Home कविताएं चांडाल जात्रा

चांडाल जात्रा

4 second read
0
0
155

स्स्स…
देवतागण सो रहे थे !
जब उस लड़की की उन्होंने
काट डाली जीभ !
जलाया था उन लोगों ने
उस लड़की का जिस्म
जिससे
फैल पाई वह रात

हाथरस तब भी खराट्टे ले रही थी
लकड़ी की क़ब्र पर :
वह उन्नीस की थी
दयालुता की काठ की गुड़िया
जो उधेड़ती है
टूटी हुई रीढ़ का मर्म
करती है खून की उल्टी
उस भयाक्रांत मिट्टी पर

और क्या था उसका दोष और
उसका अवगुण ?
अच्छा…
तो वह दलित थी इसलिए !

इसलिए वे लोग जकड़ लेते हैं
उसकी चोटी
और बारी-बारी से करते हैं
बलात्कार,
पहली, दूसरी,
फिर तीसरी दफ़ा

देवियों का यह जड़ देस
झेलता है तब अभिघात
और बुदबुदाता है
अपनी बेटियों से :
‘घूमो गोल-गोल,
घूमो मेरी
प्यारी बेटियों,
घूमो,
नग्न हो तुम सब
और नग्न है यह भंवर’

रोहित वेमुला और चुनी कोटल
तब देते हैं जवाब;
उस प्रेत की पुकार का
और चलते हैं
उस कोमल मार्ग के प्रतिकूल –
मृत्यु की तरफ़
जो मारती है योग्यता को
व्यापक पैमाने में

सिर्फ़ नौ वर्ष का था इंद्रा मेघवाल
जब उसके शिक्षक ने किया था उसका आह्वान
उसके निधन के लिए
उसकी बस एक ग़लती थी :
कि उसने ग्रहण किया था जल
एक असाधारण मटके से
वह मटका जो ढोता है
उच्च जातियों के बच्चों के लिए
अमृत अथाह

कृष्णा नहीं ढंक पाते
बिलकिस बानो को
जिस विवरणात्मकता के साथ
बचा लेते हैं द्रोपदी,
इसलिए क्योंकि
वह मुसलमान है
और उसका बलात्कारी
‘ब्राह्मण’ ?

इचोली की एक अज़ीब दुनिया में
एक प्राधानाध्यापक फेंकता है
गर्म भात –
दलित लड़की के चेहरे पर
मानो वह पिघलती हुई चित्कार
कोई संगीत हो
उन मानवद्रोहियों के लिए

आख़िर कब तक
कोई एकलव्य गंवाएगा
अपना अंगूठा ?

कोई हिडिम्बा
कब तक रखेंगी
अपने कोंख को
रेहन पर ?

कब तक
कुनी सिकाका
रहेगी नज़रबंद ?

हाथरस की बेटियों,
धारण करो
तुम प्रचंडता !

सिर उठाओ
अपने पूर्वजों की भूमि में
तुम सब,
तुम बीज हो बीज…
मत सजाओ
उन वरमालाओं को
जमींदारों की
शादियों के लिए

जन्म दोगी तुम अभी
जंगली फूलों को
प्रवेश पाओगी
अन्यायों के समाधि-लेख में
खिलती हुईं
किसी इंक़लाब की तरह

तुम निःसन्देह गाओगी –

‘जनता मेरी,
कब तुम बड़बड़ाओगी;
और बना दोगी महत्वहीन
इन आर्य-मूल्यों के
एकाधिकार को ?’

‘जनता मेरी,
कब तुम जागोगी
और गिरा दोगी
ब्राह्मणवाद की
यह स्तम्भपादुका ?’

‘जनता मेरी,
कब तुम जगोगी;
और त्याग दोगी
परिधान
इस बांग्ला भद्रलोक के ?’

‘जनता मेरी,
कब तुम
हलचल पैदा करोगी;
और संभालोगी विरासत
नंगेली की नग्न छातियों की ?’

‘जनता मेरी,
कब तुम जागोगी;
और लौटा दोगी वापस
गरिमा
दोपदी मेहजन की ?’

  • मिथि (Mithi)
    कवि मिथि का परिचय हिन्दी पाठकों के समक्ष कुछ इस तरह से दिया जा सकता है कि बेहतरीन चित्रकार होने के साथ-साथ जादवपुर विश्वविद्यालय से फ़िलहाल ‘तुलनात्मक साहित्य’ से परास्नातक कर रही हैं. पेश है अनुवाद की इस ‘विमर्श श्रंखला’ में उनकी पहली कविता ‘चांडाल जात्रा’ का अनुवाद.
  • अंग्रेज़ी से अनुवाद : तनुज

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…