Home गेस्ट ब्लॉग चील, गिद्ध और कौव्वों, कुत्तों के द्वारा नुचता देश

चील, गिद्ध और कौव्वों, कुत्तों के द्वारा नुचता देश

8 second read
0
0
752

Kanak Tiwariकनक तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़
देश में अब भी ऐसे गालबजाऊ हैं जिनकी पहली प्राथमिकता राष्ट्रनायक की चरण वंदना करने में है. उनके ही और आसपास के घरों के लोगों को न केवल लावारिस हालत में दफनाया जा रहा है बल्कि उन्हें चील, गिद्ध और कौव्वों, कुत्तों के द्वारा नुचता हुआ दिखाया जा रहा है.

1857 के जनयुद्ध के वक्त बिहार की धरती से उपजे एक लोकगीत का मुखड़ा था ‘पहिल लड़ाई भई बक्सर में सिमरी के मैदाना.’ जब जगदीशपुर के शासक अस्सी पार उम्र के कुंवरसिंह के हाथों में तलवार लेने से अंगरेजी सल्तनत को चुनौती देने नौजवानी उन्मत्त और शर्मसार हो रही थी. आज बक्सर शब्द गंगा नदी के किनारे कोरोना महामारी से मारे गए असंख्य, नामालूम, मजलूम और सरकारी हिंसा के शिकार लोगों की लाशों के हुजूम से कलंकित हो गया है. भारत आज तक के इतिहास के सबसे क्रूर, घृणित और राष्ट्रीय बदहाली के दौर में है. दूर दूर तक उम्मीद या ढाढस की रोशनी नज़र नहीं आ रही. कोविड-19 की महामारी ने केन्द्र और राज्य की सरकारों का जनता की निगाह में कचूमर निकाल दिया है. सरकारें जनता की सेवा की प्रतिनिधि संस्थाएं नहीं रह गई हैं. मंत्री, सांसद और विधायक आदि पांच सालाना लोकतांत्रिक चुनावी टेंडर के जरिए जीते हुए सत्ता के ठेकेदार बनकर काबिज होते हैं.

देश जब महामारी की चपेट में आया, तब सबसे पहले राहुल गांधी ने पिछली फरवरी में कहा था इसका सबसे बड़ा थपेड़ा आने वाला है. सत्ता में गाफिल केन्द्र और कई राज्य सरकारें सुनिश्चित करती रहीं कि उन्हें सबका मज़ाक उड़ाते खुद को महामानव बनाना है. जनता के गाढ़े परिश्रम के धन से अखबारों और टीवी चैनलों पर रोज प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तस्वीर और आवाजें क्यों चिपकती हैं ? महामारी में हिन्दू मुस्लिम फिरकापरस्ती का चरित्र नहीं होता. वह कई नेताओं के कारण देश के बड़े वर्ग के खून का नफरत ग्रुप बन गया है.

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी देह भस्मि की मुट्ठी गंगा में और कुछ भारत के खेतों में बिखरा देने की वकालत की थी. आज यही बात हजारों लाखों लाशें कह रही हैं कि हम भी भारत के इतिहास का हिस्सा हैं. सरकारी झूठ बोलने की पक गई आदतें राष्ट्रीय अभिशाप में बदल रही हैं. नेताओं की अय्याशी का आलम है कि हजारों करोड़ खर्च कर नया संसद परिसर, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री निवास सहित संकुल बनेगा. मरते हुए देश के भविष्य में इसकी अब क्या जरूरत है ? देश इतनी तेजी से तबाह नहीं होता यदि सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन जजों ने महान संसदीय संस्था की धींगामस्ती के बेखौफ अहंकार के खिलाफ न्यायिक आचरण किया होता.

फिज़ा में खबर यह भी है कि आगामी सितंबर माह तक शायद कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है. वह बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकती है. देश का वर्तमान तो बरबाद हो ही रहा है, क्या उसके भविष्य को बचा पाने में सरकारें काबिल और सफल हो पाएंगी ? केन्द्रीय मंत्री अपने संसदीय क्षेत्रों में नहीं जाकर संविधान को ठेंगा दिखाते पश्चिम बंगाल में दो तिहाई हुकूूूमत से जीती सरकार पर तोहमत लगाते रहे लेकिन कोरोना पर एक शब्द नहीं कहे.

सुप्रीम कोर्ट को सरकारी जिम्मेदारी का ऑक्सीजन वितरण का काम करते और खाने कमाने की कमी से जूझते नागरिकों, श्रमिकों की सुरक्षा के लिए आगे आना पड़ रहा है. वाराणसी के सांसद के इलाके में तो देश के सबसे बड़े कलाकारों और उनके परिवार मौत के मुंह में चले गए. वहां अंतिम संस्कारों के लिए मणिकर्णिका घाट इतना विस्तृत हो गया है कि पूरा देश ही मौतों के सिलसिले में मणिकर्णिका घाट हो रहा है. तब भी टीवी चैनलों और अखबारों में मंत्रियों के मुस्कराते चेहरे कटाक्ष, व्यंग्य, आत्ममुग्धता, अहंकार और परत दर परत पुख्ता हो गए झूठ के ऐलान देखकर कोरोना उनसे गलबहियां करते जनता की जान लेते टर्रा रहा है. सरकार अट्टहास में कह रही है ‘कोरोना तुमको जीने नहीं देगा और हम जनता तुमको कोरोना से बचने नहीं देंगे.’

मौत का भयानक कोलाहल केे चलते भी बंगाल के गवर्नर को कोरोना की चिन्ता दरकिनार करके संविधान के प्रावधानों के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट की संविधान पीठ सरकार से संतुष्टि के आकलन के समानान्तर अपनी जिद और जद में हैं कि महामारी पर तो चिंता नहीं है लेकिन बंगाल की सरकार को किस तरह ठिकाने लगाएं. देश के वाचाल अट्टहासी गृहमंत्री खामोश हैं. प्रधानमंत्री आत्ममुग्ध और भक्तपराश्रित हैं. मुख्यमंत्रीगण भी अपने हाथों अपनी पीठ ठोंकते रहते हैं. कोई अपनी सियासी फितरत से बाज नहीं आ रहा है. देश के स्वास्थ्य मंत्री कोरोना के बावजूद मुस्कराते हुए मटर छीलते, अफसरों के बनाए उत्तर को रिट्वीट करें. सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष छत्तीसगढ़ सरकार पर कटाक्ष करें कि नया रायपुर याने अटलनगर में नई इमारतें क्यों बन रही हैं. सेंट्रल विस्टा के मामले में लेकिन बगले झांकें.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन चुटकुलों के मूर्तिमान संस्करण हैं. कोरोना से मरते-खपते लाखों भारतीयों को संदेश देते हैं कि ‘डार्क चाॅकलेट खाने से कोरोना से मुकाबला किया जा सकता है.’ इन मंत्रियों को यह तक नहीं मालूम होता कि कुपोषण में भारत विश्व के चुनिंदा देशों में है. किसी राजकुमारी ने कहा था कि लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है तो केक क्यों नहीं खाते ? लगता है भारत में राजकुमारी का पुनर्जन्म हो गया है. उनकी ही विचारधारा के कई भक्त कोविड-19 से बचने गोबर में स्नान कर रहे हैं, पूजापाठ कर रहे हैं. इनमें कुछ मंत्री भी शामिल हैं.

कोविड-19 अपनी भयानक मुद्रा लेकर अब आंखों में फैल गया है. फंगस की बीमारी के कारण लोग मर रहे हैं. समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है. कुछ ही दिनों में बारिश का मौसम आएगा. वैसे बेमौसम बरसात भी हो रही है. यमुना तो एक सूखती हुई धरती का नाम है. वह बरसात में ही नदी हो पाती है और फिर गंगा से मिलती है. तब उनके किनारे खड़े होकर शव फूलेंगे, फलेंगे, इतराएंगे, बहकेंगे. देश में वैसे भी अतिसार, मलेरिया, हैज़ा, बुखार, सर्दी खांसी की बीमारियां और लू वगैरह बरसात में होते ही रहते हैं. कोरोना उनके साथ मिलेगा तब कोढ़ में खाज जैसी स्थिति होगी.

सरकारें अपनी नाकामी को छिपाने वैक्सीन की दूसरी डोज़ का समय बढ़ाकर दो से तीन माह तक कर रही हैं. पूरी पश्चिमी दुनिया में उसे तीन या चार सप्ताह में दे दिया जाता है. भारत अपनी सरकारों और नेताओं के कारण नर्क में रहने का मांसल अनुभव कर रहा है. वह भी तब तक जब तक कि कोरोना रहेगा. पता नहीं इस भारत का क्या भविष्य है ? यह बीमारी तो हटेगी लेकिन तब भी भुखमरी, बेकारी, बेरोजगारी और शिक्षा के बरबाद हो जाने के साथ-साथ हमारे नेता इस देश को कहां ले जाएंगे ?

दो वर्ष पहले ही कोविड-19 महामारी ने दुनिया का वजूद झिंझोड़कर रख दिया. अमेरिका जैसे महाशक्तिशाली देश के राष्ट्रपति ट्रंप भारत से गिड़गिड़ाते और धमकाते मुनासिब मात्रा में दवाइयां वगैरह ले लेने में सफल हो गए थे. भारत को विश्व गुरु घोषित करने ऑक्सीजन, वेक्सीन, वेंटिलेटर और अन्य प्राणरक्षक दवाइयों के निर्यात में उदारता यह सोचकर बरती गई कि देश में उनका मुनासिब स्टाॅक उपलब्ध रहेगा.

कोविड-19 के सामने विज्ञान के अनुसंधानों को पानी भरते देखकर भी प्रधानमंत्री पौराणिक अवतार बनकर देशवासियों को आह्वान करने आए कि थाली, ताली, घंटी बजाओ, मोमबत्तियां, दिए और टाॅर्च जलाओ. बार-बार कहो ‘भाग कोरोना भाग,’ तो कोरोना भाग जाएगा. पस्तहिम्मत, विज्ञानविरोधी, कूपमंडूक, दकियानूस, भेड़चाल लोगों के मुल्क के बाशिन्दों के ये ठनगन इतिहास की बांबी में पड़े पड़े कभी भावी पीढ़ियों को बताएंगे कि हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता में सरकारों और अपने कारण नीचे गिरकर कितने लाचार होकर पिस गए थे.

लाखों करोड़ों किसानों की जिंदगियां सड़कों पर तबाह की जा रही हैं. निजाम जानबूझकर काॅरपोरेटी चंगुल में फंस जाने के कारण उनसे बात तक नहीं करता. ‘आंदोलनजीवी‘ जैसा कटाक्ष करता है. सरकारों की हरकतों के कारण हर नागरिक वैक्सीनजीवी बना दिया गया है. वह वैक्सीन जो आकाशकुसुम है. लोग तड़पते हैं लेकिन मिलती नहीं है. डिजाॅस्टर मैनेजमेंट ऐक्ट और एपीडेमिक डिजीजेज़ ऐक्ट के इकतरफा केन्द्रीय प्रावधानों में केवल केन्द्र का अधिकार है कि पेंटेट कानूनों तथा अंतर्राष्ट्रीय रिश्तों के कारण वैक्सीन का उत्पादन और आयात इतनी बड़ी संख्या में करे कि राज्यों को देकर जनता की जान सुरक्षित करने का संवैधानिक कर्तव्य और चुनाव घोषणा पत्र का वायदा पूरा हो. वैक्सीन रामबाण दवा नहीं है, लेकिन मौत से बचने की कोशिश में डूबते को तिनके का सहारा है.

शुरुआती ढिलाई और हिदायतों में रियायत होने से नेता तो क्रिकेट मैच, कुंभ स्नान, चुनाव रैलियां, बच्चों की अय्याश शादियां, पार्टियों के सम्मेलन तथा दलबदल के गालबजाऊ लगातार आयोजन करते रहें. ठीकरा जोड़ा कि यह तो अवाम है जो मुंह पर मास्क लगाना, सामाजिक दूरी रखना, बार बार साबुन से हाथ धोना नहीं करता है इसलिए कोरोना फैल गया है. लाखों मजबूर सड़कों पर दम तोड़ते रहे. नौकरियां और ठेकों में रोजनदारी छिन गए लोग सड़क पर मरे कुत्ते का मांस खाते भी देखे गये. एक बेटी साइकिल पर लादकर बूढ़े बाप को सैकड़ों मील ले गई. एक मजलूम मरी पत्नी की लाश दफनाने साइकिल पर ढोता रहा. बिहार के अस्पताल में मजदूर पत्नी बीमार पति को बचाने के लिए अस्पताल स्टाफ द्वारा यौन शोषण की हरकतों से आत्मा पर पत्थर रखकर बचती रही. ऐसा जुल्म तो पौराणिक आख्यानों में रावण ने भी सीता के साथ नहीं किया था.

यह भयानक राष्ट्रीय कोरोना नाटक चल रहा है. दिल्ली तथा प्रदेश की राजधानियों से सरकारी अट्टहास लगातार सुना जा रहा है कि जनता की गफलत के बावजूद मंत्रियों की चुस्ती के कारण भारत कोरोना को हराएगा. मरीजों के छिपाए जाते सरकारी आंकड़ों के बावजूद भारत विश्व गुरु तो बन ही गया है. धर्म के रहनुमा भूल गए कि घर-घर दस्तक देकर राममंदिर के लिए चंदा लेते वक्त ‘जयश्रीराम’, ‘मंदिर वहीं बनेगा’, ‘पाकिस्तान जाओ’, ‘देशद्रोही’ और ‘फंला है तो मुमकिन है’, ‘आएगा तो फलां ही’ के नारे गुमसुम हो गए हैं. देश एक बड़े श्मशान में तब्दील हो गया है. उसका आबादी के अनुपात में छोटा हिस्सा कब्रिस्तान भी है.

सैकड़ों पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, खिलाड़ी, किसान, श्रमिक नेता, कलाकार, उद्योगपति वगैरह कोरोना की भेंट चढ़ गए. उस राष्ट्रीय संपत्ति की भरपाई नहीं हो सकती. मन की बात कहने के व्यसन को जवाब देती एक मुख्यमंत्री की भी आवाज है कि कभी काम की बात करिए, जो हवा में तैर रही है. पप्पू यादव, श्रीनिवास, दिलीप पांडे जैसे कुछ लोग अपनी राजनीतिक असहमतियों के बावजूद जनदृष्टि में कोरोना पीड़ितों की अपने दम पर कुछ न कुछ तो सेवा कर ही रहे हैं, उनके पीछे ताकतवर निजाम गिरफ्तारी के वारंट जारी करे, यह कैसा कोरोना अनुशासन है ?

सरकार के खिलाफ टीवी चैनलों पर यदि कोई विरोध का स्वर उठाए तो बेहद चुस्त और ठनगन में रहने वाली एंकरानियां सरकार को बचाने व्यंग्य में कहें कि आप तो राजनीति कर रहे हैं. निजी अस्पताल इतनी बेशर्म लूट कर रहे हैं कि लाशें तक नहीं देते. दवा व्यवसायी चौगुनी कीमत दादागिरी में वसूल कर रहे हैं. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की आड़ में केन्द्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में खुलेआम कालाबाजारी हो रही है.

सबसे बुरी हालत उत्तरप्रदेश और बिहार की है. वहां के नागरिक आधुनिक वैज्ञानिक जीवन से महरूम किए जाकर रामायणकालीन रामभक्तों की तरह सरकारपरस्त बनाकर खानाबदोश बना दिए गए हैं. गांव के गांव उजड़ रहे हैं. टेस्टिंग नहीं हो रही है. इज्जत बचाने आंकड़े घटाए जा रहे हैं. डाॅक्टर, नर्स, अस्पताल, दवाइयां तथा प्रशासन को लाश को जलाने के लिए लकड़ी और कफन तक की किफायतसारी करनी पड़ रही है. अपवाद में सिक्ख कुनबा है कि भयानक अंधेरे में एक मजबूत कंदील की तरह रोशनी बिखेरते देश के गुरुद्वारों को कोविड सेंटर में तब्दील कर चुका है. वहां मौत से लड़ते ज़िंदगी को सुरक्षा सम्मान और भविष्य दिया जा रहा है.

वे नागरिक भी मनुष्य क्यों समझे जाएंगे जो इस नराधम समय में चुप रहकर अपनी आत्मा की ही लाश ढोते रहने को अभिशप्त हैं. केन्द्र सरकार की जुगत, जिद और जिच महामारी को मिटाने से ज्यादा ममता बनर्जी को हटाने मुखर है. वैक्सीन निर्माता पूनावाला इंग्लैंड भाग गया। उसे पकड़ बुलाने और वैक्सीन बनवाने में सरकार क्यों लाचार है ? संदिग्ध काॅरपोरेटियों ने लाखों (करोड़) रुपयों के बैंक ऋण माफ करा लिए जो जनता का धन है. उनमें से देश को उनका नाम तक नहीं मालूम जो इंग्लैंड जाने वाले भगोडे़ हैं. महंगाई की मार इतनी है कि सड़कों पर भुखमरी, लूट, आगजनी, बटमारी न जाने क्या होने लगे. अंगरेजों के वक्त भी अकालों के कारण इतनी खराब हालत नहीं रही. इतनी लाशें महाभारत की कथा में भी सड़कों और नदियों में शायद ही बिछी हों.

हम राष्ट्रीय शर्म की सरकारों के साथ किसी तरह कहने भर को जी रहे हैं. अफसोस है कि मनुष्य को इन्सानियत सिखाने वाले भारतीय नागरिक और मतदाता मौत को तो सहनशील छातियों पर झेल रहे हैं लेकिन अपनी सरकारपरस्त कायरता नहीं छोड़ेंगे.

देश में अब भी ऐसे गालबजाऊ हैं जिनकी पहली प्राथमिकता राष्ट्रनायक की चरण वंदना करने में है. उनके ही और आसपास के घरों के लोगों को न केवल लावारिस हालत में दफनाया जा रहा है बल्कि उन्हें चील, गिद्ध और कौव्वों, कुत्तों के द्वारा नुचता हुआ दिखाया जा रहा है. महामारी से भी बड़ी मानसिक बीमारी पस्तहिम्मती और कुंठा की है जिसने भारत को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. कोई नहीं जानता कि वह कल तक भी जीवित रहेगा या लावारिस लाश में तब्दील हो जाएगा. फिर भी सत्ता को इतना अहंकार है कि महाभारत के कौरव पक्ष का ज्ञात अहंकार भी बौना लग रहा है. देश चीख रहा है, कराह रहा है. आगे चलकर क्या उसकी आवाज ही खामोश हो जाएगाी क्योंकि कहा जाता है प्रधानमंत्री का भी गला रुंध गया है !

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…