा, नहीं तो…!’
‘मां कसम, मैं सच कह रहा हूं साहब ! रेहड़ी पलट के मैं तो चला जाता हूं…’. उसका चेहरा फक्क पड़ गया, उसे काटो तो खून नहीं. बचाव के रास्ते सोचते-सोचते उसे ख्याल आया कि अभी पलटी रेहड़ी में कांच होगा ! उसमें एक ताकत का संचार हुआ वो कहने लगा, ‘साहब, ये रेहड़ी अभी पलटी है अगर इसमें कांच हुआ तो…!’
‘हां, दिखा चल.’
भूरा कूड़े में उतर गया. हाथों से अलटते-पलटते खोजने लगा. ‘…ये देखो साहब…ये कांच की शीशियां, बोतलें…’, यह कहते-कहते भूरे ने राहत की सांस ली.
‘फिर कौन ले जाता है ? मैं तो सवेरे-सवेरे ही लौंडे लगा देता हूं…घंटे भर में वे तिया-पांचा कर देते हैं…!’
‘साहब, मेरा काम तो यहीं तक पहुंचाना है…’
‘चल जा…ये औरत कौन है तेरे साथ ?’
‘मेरी घरवाली है साहब…’
ठेकेदार घाघपने से उसे घूरता रहा.
भूरा रेहड़े पर अपनी औरत को बैठा तेजी से अंधेरे में गायब हो गया.
उस रात तो वहां से निकल आया लेकिन बैचेन बना रहा…ठेकेदार स्साला मुझे चोर कह रहा है, ईमानदारी का ये सिला दिया ! भूरे के दिलो-दिमाग से चोरी की बात निकल नहीं रही है….यार सबसे आखिर में मैं ही तो खत्ते में कूड़ा डालकर जाता हूं और सुबह आठ बजे ठेकेदार के लौंडे छांटने लग जाते हैं…कागज अलग, प्लास्टिक अलग, लोहा अलग, कांच अलग….यानि रात नौ बजे से सुबह आठ बजे के बीच ये काम होता है, कौन हो सकता है ?…वो सोचता रहा.
एक दिन, दो दिन और तीन दिन गुजर गए. परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही. चौथे दिन इसी उहाफोह में खत्ते का काम निबटा कर घर पहुंचा, नहाया, खाना खाया और छत पर चारपाई डालकर सो गया. बीच रात उसकी नींद खुल गई, मोबाइल में वक्त देखा- साढ़े तीन बजे हैं. ‘…चलकर देखता हूं…’ वो बुदबुदाया.
आव देखा न ताव साइकिल उठाई और तेजी से अंधेरे को चीरते हुये खत्ते की तरफ दौड़ता चला गया. बस खत्ते से थोड़ा पहले आड़ में उसने साइकिल खड़ी कर दी. उसने देखा एक व्यक्ति कूड़े के बीच कुछ ढूंढने में जुटा है. ‘…अबे यही है चोर !’ भूरा फुसफुसाया, पीछे हटकर अंधेरे में खड़ा हो गया. उसने ठेकेदार को फोन कर बुला लिया.
पांच-सात मिनट में ही ठेकेदार वहां पहुंच गया.
‘वो देखो आपका चोर…!’ भूरे ने इशारे से बताया.
ठेकेदार खत्ते की ओर लपका और कूड़े में झुके उस आदमी को खींच कर बाहर ले आया, दांत कीटते हुये बोला, ‘कौन है बे तू ? क्या कर रहा है ?’
वो पतला-मरियल व्यक्ति है. उसके गालों की हड्डियां उभरी हुई हैं, आंखें गहरे काले गड्डों में धंसी हुई हैं. सूखी काया पर चिथड़े लटक रहे हैं. सिर पर गंदे बालों का गुच्छा जो चेहरे की बेतरतीब दाढ़ी से उलझा हुआ है, वो सूरत से एकदम बावला जान पड़ता है. उसके एक हाथ में पौलिथीन और दूसरे हाथ में दो सूखे ब्रैड के टुकड़े हैं.
‘क्या है तेरे पास…!’
वो कुछ बोला नहीं, डर के मारे पीछे हट गया.
भूरा भी करीब आ गया हैं लेकिन उस व्यक्ति की ऐसी दशा देखकर कुछ कह नहीं पा रहा, उसकी आंखें नम हो चली हैं.
‘अबे, तेरे हाथ में क्या है…?’ ठेकेदार यही रट लगाये हुये है. उसने पास ही से एक डंडी उठा ली और उसे टारगेट करता हुआ हवा में घुमा दी.
‘साहब, मारो मत इसे ! पुलिस बुला लूं, पौलिथीन में कांच की शीशियां हैं…!’ भूरे ने अनुभव से बताया. उसे, उस व्यक्ति पर दया और आ रही है…मगर उसने अपने दिमाग से चोर पकड़ लिया है….लेकिन उसके ख्वावों-ख़यालों में भी नहीं था कि कोई जीता- जागता इंसान कूड़े-कचरे में भी खाना ढूंढता होगा…!
‘पुलिस !’ ठेकेदार का मुंह खुला रह गया, ‘नहीं, नहीं पुलिस नहीं…!’
‘क्यों, पुलिस करेगी पूछताछ…कब से चुरा रहा है ये कांच…और अगर जेल हो गई तो खाना तो मिलेगा, कूड़े में तो नहीं ढूंढना पड़ेगा.’
भूरा करीब आकर ठेकेदार के कान में बोला, ‘भूखा है बेचारा !’
‘नहीं यार…समझाकर, पुलिस इस कंगले का क्या उखाड़ लेगी !’ ठेकेदार ने धीमे से दोहराया.
भूरे के आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
कूड़े के ढेर से सटकर खड़ा आदमी हाथ के पौलिथीन को वहीं गिराकर पीछे की ओर सरकने लगा…ब्रैड के टुकड़े अभी भी उसके हाथ में हैं.
‘यहां नज़र मत आ जाईओ…चोर…स्साला…तेरी मां की…’. ठेकेदार अपनी भड़ास निकाल रहा है…मां-बहन की गालियां बके जा रहा है.
गंदी गालियों को अनसुना कर वो खत्ते से जुड़ी गली के अंधेरे में गुम हो गया.
….स्साला मुझे तो पुलिस में देने चला था, मेरी देही तुड़वाने…गुस्से और हैरत में भूरा सोचता रहा. तभी चुप-खामोश खड़े भूरे के कान के पास आकर ठेकेदार फुसफुसाया, ‘अगर कूड़े की कमाई का पता चला तो पुलिस हमेशा के लिये हिस्सा बांध लेगी…’. इतना कहकर वो दुपहियां से बड़ी सड़क की ओर दौड़ गया.
…भूरा सन्न, अन्यमनस्क-सा वहीं खड़ा रहा….फिर बुदबुदाया, ‘दिखा गया कारीगरी…कुत्ता !’ …कुछ देर बाद उसने चारों ओर देखा, हालांकि वो निर्दोष साबित हो चुका है फिर भी उसके मन पर रखा बोझ कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ गया है…चोरी का आरोप धुंधला पड़ गया लेकिन मस्तिष्क में ठोस होकर जम गया है वो भयावह नज़ारा जहां उसने दुनिया के सबसे निचले पायदान पर खड़ा जिंदा आदमी देखा है, जिसके हाथों में कूड़ेदान से बीना हुआ रोटी का टुकड़ा है…
वो हतप्रभ रह गया.
….चारों ओर अंधेरा अभी भी जस का तस काबिज है और भूरा अपने दिमाग से लिपटे उस अजीब ओ गरीब बोझ को साइकिल के साथ घसीटता हुआ घर लौट रहा है.
- गजेन्द्र रावत
पता- डबल्यू. पी. -33 सी,
पीतम पुरा, दिल्ली-110034
मोबाइल- 9971017136
Email rawatgsdm@gmail.com
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]