कनक तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़
कभी कभी आसपास ऐसा कुछ घटित होता है, जिसकी अनदेखी करना मनुष्य की हैसियत पर ही अविश्वास करना हो जाता है. उनसे जुड़ना संवेदनशील रिश्ता तराश लेने जैसा होता है. इतिहास की सलवटों में कई घटनाएं पत्थर की लकीर की तरह दर्ज होती रहती है.
कोई सोच नहीं सकता 1917 में गांधीजी चंपारन के किसानों के लिए सालों रहकर लगातार जूझते रहे, तब जाकर ऐसा कुछ हासिल कर लिया कि वह मनुष्य के हौसले के इतिहास का भारत में बीसवीं शताब्दी में प्रस्थान बिंदु हो गया. हालिया हुआ किसान आंदोलन गोमुख या गंगोत्री की तरह हुआ. फिर महानद की तरह फैलकर दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा भारतीय किसान आंदोलन हो ही गया.
छत्तीसढ़ में हसदेव अरण्य के नाम से केन्द्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकारों और गौतम अडानी की चौहद्दी में फंसा जनआंदोलन इतिहास की करवट में एक सुलग रहा सवाल है. वह आम आदमी के हौसलों का एक घुमावदार मोड़ हो ही गया है. केन्द्र की हरी झंडी, छत्तीसगढ़ सरकार की गलबहियां, राजस्थान सरकार की खुदगर्जी और गौतम अडानी की धनलोपुपता के कुचक्र से लैस काॅरपोरेटीकरण आदिवासी और किसान बहुल छत्तीसगढ़ की वन सम्पदा युक्त धरती को बांझ बनाकर सारा कोयला गर्भगृह से ही उखाड़ लेना चाहता है.
बदले में देश के सबसे सीधे सादे, मासूम और अहिंसक मनुष्य समाज को गरीबी, कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, पानी की किल्लत, फसलों की बर्बादी और मौसम की बेतहाशा मार के अभिशापों से बींध डालना चाहता है. तुर्रा यह कि किसी पीड़ित को ही बोलने का हक नहीं है, नतीजतन छत्तीसगढ़वासियों की पीढ़ियां बरबाद हो जाएं.
संसार के लोकतंत्र में भारत का गोदी मीडिया खलनायकी का ऐसा प्रतिमान बन गया है, जिसकी निन्दा करने के लिए शब्दकोष भी बिसूर रहा है क्योंकि हरकतें उससे भी ज़्यादा घटिया हैं. मंत्री तो जनता के गाढ़े परिश्रम की कमाई को अपना चेहरा और नाम चमकाने में माले मुफ्त दिले बेहरम की शैली में गोदी मीडिया की गोदभराई में कर रहे हैं.
इस जद्दोजहद में आलोक शुक्ला नाम का एक नौजवान गर्म तवे पर पानी की एक बूंद की तरह गिरा है, लेकिन सत्ताकामुक गर्म लोहा उसे भाप में तब्दील नहीं कर पा रहा है. उसने पूरी समस्या का इतना व्यापक अध्ययन किया है कि सरकारी या काॅरपोरेटी नुमाइंदे अकेले या समूह में शास्त्रार्थ नहीं कर सकते. उसने अपने आपको होम कर दिया है कि वह अपनी धरती की पुकार को मां का आशीर्वाद और हुक्म समझेगा. वह कृतघ्न नहीं होगा क्योंकि अपने हमवतनों के साथ उसे सबके मन में वह आग सुलगती दिखाई दी है, जिसकी आंच अपने दम पर इतिहास रच सकती है.
इनके बरक्स वे लोग हैं जो वोट मांगने के समय जनता के चरणों में गिर पड़ते हैं. उसके बाद अपनी कमर सीधी कर आततायी मुद्रा में आ जाते हैं. अचरज है देश की दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इस मामले में गलबहियां कर इतिहास, जनता और अपनी धरती से फरेब करने की साजिशी भूमिका में हैं. सैकड़ों किलोमीटर चलकर किसानों, आदिवासियों और मुफलिसों के जत्थे सत्ता महल की दीवारों को लोकतांत्रिक चुनौती भी दे रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी डींग मार सकती है कि उसके पुरखे महात्मा गांधी थे लेकिन मैदानी जलजला तो छत्तीसढ़ के निवासी और ग्रामीण दिखाए हैं कि यदि वे नहीं रहेंगे तो गांधीजी का सत्याग्रह कांग्रेस की हुकूमत में ही कहीं दफ्न न हो जाए ! भाजपा के लिए तो गांधीजी शौचालय के प्रहरी भर हैं.
गौतम अडानी, मुकेश अंबानी जैसे लोगों की तिजोरियों में हिन्दुस्तान कैद हो रहा है और सरकारें तिजोरीपतियों को ही चाबी सौंप रही हैं. ऐसे चुनौती के दिनों में हो सकता है छत्तीसगढ़ एक कोई मिसाल इतिहास को दे दे. सरकारों और गोदी मीडिया के कारण इतिहास की स्लेट से फिलवक्त उसे पोंछने की कोशिश की जा रही है. लगता है इसके एक मुखिया का आलोक नाम आंदोलन को ही आलोकमय बना सकता है.
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