
मनीष आज़ाद
14 फरवरी को विकी कौशल अभिनीत फिल्म ‘छावा’ महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गोवा में टैक्स फ्री हो चुकी है. फिल्म की ‘सफलता’ और चर्चा के कारण लोग शिवाजी के बेटे संभा जी के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उत्सुक हो रहे हैं. उनका पहला पड़ाव Wikipedia है. संभाजी के बारे में Wikipedia में शुरू में ही जो जानकारी दी गई है वह फिल्म के ‘नैरेटिव’ में सेंध लगा कर उसे तहस नहस कर देती है.
Wikipedia कहता है कि एक बार शिवाजी ने ही अपने बेटे संभा जी को कैद कर लिया था क्योंकि उसने किसी ब्राह्मण महिला की अस्मत से खिलवाड़ किया था. बाद में शिवाजी की कैद से भागकर वह मुगलों से जा मिला और दिलेर खान के नेतृत्व में शिवाजी के खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी. अंततः 19 फरवरी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने Wikipedia को नोटिस भिजवाई और इस ‘आपत्तिजनक’ हिस्से को हटाने को कहा.
यह इसका एक उदाहरण है कि फासीवादी दौर में पहले कहानी या नैरेटिव तैयार किया जाता है, फिर उसके हिसाब से इतिहास की मरम्मत की जाती है. फिल्म के अंतिम दृश्य में औरंगजेब, संभा जी से कहता है कि धर्म परिर्वतन कर लो और हमारे साथ आ जाओ. जवाब में संभा जी कहता है कि तुम मेरे साथ आ जाओ और इसके लिए तुम्हें अपना धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा. (पिक्चर हाल में तालियों की गड़गड़ाहट).
अब इस तथ्य से उन्हें क्या लेना देना कि औरंगजेब के दरबार में सबसे ज्यादा हिंदू थे. औरंगजेब का वित्त विभाग राजा रघुनाथ संभाल रहे थे और उनकी सेना की कमान जय सिंह और जसवंत सिंह संभाल रहे थे. दूसरी ओर संभाजी के पिता छत्रपति शिवाजी की सेना में करीब 60 हजार मुस्लिम थे, जिनकी कमान इब्राहीम खान के हाथ में थी.
जिस तरह से सिगरेट की डिब्बी पर ‘धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ लिखा रहता है, उसी तरह इस बेहद गलीच सांप्रदायिक फिल्म में संभा जी से एक लाइन कहलवा दिया गया है कि हमारा संघर्ष किसी धर्म विशेष से नहीं है. लेकिन पूरी फिल्म में जो जहर उगला गया है वह हमारे विशेषकर हिंदुओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, बिल्कुल किसी कैंसर की तरह है. इसलिए इसे महज ‘प्रोपेगंडा फिल्म’ कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
यह BJP/RSS के हिंदुत्व फासीवाद प्रोजेक्ट के तहत बनाई गई फिल्म है. ‘हिंदुओं’ पर इसके खतरनाक असर को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि फिल्म देखने के बाद दिल्ली में कई नौजवानों ने अकबर, बाबर, हुमायूं रोड के चिन्हों पर पेशाब किया और नारे लगाए. इनके दिलों में मुस्लिमों के प्रति कितनी नफ़रत होगी, आप समझ सकते हैं.
फिल्म के अंत में आधे घंटे सिर्फ संभाजी के टार्चर का ग्राफिक चित्रण किया गया है, जिसका एक मात्र उद्देश्य हिंदुओं की ‘हीनता बोध’ के ज़ख्म पर नमक मलना और हिंदुओं की कृत्रिम नफरत को मुस्लिमों की तरफ मोड़ना है. फिल्म में सचमुच में संभा जी की चोटों पर नमक मला जाता है. फिर पर्दे पर संभा जी की आंख निकालना और जीभ काटना. उफ्फ…!
आश्चर्य है कि इसके बाद भी इसे A सर्टिफिकेट न देकर U/A सर्टिफिकेट दिया गया है. पिक्चर हाल से निकलते हुए मैंने देखा कि परिवारों के साथ 3-4 साल तक के बच्चे भी हैं. इनके कोमल दिलों दिमाग पर क्या असर हो रहा होगा ? किस तरह की नफरत लिए हुए ये बड़े होंगे ?
फिल्म की शुरुआत में एक युद्ध के बीच मुस्लिम बच्चे को संभाजी द्वारा बचाकर उसकी मां को सौंपना और फिल्म के अंत में औरंगजेब की सेना द्वारा एक हिन्दू बच्ची को आग में जला कर मार देना, और पर्दे पर उसका ग्राफिक चित्रण बीजेपी के ‘ओपन एजेंडे’ को पूरा करने के लिए ही है.
ऐसी फिल्मों की महिला पात्र महज पुरुष के ‘इगो’ को सहलाने के लिए ही होती हैं इसलिए उनकी चर्चा ही यहां बेमानी है. विक्की कौशल के अभिनय की बहुत प्रशंसा हो रही है. लेकिन ऐसी नफरत भरी लाउड फिल्म में एक्टिंग की नहीं बल्कि ओवर एक्टिंग की जरूरत होती है और विक्की कौशल ने यह काम बखूबी किया है. अब वे बॉलीवुड के नए ‘हिंदू हृदय सम्राट’ हैं, मनुवादी फासीवादी सांस्कृतिक फैक्ट्री का एक नया उत्पाद…!
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