मेरे अंदर बसती है
एक चरित्रहीन लड़की
जो पार करना चाहती है
सभी सीमाओं को
वह दौड़ती है खुले बाज़ार में
ऐसे वस्त्रहीन हो कर
जैसे आज़ाद हो.
जब मयखाने में जाकर
उठाती है शराब और
ज़ोर ज़ोर से हंसती है वह
टांंगेंं फैला कर बैठती है कुर्सियों पर
बाकी चारित्रहीन लड़कियों के साथ.
उसे मर्दों के साथ घूमना पसंद है,
वह रात बिताती है अपनी मर्ज़ी से
फूंंकती है सिगरेट और गहरी सांसें लेती है.
वह देखती है उन सेंसर्ड फिल्मों को भी
जिन्हें समाज बुरा कहता है.
किसी मर्द की उंंची आवाज़ उठते ही,
गाली देना भी जानती है
वह करती है खुद से इतनी मोहब्बत के
अपने जिस्म को हर तरह से संवारती है.
वह जानती है
अपने पसंदीदा मर्द को आकर्षित करना.
मेरे अन्दर की वह लड़की सब करती है
जो तुम उसे करने नहीं देते
और तोड़ती है
समाज की ज़न्जीरों को
नाचते हुए जो
उसके पैरों में बांधी गई थी.
मेरे अन्दर की लड़की
सच जान चुकी है,
जल्द ही यह समाज भी जान जाएगा.
- अंजली बंगा
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